कविता:नये जमाने की नई कैकेई
तुम तो ऐसी न थी कैकेई
तुम बदल गई, तुम्हारे अंदाज बदल गये
तुम रिश्ते की छाती में खंजर उतार चली
तुमने जिसके हाथ पकड़े थे
साथ फेरे अग्नि के भी लिए थे
उसी के साथ ठगी का खेल
सास-ससुर की सूरत तुम्हें पसंद नहीं आती
तुम अपनी ही कोख से अवतरित से
बदला लेती हो मां होने का दोगला दावा करती हो
नवजात को लहूलुहान करती हो
कैसे मां-बाप को औलाद हो कैकेई
रिश्ते तुम्हारे लिए ठगी के औजार हो गये हैं
कैकेई दगा किया है तुमने
गुज़ारिश खुदा से
भयंकर गुनाह की सजा पहले
तेरे कसाई मां बाप को मिले
तुम्हारी करतूत की प्रेत छाया
तेरे ठग मां बाप के माथे
सात जन्म तक रहे
कैकेई तुम्हें कैसे बद्दुआ दे सकते हैं
जिसके खानदान की इज्जत हो
तुमने गुनाह किया है,
कर भी रही हो
सजा तो मिलेगी,हर किसी को मिलती है
तुमने तो पाप किया है
पति परमेश्वर को तबाह किया है
वही पति जिसकी कमाई लूटकर
तुम अपनी और अपने मां बाप की शौक
रंगीन कर रही हो
पति को प्रताड़ना नवजात शिशु से
बदला ले रही हो
कैसी पत्नी कैसी डायन मां बन गई है कैकेई
क्यों अपनी आबाद दुनिया को
तबाह कर रही लूटूरे मां बाप के लिए
कैकेई तुम यह तो जानती होंगी
जैसा बीज बोते हैं, वैसी ही फसल आती है
दुनिया कि सच्चाई यही है कैकेई
तुम पति को दर्द और आंसू थे रही हो
पति की छाती पर मूंग दल रही हो
खुद की कोख से अवतरित बच्चे के साथ
डायन जैसा व्यवहार कर रही हो
सास-ससुर को दर्द के दलदल में ढकेल कर
अपने मां बाप के खुशी की दुनिया
सजा रही हो,
एक दिन आता है
हर ठग, दगाबाज अपराधी की दुनिया
धूं धूं कर जल जाती है,
कैकेई अपनों का नाम देकर
तुमने किये हैं बहुत बड़े बड़े अपराध
अपनी करनी पर तनिक करो विचार
जवानी सदा साथ नहीं रहती
ढल जाती है धीरे-धीरे
और एक दिन बना देती है लाचार
ऐसे दिनों में काम आती हैं औलाद
तुम क्या कर रही
औलाद के लिए हो करो विचार कैकेई
तुम पति को हराकर,औलाद का तिरस्कार कर
बूढ़े सास ससुर के बुढ़ापे की लाठी छिन कर
कब तक तुम रह पाओगी खुश
कैकेई तुम जोड़ रही हो दुःख
अपनी गृहस्थी को सजाओ
रिश्ते को बचाओ
तुम पति को हराकर जीत तो जाओगी
दावा है अगर नहीं बदली तो
हे नये जमाने की नई कैकेई
ढलती उम्र में अपने किये
पाप का बोझ ढो ढोकर थक
बहुत तक जाओगी
रो रोकर मर भी न पाओगी
गर चेत ली अपनी गृहस्थी तो
उम्र भर खुशी के गीत गाओगी
वरना बहुत पछताओगी........।
नन्दलाल भारती
06/06/2023
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