मुसीबत और मुश्किल में
जकड़ती जा रहां है अदना
उबरने की हर कोशिश
असफल होती जा रही है
इसके बाद भी
हर मुमकिन कोशिश जारी है।
अदना
मुसीबत और मुश्किल के
भंवर फंसा टूट रहा है
उसके अपने दैहिक तापा में
सुलग रहे है
यही मुसीबत है अदने की
अपनो को साथ की जरुरत है
और अदना बनवास काटने को
मज़बूर है
मुसीबत का समाधान भी है
बनवास से मुक्ति
वही नही मिल रही है
दुर्भाग्यवश कमजोर और
पराधीन
बेबस,सत्त्ता हीन जो ठहरा
दर दर माथा पटक चूका है
समाधान में कई जानो की सुरक्षा है
परंतु समाधान नही मिल रहा
कमजोर की कहाँ सुनवाई
समाधान के औजार
कमजोर की मदद में उठते नहीँ
अडचने मुंह बाये अड़ी पड़ी है
सत्त्ता की रस्साकसी का खेल जारी है
कमजोर के हक में सत्त्ता के
हाथ कांपते जो है
जीवन उलझता जा रहा है
पल पल
अदना कसता जा रहा है
मुसीबत के शिकंजे में
अपने दर्द के दल दल में
ज़माने की चौखटों पर
पटक पटक माथा अदना
शरणागत हो चूका है परम सत्ता के
मुसीबत की गठरी कर चुका है
उसी परम् सत्ता के हवाले
कर्म की राह चलते हुए
भर रहा है सांस
मुसीबत के अवांरा बादल छटेगे
अदने को बस अच्छे दिन की
इंतजार है इंतजार है।।।।।।
डॉ नन्द लाल भारती
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