नाम प्रेम सिंह काम पेट्रोल पम्प सेवा
सूरत कर्मभूमि राजगढ़ धार जन्मभूमि
मदिरा धूम्रपान के शौकीन
बात बात पर पकडऩे लगती तौहीन
सफर रेल का लगता जीवन का मगर
सब कुछ अपने बस मे नहीं है होता
कभी पैखाने की दीवार के सहारे
सफर है होता
दुर्भाग्य कहे या सौभाग्य
कभी प्रेमसिंह जैसा सहयात्री
होता
बात बात पर पांव पकडता.
कम्पनी मे काम करता
रह रह अपनी पहचान जूते करता
देखो भगवान कम्पनी का है कहता
बिस्किट चाय, बीडी मावा को पूछता
ठर्रा की बदबूदार सांस बहकती
बीडी की बदबू उगलती
पगला प्रेम सिंह,
बाबू जी भगवान मेरे
कहता तुम्हरे खातिर हाजिर जान मेरे
पैसे की फिक्र ना करना
आदिवासी आदमी मन का अच्छा
सरकारे आती जाती कौन फिक्र करता
सरकार बनाने के वोट चाहिए होता
वोट के बदले बटवा ठर्रा
शिक्षा विकास पडा है कोरा खर्रा
वाह रे नसीब, अपनी जहाँ मे
बना दिया दुश्मनों ने दास
बहुत हुई गुलामी चाहिए अब विकास
प्रेम सिंह नशे की गिरफ्त से था
जैसे बाहर
निरक्षर हो गया जैसे एकदम साक्षर।
डॉ नन्द लाल भारती
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