मौन हूं।
आजकल मैं मौन हूं
उभरते जख्म सिलने में
व्यग्र हूं,
मोहब्बत है अपनों से
हकीकत में बदलना है
सपनों को
दर्दपान कर भी
आजकल मैं मौन हूं
विश्वास है अपनों पर
सगे सपनों पर
नदी के किनारों की तरह नहीं
गंगा जमुना सरस्वती के संगम तरह
दर्द है जानता हूं
दिल को बहलाने का,
हर उद्यम करता हूं
आजकल मौन हूं
मानता हूं मौन टूट गया तो
बाढ़ बेकाबू हो सकती है
हर प्रहार सहता हूं
उम्रदराज हूं अहंकारी नहीं
गुत्थियां सुलझाने का,
उपाय करता हूं
मैं आजकल मौन हूं
उम्र बढ़ रही है
जीवन काल घट रहा है
बंटवारे पर स्तब्ध हूं
चाहता हूं स्नेह और संग
चढ़ता रहे
संयुक्त परिवार का रंग
अत्याचारी ना अहंकारी
मैं अपनेपन के,
सोधेपन का पुजारी हूं
शब्दों की दुनिया है अपनी भु
फिर भी मैं मौन हूं
क्योंकि मैं मय नहीं
मैं तो बस मैं हूं इसलिए
आजकल मैं मौन हूं ।
नन्दलाल भारती
२३/०७/२०२३
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