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पिता का दर्द

 

पिता के दर्द की खबर
रेतती रहती है आजकल
पिता की पीड़ा स्वयं के टूटते अंग का
एहसास कराती है
कुनबा पिता के दर्द में
कराह रहा है आजकल
नशा को शिव का वरदान
कहने वाले पिता को
वही वरदान अभिशाप बन गया है
फेफड़े की सड़न तन की अंकड़न
चैन से जीने नही देती आजकल
सब कहते काश नशा से दूर रहते तो
नित नई नई बीमारियों से दूर रहते
ना खुद ना कुनबा रक्त के आंसू रोता
परदेसी बदनसीब बेटा
चाहकर भी हाथ नही थाम पाता
विवशता है नौकरी
बदले मिले खनकते सिक्कों से
कुनबा रफतार पकड़ता है
परित्याग मतलब सामूहिक संहार
कोई नही चाहता पिता भी नहीं
बेटा मां-बाप को मानता है भगवान
बेटा को भगवान की सेवा का
सौभाग्य नहीं
बेटा के लिये यही बदनसीबी है
आंखों में आंसू लिये कहता है
ये कैसी अग्नि परीक्षा है भगवान
क्यों इतना बदनसीब को गया है
लाडला बेटा

 

 

डां नन्दलाल भारती

 

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