निर्मला
मगन दादा थे तो मजदूर किस्म के इंसान पर शौक रईसो जैसे थे l खैर पुरखे किसी ज़माने राजा महाराजा थे l पुरखों का साम्राज्य एशिया महाद्वीप के आखिरी छोर तक फैला हुआ था l पुरखे थे चंवर वंश के राजा,जो इक्षाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय समुदाय से थे,जिस वंश को सिकंदर लोदी ने चमार बना दिया l हजारों बरसों क़े आक्रमण और उत्पीड़न ने चंवर वंश और उनके साम्राज्य का इतिहास तक मिटा दिया l
वर्णिक व्यवस्था के सत्तधीशो ने हिन्दू धर्म का पक्ष और वीर इक्षाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय समुदाय के लोगों को मुग़लशासकों को ख़ुश करने के लिए चौथे वर्ण यानि सबसे निचली श्रेणी में शूद्र अछूत बना कर रख दिया था परन्तु चंवर वंश के राजा आज भी ग्राम देवता डिहबाबा के रूप में पूजे जाते हैंl
लम्बे संघर्ष,जान-माल की भयावह क्षति और लाखों के शहीद होने के बाद देश में आज़ादी का सूर्योदय हुआ सिर्फ अंग्रेजो से,और लोकतंत्र का अभ्युदय तो शानदार हुआ, जो काल के गाल स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया था l
मगन दादा शौक़ीन मिजाज थे l मद्यपान-धूम्रपान के साथ भेड़ा पालने और लड़ाने का भी शौक रखते थे l सूर्य सुमन उर्फ़ सूर्या और चंदर सुमन उर्फ़ चंदू बेटों और चार बेटियों -तमन्ना, मंशा चाहत और मन्नत के बाप थे l भेड़ा और भतीजे से मगन के लगाव को देखकर कुछ मसखरे किस्म के लोग कहते मगनदादा भेड़ा और भतीजा दोनों से बचकर रहना, दोनों पीछे से करते हैंl वे कहते कौन परवाह करता है l नेक इरादा रखो सब अच्छा होगा l अब तो अपना समाज शिक्षा की जहाज पर चढ़कर तरक्की काआसमान छू सकेगा l
मेरी तो बस इतनी ख्वाहिश है सारदा कि मेरी दोनों बहुये शिक्षित, संस्कारी,बड़े घर की बेटी हो l
सारदा कहती-पुरखो की विरासत तो हजारों बरस पहले छिन गईl अब तुम दहेज़ की रकम से राजा बनने की ख्वाहिश रखते हो क्या?
अरे नहीं रे पगली l बड़े घर की बेटी की ख्वाहिश है l मोहतरमा सभ्य और संस्कारी परिवार की बेटी जो परिवार को तरक्की की राह दिखाए,घर को मंदिर और अपनी संतनो को उचित शिक्षा देकर परिवार को तरक्की के रास्ते पर ले जाये l मेरी यही ख्वाहिश है l धनिखा घर की बेटी नहीं चाहिए l मगनदादा अपने हसीन सपने के बारे में सारदा से उचक -उचक बतियाते l सारदा भी फुले ना समाती l
सूर्या के बाबू वह दिन जल्दी आने वाला है l सूर्या के गौना का समय आ गया है l बारहवी का इम्तिहान होने के बाद गौना ला दो l तुम्हारे सपनों के अनुसार निर्मला बड़े घर की बेटी है सारदा बोली l
मोहतरमा यकीन करो, गीता पढ़े लिखे अफसर बाप और पक्की गृहस्थ माँ की बेटी है l मोहतरमा आदमी को शिक्षा और अच्छे संस्कार आदमी को बड़ा बनाते है l धन नहीं मै जानता हूँ l
जी पतिपरमेश्वर समझ गयी हूँ सारदा बोली l
अब तक बुद्धि कहीं मक्खीयों की तरह भनभनाने गई थी क्या?
क्यों साठियाये रहे हो l मेरे बारे में तुम्हारा यही ख्याल है क्या सारदा गुस्से में बोली l
अरे नहीं नहीं तुम तो बड़े घर की बेटी हो l भले दहेज़ में टोकरी भर आटा लेकर आयी थी l
अपनी आदत से बाज नहीं आओगे सारदा तरजनी अंगुली दिखाते हुए बोली l
अंगुली आँख में डाल दोगी क्या मगन बोला ?
कैसी बात कर रहे हो ? बड़े घर की एक बेटी को बहू बनाकर लाना है l एक खोजना भी तो है सारदा बोली l
ठहाका लगाते हुए मगन बोले -बहू के आने में देर है l
दुआ करो निर्मला जल्दी आ जाए सारदा बोली l
आएगी सूर्या को बीए तो पास करने दो मगन बोले l
पास हो जायेगा l मै चंवरबाबा से आशीर्वाद मानती हूँ सारदा पूछी ?
बीए पास सूर्या,कलेक्टर बनने के योग्य हो जायेगा l है कोई अपने टोला-महल्ला में बी ए पास l अपना रुतबा बढ़ जायेगा l चंदु ने भी बड़े भाई के नक़्शे कदम दौड़ दिया तो अपने अच्छे दिन पीछा करेंगे मगन मूँछ ऐंठते हुए बोले l
तुम्हारी मूंछ ऐसे ही खड़ी रहे l भैंस की हौदी में कोयर डालो l दोपहर ढलने के बाद अनमोल महंथ के घर जाना l निर्मला के माँ-बाप को गौने का पैगाम भेजवा दो l
तुम तो पीछे पड़ गयी l सूर्या को कॉलेज से आने दो l बेटा से बात कर लूँ l
सारदा ताली बजाते हुए बोली -सूर्या का तीसरी कक्षा में दाखिला हुआ नहीं था l तुम्हारी माँ को पोता का ब्याह,स्वर्ग जाने से पहले देखना था l वह तो स्वर्ग से भी सब कुछ देख सकती थी पर नहीं l अबोध सूर्या का ब्याह करवा दिया l अब गौना सूर्या से पूछकर l सूर्या कहेगा क्या?
समधी जी शहर से गाँव आएंगे तब पैगाम भेज दूंगा l उनके पास भी तो बड़ी जिम्मेदारी है l बेटी विदा करना है l भाई और उनके परिवार के पालक समधी जी ही तो हौं मगन मन ही मन बुदबूढाये l
तुम्हारे होंठ क्यों फड़फड़ा रहे हैं सारदा चुटकी लेते हुए बोली l
होंठ तो तो देख रही हो l समझ कर अनजान बन रही हो l ये फड़फड़ा नहीं कुछ कह रहे हैं l तुम समझ कर अनजान बन रही हो l मेरी आँख भी फड़क रही है l आँख में झाक कर देख ली होती l
आँख मेरे लिए नही बड़े घर की बेटी बहूरानी निर्मला के शुभागामन का संकेत है सारदा आँख दबाते हुए मुस्कराई l
लगता है तुम महंथ के घर भेज कर रहोगी, मगन सारदा की तरफ कनअंखिया देखते हुए मुस्कराये l
पतिदेव आँख लड़ाने का वक्त नही है l महंथ के घर मत जाओ सारदा बोली l
कहाँ जाऊँ देवी l आज्ञा दे कर तो देखो मगन प्यार में उबलते हुए बुढ़ाबूदाये l
बिस्तर की ओर मत देखो सारदा बोली l
कहाँ देखूँ देवी मगन कान खुजलाते हुए बोले l
साईकिल उठाओ गौना का दिन रखने के लिए बड़े बाप की बेटी के गाँव देपालपुर जाओl निर्मला के शुभ चरण इस घर में मई माह तक पड़ जाना चाहिए l दिन रख कर घर वापस आना मेरी चेतावनी है सारदा बोली l
अरे बाप रे किस गुनाह की इतनी बड़ी सजा?
जवान बेटे का बाप होने की सारदा बोली l
बारहवीं में पढ़ रहा है l
बारहवीं में पढ़ रहा है l बाईस साल का हो गया है l दस साल की उम्र से स्कूल जाना शुरू किया थी l सूर्या के दोस्त का गौना तो जब वह आठवीं कक्षा में था तब ही आ गया था l तीस साल में बहू लाना था तो बाल विवाह क्यों किये? बीए पास कर लेने दिए होते l सूर्या ठाकुर के बेटवा जैसा साहब बन जाता तब किये होते l जल्दी तो तुमको और सासु माँ को थी l गलती किये हो तो परिणाम भी भुगतना पड़ेगा l किसी बेटी और उसके माँ-बाप को दंड क्यों?
हो गई गलती l चंदु का ब्याह गौना तुम कर लेना मगन कान पकड़ते हुए बोले l
अब और बकबक नहीं सारदा बोली l
जा रहा हूँ l आने में देर हो जायेगी l
देर क्यों होगी l समझ गयी समधियाने जाओ बिना कनस्तर खाली किये, बिना मुर्गा की टांग तोड़े तुम तो आओगे नहीं l देर से नहीं l तुम कल्ह आना l अब जाओ l टाईम मत खराब करो l मारो पैडल और हां चंवर बाबा का आशीर्वाद लेकर जाना l सब शुभ और मंगल होगा l
चंवर बाबा ग्राम देवता, मगन कुछ और बोलते बीच में ही सारदा बोली चंवरबाबा ही ग्राम देवता डिहबाबा है मैं भी जानती हूँ तुम भी सूर्या के बाबू क्यों चिढ़ा रहे हो, समधन जी बुला रही हैं अब जाओ l
मगन,ग्राम देवता चंवरबाबा अर्थात डिहबाबा के चबूतरे पर माथा नवा कर आशीर्वाद लिए फिर साइकिल पर सवार होकर सीधे समधीयाने देपालपुर गाँव चार घंत बाद पहुँच गयेl दूसरे दिन गौने का दिन रख कर शाम तक मस्त-मिजाज मगनदादा घर वापस आए l सारदा पतिदेव की ख़ुशी से अवगत हो गयी कि गौने का दिन पड़ गया है l
मगनदादा मस्ती में चूर, झटपट साइकिल ओसारी की दीवाल से टिका कर, सिमहुँ भैया सिमहुँ भैया चिल्लाने लगे l
सारदा बोली अरे मुँह मीठा कर लिये होते?
अकेले मेरा नहीं और लोगो का भी मुंह मीठा कराओ l देखो सिमहुँ भैया गमच्छा लहराते हुए आ रहे हैँ l कुछ ही मिनट में आधे गांव के मर्द-औरत इकट्ठा हो गएl इसी मौके का तो इंतजार था l मगन दादा बेटवा सूर्या के गौने के दिन,चार मई का शंखनाद कर दिए l अब क्या मगन के दरवाजे पर उत्सवी नजारा खड़ा हो गया पर यह खबर सूर्या के भविष्य के पतझड़ के मौसम का आगाज लग रही थी, उसके आँखों की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी l
बाप को अपने शान की चिंता थी, बेटा के भविष्य की नहीं l उम्मीदें तो बहुत बड़ी-बड़ी थी l मगन दादा को सूर्या से ऐसी उम्मीद थी कि वह पुरखों का लुटा राजपाट वापस छिन लाएगा l पांव में बेड़ी डालने की जितनी ख़ुशी मिल रही थी वैसी ख़ुशी उन्हें कोई और नहीं लग रही थी l
सूर्या के विरोध के बाद भी मगन दादा नहीं मानेl सूर्या औऱ निर्मला का गौना निर्धारित तिथि को आ गया l पूरे गाँव में गौने की मिठाई बाँटी गई l गौने के कई दिन बाद सूर्या औऱ निर्मला रात के अँधेरे में शयन कक्ष में एक दूसरे के आमने- सामने पहली बार हुए थे l वे एक -दूसरे का मुंह भी नहीं देख पाए थे साफ-साफ l पूरी लाज-हया की मोटी चादर में सुहागरात बीती थी l
समय कहाँ थमता है l दिन महीना और साल बीत रहे थे l सूर्या बीए पास हो गयाl माँ बाप का आशीर्वाद लेकर शहर की ओर चल पड़ा l बेरोजगारी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी l नमक से पेट भर रोटी खाने लायक कमाई भी नहीं हो रही l गाँव में निर्मला सास-ससुर, देवर-ननद का ख्याल बड़े बूढ़ो की तरह रख रही थी l
सूर्या की बेरोजगारी के डरावने बादल छंट नहीं रहे थे l परिवार में दो सुमन, बिटिया-सुगंधा औऱ बेटा सिद्धार्थ के रूप में खिल चुकी थे l इसी बीच चंदू का ब्याह सूर्या के कॉलेज के मित्र मेवालाल ने मित्रता की कसम में बांध कर अपने अमीर मामा की बेटी उर्मिला से करवा दियाl ब्याह के तुरंत बाद मालूम पड़ा कि लड़की वाले लड़ाकू-ठग बदमाश किस्म के लोग हैं l
कहने को तो उर्मिला के बाप -एक भाई बाम्बे में नौकरी करते थे दूसरा बड़ा भाई मास्टर था l इसके बाद भी दरिद्रता औऱ अमानुषता जेहन में कूट-कूट कर भरी थी l बाराती पेट में भूख लिए वापस हुए थे l दूल्हे के परिवार के लोग शादी में मिले पांच स्टील के बर्तन -कॉल बाल्टी, लोटा, गिलास, थाली और एक कटोरी, दुल्हन सहित छोड़ आये l
सूर्या का मित्र मेवालाल तो शादी में गया ही नहीं l मेवालाल के मामा की बेटी लुभौती बड़े घर के बेटी की जगह मानसिक पिछड़े परिवार की छन्छुदार जैसी गोरी बिल्कुल गँवार निकली l बड़े घर का ढिढोरा पीटने वाला जाहिल-गँवार निकला l सूर्या का दोस्त मेवालाल फरेबी निकला l
मगनदादा ने उर्मिला को ना लाने की कसम खा लिया था, परन्तु निर्मला के अफसर पिताजी मगनदादा के बड़े समधी समधी हरिलाल के हस्तक्षेप से कई बरसों के बाद उर्मिला मगनदादा के परिवार की बहू बन तो गई पर किसी को पसंद न थी l निर्मला जेठानी की जगह बड़ी बहन बन गई l
निर्मला की कोशिशों के बाद उर्मिला पारिवारिक संस्कार के गुर सीख पाई l निर्मला तो पहले से अपने छोटे देवर ननदो की देखरेख माँ की तरह कर रही थी l अब खचवन गांव के गँवार परिवार की कौआ हंकनी बेटी लुभावती को निर्मला उर्मिला बनायी थी l उर्मिला के लिये उसे माँ की भूमिका में आना पड़ा l निर्मला का प्रयास पूरी तरह कामयाब रहा l
गांव के लोग कहने लगे निर्मला भले ही अमीर बाप की बेटी नहीं है पर बड़े घर की गुणवन्ति बेटी तो है l जिस उर्मिला को उसके मायके वाले विपत्ति मानकर त्याग दिए थे उसी कौआ हेकनी को निर्मला ने गुणवन्ति बना दिया l निर्मला सचमुच बड़े घर की बेटी और मगन के खानदान का भविष्य थी l
सूर्या के माता- पिता और संस्कारी पत्नी निर्मला की सामूहिक तपस्या सफल हुई, सूर्या के भविष्य का वनवास कट गया l सूर्या को एक मल्टीकौआपरेटिव कंपनी में नौकरी मिल गयी l गांव की जिम्मेदारी सँभालने लायक उर्मिला हो गयी परन्तु चंदू न तो पढ़ाई में निकल पाया न तो रोजी-रोजगार में l
बिटिया-सुगंधा औऱ बेटा सिद्धार्थ की स्कूल जाने की उम्र पार होने लगी थी l बच्चो की पढ़ाई की फ़िक्र सूर्या को खाये जा रही थी l सूर्या की चिंता को देखते हुए सारदा और मगन दादा ने छाती पर पत्थर रखकर बहू निर्मला और पोती-पोता को शहर भेजनें की इजाजत दे दिए l
इंदूर शहर के स्कूल में सुगंधा और सिद्धार्थ का दाखिला हो l गांव से लेकर शहर तक की जिम्मेदारी सूर्या की छाती l जोड़-तोड़ कर निर्मला और सूर्या अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी ईमानदारी से जुट गये l माता-पिता खुश थे चंदू की छाती छप्पन इंच की हो गई l इंदुर में सूर्या तीसरी संतान गौतम का बाप भी बन गया l इंदुर शहर सूर्या और उसके परिवार के लिए भाग्य बदलने वाला बन गया l
निर्मला के प्रयास से उर्मिला पारिवारिक गुन-सहूर तो सीख गई थी परन्तु उसके मायके वालों ने जैसे उर्मिला से रिश्ता-नाता तोड़ लिया था l निर्मला इंदुर तो पहुंच गयी थी पर उसकी आत्मा में सास-ससुर बसे थे l तीन बरस बाद उर्मिला की गोद में सुलेख खेलने लगा था l
गौतम के जन्म के बाद उर्मिला की गोद में मुगधा भी आ गई l उर्मिला दो बच्चों की माँ बन गई पर मायके वाले उलट कर नहीं देखे l बच्चे के जन्म के बाद निभाई जाने वाली सारी रस्मे निर्मला के भाईयों ने अपने घर से निभाए l सगी बहन-बेटी का दर्जा दिए l
सूर्या जिम्मेदारी बहुत बढ़ गयी थी l बूढ़े माँ-बाप भाई चंदू और उसके बाल- बच्चों का खर्चा भी था l सुलेख स्कूल जाने की उम्र का हो गया तो चंदू भाई सूर्या के हवाले कर गया l
मुगधा के जन्म के कुछ साल बाद उर्मिला के अंदरूनी सड रहे अंग का ऑपरेशन इमरजेंसी गाँव के पास टाउन के अस्पताल में हुआ l
उर्मिला के भाई मास्टर की अंतरात्मा जागी वे बहन उर्मिला को देखने आ गये बतौर सहायता दो हजार उर्मिला के हाथ पर रखकर चले गए l महीने भर बाद तगादा के सन्देश किसी न किसी से आने लगे l अपने बाप मास्टर जी ने दो हजार वापस लेने के लिए भेज दिया l
खैर आपरेशन एवं अन्य खर्च की व्यवस्था सूर्या तो कर रखा था l संयोग से पैसा घर में था चंदू ने अपने ससुर जी को ससम्मान वापस कर दिया l ससुर जी फिर कभी नहीं लौटे, दुनिया से विदा हो l हाँ फिर मास्टर साहब पूरे गाँव के साथ सुलेख की शादी में लौटे दारू का गटर बहा दिए थे l उनका पूरा परिवार जो आधा गाँव था कि औरतें तोहफे में महंगी महंगी साड़िया और दो दो किलो मिठाई l खर्च के नाम चवन्नी भी नहीं l
सूर्या ने सुलेख को प्रोफेशनल मास्टर डिग्री कोर्स करवाया था और सुलेख के अफसर बनने के तुरंत बाद उसकी शादी कुछ दूर के गाँव के परिवार की बेटी मोहिनी से हो गयी l यह शादी पूरी तरह से चंदू और उर्मिला की पसंद से हुई l धन तो बड़े भाई सूर्या को ही लुटाना थाl
सुलेख की शादी राजा महराजा जैसी शादी हुई थी जबकि सूर्या ने अपने पुत्र सिद्धार्थ की शादी बिना दहेज़ की और बिल्कुल साधारण तरीके किया था l बदले में सिद्धार्थ के ससुर ने रिश्ते की छाती में विश्वासघात का खंजर घुसा दिया था, जो डरावनी और हैरान करने बात थी l
उर्मिला ने दहेज़ की छोटी बड़ी सभी चीजें अपने लाकअप रख ली थी l फाइव सीटर सोफा बैठक से उठवा कर अपने कब्जे में रख ली थी l निर्मला को भर आँख देखने तक को न मिली थी l
सुलेख की नौकरी लगते है उर्मिला पर मायके का रंग तो चढ़ने लगा था l करने को तो उसने बच्चों को दुनिया में लाने के अलावा और कुछ नहीं किया l सुलेख की शादी के बाद तो दहेज के फर्नीचर बर्तन-भाड़े दहेज की लाख रूपये को देखते ही घमंड में पगलाने लगी ठीक l निर्मला को आँख तरेरने लगी l मौके-बेमौके बेइज्जत भी करने का मौका नहीं छोड़ती थीl उर्मिला औकात से बाहर जाने लगी अब तो उच्च शिक्षित पतोहू मोहिनी भी सास उर्मिला के साथ बेशर्मी के साथ ख़डी थी l दहेज़ की बाढ़ में सूर्या और निर्मला का चंदू और उसके बच्चों के हितार्थ किया गया त्याग भी विसर सा गया था l
बिटिया मुगधा, पोस्ट ग्रेजुएट को सूर्या और उनके बच्चों के गांव जाने पर दो रोटी ज्यादा बनाने को लेकर खफा हो जाती l मुगधा कहती मैं इतना खाना क्यों बनाऊं किसी की नौकारानी हूँ क्या? माँ का रंग तो चढ़ ही रहा था अब भौजाई की संगत मुगधा को बेलगाम कर रही थी l इधर निर्मला और सूर्या बड़े मम्मी-पापा बेटी (भतीजी )मगधा की शादी में आ रही अडचनों को लेकर बहुत चिंतित थेl चंदू रात दिन एक कर रहा था, दूल्हा बाजार की महंगाई को देखकर डर लग रहा था कि कहीं मगधा कुंवारी न रह जाये l चंदू बड़ी क़ीमत देकर और देने का वादा कर दहेजखोर डाक्टर का संविदा पर दस हजार पर नौकरी करने वाला बेटा दूल्हा बाजार से खरीद लिया l मुगधा के ब्याह का दिन भी
पड़ गया l
इधर इंदूर शहर में सूर्या की तबियत ख़राब हो गयी l आपातकालीन अवस्था में भर्ती किया गया l हार्ट कई प्रॉब्लम थी, लाखों रूपये लग गये l मुगधा का ब्याह सिर था, सूर्या अस्पताल में l ब्याह में जाना खतरे से खाली न था पर रिस्क लिया गया भी पर गांव पहुंचते ही तबियत बिगड़ बिटिया सुगंधा बाप को हवाई जहाज से लेकर इंदूर पंहुची l पुनः इलाज शुरू हुआ,तबियत में सुधार आते ही पुनः सूर्या बेटी की शादी में जिद कर गया और कन्यादान कर बड़े पापा का फर्ज़ निभाया l सूर्या की नौकरी प्राइवेट थी, कोई पेंशन तो था नहीं, बीमा का पैसा था जो अस्पताल के खर्च पर पानी की तरह बह रहा था l सूर्या के दोनों बेटे -सिद्धार्थ और गौतम, बहन मुगधा के ब्याह में सगे भाई सुलेख से अधिक जिम्मेदारी निभा रहे थे, तन -मन और धन से भी l बड़े पापा सूर्या ने बेटी मुगधा की शादी चार-छः लाख स्वाहा कर दिए l गृहस्थी का सारा सामान दिए l अफसर सुलेख माँ-बाप के इशारे पर लूटा रहा था l शादी के बाद पुनः सूर्या की तबियत ख़राब होने लगी l
मुगधा की विदाई के बाद तो लोमड़ी स्वभाव उर्मिला उग्र रुप धारण कर लीउर्मिला खुश थी तो मायके की भीड़ से l गिद्ध की तरह चर तो रहे थे पर न तो सुलेख की और न तो मुगधा की शादी में एक खर्च किये थे l दूसरी तरफ उर्मिला को अपना जीवन लगाने वाले सूर्या - निर्मला और उनके बच्चे फूटी आँख नहीं भा रहे थे l जिस निर्मला और सूर्या की दया पर चंदू और उर्मिला का परिवार पला बढा था उन्हीं की खुलेआम सूर्या की खिलाफत कर रही थीl सूर्या के जीवन की चिंता उर्मिला को तनिक भी न थी l
उर्मिला गाँव में ढिंढोरा पीट-पीट कर कह रही थी भाईजी यानि जेठ सूर्या ने न तो सुलेख की और न ही मुगधा की शादी में एकव पैसा दिया l सुलेख की शादी दहेज़ की रकम से हुई, मुगधा की शादी बेटवा सुलेख ने अपनी कमाई से किया है l सुलेख भी कंधे पर बिठाकर,गोद में पाल बड़ा बनाने वाले बड़े मम्मी-पापा निर्मला और सूर्या की नेकी को भूला दिया l उर्मिला के लिए न तो ननदे और नही जेठ सूर्या के परिवार से कोई लगाव था l उर्मिला के लिए अब दोनों समधियान और मायके के अलावा और कोई प्यारा नहीं लग रहा था और तो और चंदू ने भी उर्मिला का पल्लू कसकर थाम लिया था l इतना ही नहीं मुगधा ने तो शादी के बाद तो बड़े पापा, मम्मी,सुगंधा, सिद्धार्थ और गौतम को तो अपनी यादश्त की डिकशनरी से निकाल कर फेंक दी थी l
मुगधा की डोली उठते ही सूर्या के लिए मेडिकल इमरजेंसी जैसी स्थिति निर्मित हो l निर्मला के आंसू नहीं थम रहे थे बिटिया-सुगंधा औऱ बेटे सिद्धार्थ और गौतम बाप इंदुर शिफ्ट करने के इंतजाम में भागदौड़ कर रहे थे l सुलेख इन सब से बेखबर अपनी हवाई जहाज की टिकट बुक कर इंदुर उड़ने की तैयारी कर लिया l उर्मिला को तो वैसे ही सूर्या के जीवन की परवाह तो वैसे ही न थी और तो और सुलेख और चंदू जिसके लिए सूर्या भाई नहीं भगवान था वही बेगाना वाह रे वक्त का बदलाव? वही गांव जहाँ सूर्या पला बढा, जिस गाँव में स्वर्गीय माँ सारदा पिता मगन की अमानत को अनमोल विरासत बना दिया था l देखने वाले सूर्या पर गुमान करते l सूर्या जैसे बेटा और निर्मला जैसी बहू की कामना करते l वही विरासत और वही गाँव अब पहुँच से दूर छूटता नजर आ रहा था l शायद लोमड़ी विचार वाली उर्मिला की मन्नत भी यही थी l
बिटिया-सुगंधा और बेटा सिद्धार्थ गौतम ने फ्लाइट का टिकट लेने में एड़ी चोटी का जोर झोंक दिया,तब जाकर इंतजाम हो पाया l वे भाड़े की कार से एअरपोर्ट और फ्लाइट से पिता को लेकर इंदुरl एअरपोर्ट से फिर सीधे अस्पताल पहुंचे जहाँ इलाज शुरू हुआ l अस्पताल से तो छुट्टी मिल गयी पर दवाई तो आजीवन चलने वाली थी l
उधर गांव में उर्मिला ख़ुशी में बौरायी पूरे गांव में कूद-कूद कर जेठानी निर्मला और जेठ सूर्या की बुराई कर रही थी जिनकी बदौलत उसका वजूद जिन्दा था,बेटवा अफसर था l वह खुद तंदुरुस्त और जिन्दा थी, जिसका नाम भी उसके माँ-बाप का दिया नाम भी नहीं था l वही उर्मिला मतलब निकलते ही बाप तुल्य जेठ और माँ समान जेठानी को बेइज्जत कर रही थी, कोस रही थी l अफसर बेटवा पर घमंड कर रही थी रही थी जबकि उसने जन्म देने के अलावा कुछ किया ही नहीं था, करती भी तो मव्वाली के अलावा और क्या बनाती? उसके संस्कार भी तो ऐसे ही कौआ हंकनी के थे l मतलबी निर्दयी उर्मिला आज घमंड के आसमान पर उड़ रही थी l
गांव वाले पूछते उर्मिला तुम्हारे बेटवा को जमीन से आसमान तक किसने पहुँचाया है? तुमने या निर्मला ने l खचवन गाँव की बेटी कौआ हंकनी, लुभौती से उर्मिला किसने तुम्हें बनाया, खुद बन गई या निर्मला ने ?
गाँव के लोग कहते देवी हैं, घर को मंदिर बनाने वाली है, उसका एहसान तुम और चंदू सात जन्म तक नहीं उतार सकोगे,अपने धरती के भगवान समान जेठानी की नेकी के बदले बुराई कर रही उर्मिला l
तुम को तो सुबह-शाम निर्मला का पांव पखारना चाहिए था, तुम पागल तो निर्मला जैसी देवी की आबरू उतारने पर तुली हो l क्या गुनाह किया? यही न तुम कौआ हंकनी को, हैवान से इंसान बना दी? तुम्हारे परिवार वो ऊंचाई दे कि तुम सपनों में भी न सोच सकती l तुम क्या समझो उर्मिला ?
पाप कर्म से बचो उर्मिला l जेठ-जेठानी का डर-भय नहीं है तो कम से कम चंवर बाबा से डरो उर्मिला, l निर्मला बड़े माँ-बाप की बेटी,अच्छे खानदान की अमानत, सास-ससुर का सपना देवी समान,गरीब परिवार को अपनी सूझबूझ से अमीर बनाने वाली है सचमुच बड़े घर की बेटी है निर्मला l
नन्दलाल भारती
24/101/2024
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY