लघुकथा: प्रकृति का न्याय
अम्मा मिहिर बाबू के घर जा रही हूं।
क्यों क्या हुआ बहू ?
बुलौवा आया है रागिनी बोली।
कैसा बुलौवा ?
मिहिर बाबू फिर बाप बन गए सोहर गाने का बुलौवा आया है रागिनी बोली।
बेटा हुआ है क्या?
नहीं? छठवीं भी बेटी रागिनी बोली।
लगता है सिलटू का श्राप सच हो गया।
कैसा श्राप अम्मा ?
मिहिर के बाप ने गांव के बदमाशों के सहयोग से सिलटू की घरोही पर कब्जा कर लिया। सिलटू
पंचायत बुलाये , पंचों के सामने मिहिर का बाप बिसनु गंगाजल से भरा लोटा उठा कर कसम खाया कि यह घरोही मेरी है । घरोही तो सदियों पुरानी सिलटू के पुरखों की विरासत थी और सिलटू ही उत्तराधिकारी था। पंचों के सामने सिलटू रो पड़ा था पर पंच भी लाचार थे क्योंकि बिसनु गंगाजल लेकर कसम खाया था कि घरोही उसकी है।
सिलटू आंसू पोंछते हुए बोला था बिसनु तुमने मेरी जमीन दबंगई से कब्जा किया है। तुमने सच को झूठ कर दिया है । याद रखना पंचों के सामने बोल रहा हूं,एक दिन तुम्हारे वंश में कोई दीया जलाने वाला नहीं होगा। सिलटू तो दुनिया मे नही रहे पर सिलटू का श्राप सच हो गया है।
बिसनु बाबा ने तो बहुत बड़ा गुनाह कर दिया। मिहिर बाबू नवल्द हो जायेंगे रागिनी बोली ?
कोई शक की गुंजाइश नहीं रागिनी यह तो प्रकृति का न्याय है।
नन्दलाल भारती
04/03/2023
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