Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रिटायरमेंट

 
रिटायरमेंट
नन्दलाल भारती 

माघ की ठिठुरन और हल्की बारिश ने पूरा वातावरण जैसे बर्फीला बना दिया था।लोग घरों में भी ठिठुर रहे थे।मजदूर वर्ग खेत खलिहान में डटा हुआ था, मजदूर को ठण्ड की फिक्र नहीं रोटी रोजी की होती है ।हवा की छुअन हड्डियां गला देने वाली थी ।ऐसी ठण्ड में मजदूर गेहूं की सिंचाई में,  धान की सटकायी में लगा हुआ था यानी मजदूर वर्ग रोटी के लिए जंग लड़ रहा था। ऐसी ही शीत लहरी में नरेश नोकरी की तलाश मे अपने फूफा बाबू राम के साथ दिल्ली को कूच किया था। बाबू राम कोई अफसर थे नहीं, मेहनत मजदूरी का काम करते थे। शहर में उनके पास सिर छिपाने के लिए झुग्गी भी न थी।वे ग्रेजुएट नरेश  को अपने साथ कैसे रख पाते।वे बड़े दयालु प्रवृत्ति के थे, नरेश को तकलीफ़ न हो इसलिए वे  शहर में नजदीकी रिश्तेदार जो झुग्गी मालिक भी थे उनके के हवाले कर वे हरियाणा चले गए। 


इधर   नरेश को दिल्ली में न तो नौकरी मिल रही थी ना सकूं। हां उपर से खुराकी का खर्च रोज बढ़ रहा था। वजीरपुर आद्यौगिक क्षेत्र की टीन का डिब्बा बनाने वाली फैक्ट्री, लोहे की फैक्ट्री, टेलीविजन की फैक्ट्री, आजादपुर मंडी में सेबफल की पेटी बनाने का काम,आलपिन की फैक्ट्री में काम में नरेश ने काम किया पर कहीं सफलता नहीं मिली, हां जातीय अयोग्यता की वज़ह से अपमान तो बहुत मिला। इसके बाद बुकसेल्समैन की नौकरी पर चहुंतरफा निराशा।

 दिल्ली शहर में धक्के खाते -खाते चार साल गुजर गए पर नौकरी का का कोई ठिकाना नहीं।नरेश ग्रेजुएट तो था पर न कोई पहुंच न नौकरी खरीदने की औकात। लाचार क्या करें ? घर-परिवार की जिम्मेदारियों का डरावना बोझ। समय पंख लगाये भाग रहा था। नौकरी की तलाश रेगिस्तान में पानी की तलाश जैसी भयावह थी। इसी बीच नरेश की मुलाकात वाई. नाथ  से हो गई। उनके दफ्तर और बंगले के साल भर चक्कर काटने के बाद ग्वालियर शहर में कम्पनी के दफ्तर  में अस्थाई टाइपिस्ट की नौकरी मिल गई ‌। उस वक्त डां. आर. पूजस,क्षेत्रीय  हेड,ग्वालियर थे, नरेश अपने व्यवहार कुशलता एवं ड्यूटी के प्रति वफादारी एवं ईमानदारी की वजह से उनका करीबी बन गया था।नरेश बहुत खुश था। खुश भी क्यों ना हो देश की बड़ी खाद -बीज बनाने वाली कम्पनी में काम कर रहा था, भले ही अस्थाई नौकरी थी पर स्थायी होने की पूरी उम्मीद थी। उच्च वर्णिक नारायेन्द, आफिस सहायक था, आर्गव आर.जूनियर लेखा सहायक सत्य बी.सौहान, विपणन सहायक, और नरेश टाइपिस्ट क्लर्क यानि कुल चार लोगों का आफिस स्टाफ था, बाकी दस फील्ड रिप्रेजेंटेटिव थे।आर.आर्गव चरित्र ईमानदारी और वफादारी की तराजू पर फीट नहीं  था । नारायेन्द और सत्य बी.सौहान की ट्यूनिंग जातिपांति की तहकीकात के बाद भी तनिक जम गई थी । कुल मिलाकर अस्थाई नौकरी में भी नरेश मन लगाकर काम कर रहा था जिससे क्षेत्रीय प्रबन्धक डॉ राम पूजस भी नरेश को पसंद करने लगे थे।

नरेश की खुशी ज्यादा दिन बरकरार नहीं रही,डां आर पूजस का स्थानांतरण राज्य कार्यालय बतौर स्टेट इंचार्ज हो गया।नरेश एरिया मैनेजर मि. के.आर. जैम आ गये जो नरेश के लिए सुनामी साबित हुए।
डॉ.आर.पूजस के स्थानांतरण के बाद तो नरेश मुश्किलों में घिर गया। मि.के आर.जैम को न तो नरेश भा रहा था ना उसका काम जबकि यही नरेश डॉ आर पूजस  के लिए बेस्ट परफार्मर था। सिम्पल ग्रैजुएट केआर  जैम की निगाहों में नरेश नकारा था क्योंकि वह दलित का बेटा था। मि.के आर जैम मुख्यालय तक नरेश को बदनाम कर दिये कि नरेश को न  टाइपिंग आती है,न अंग्रेजी बोलना -लिखना न और कोई काम जब कि मि.के आर  जैम को हस्ताक्षर के अलावा कुछ नहीं आता था,पर थे क्षेत्रीय हेड ।वे चापलूसी में माहिर थे और इसी  खास योग्यता की बदौलत वे तथाकथित स्टार परफार्मर थे।

स्टेट हेड मि.एम.तमोरी के पहले दौरे पर ही मि.जैम ने नरेश की शिकायत कर दिए यानि स्थायी नौकरी से पहले रिटायरमेंट का इंतजाम पर स्टेट हेड ने मि.जैम को डांटते हुए बोले थे तुमको क्या आता है। सुबह जल्दी आना और शाम देर तक दफ्तर का काम करना नरेश की दिनचर्या थी, नरेश को ड्यूटी के अलावा और कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। कोल्हू के बैल जैसे मि.जैम नरेश को लगा देते पर कभी उसके काम से खुश नहीं हुए बतौर बख़्शीश तीन महीने की तनख्वाह रोकवा दिये थे।
डां आर पूजस,स्टेट हेड हो गये थे।वे मि.जैम  द्वारा नरेश के साथ किये जा रहे पक्षपात से पूरी तरह वाकिफ थे। नरेश मि.जैम के रवैए से बूरी तरह आहत था,रह-रहकर चम्बल के बीहड़ों में कूदने के विचार उसके मन में आने लगा थे पर समय की नजाकत को समझते हुए डॉ आर पूजस  ने नरेश को स्थानांतरित कर दिया जो नरेश के लिए संजीवनी साबित हुआ।
नये क्षेत्रीय प्रमुख मि.ए.अशरफ नरेश के कामों से बहुत प्रभावित हुये। अब नरेश की शिकायत की जगह  प्रशंसा शुरू हो गई। नरेश की नौकरी स्थायी हो गई। नरेश मि.जैम के मौन प्रताड़ना से मुक्त तो था पर मोहम्मद रईस चपरासी बड़ा विरोधी बन गया था।वह दफ्तर के सवर्णों को भड़काता, कहता चमार लोग सूअर का मांस खाते हैं, आम्बेडकरवादी होते हैं। इस दफ्तर में मुझे चमार पसंद नहीं। दुर्भाग्यवश दफ्तर के सभी चपरासी के साथ थे। एक बार तो चपरासी रईस ने मि.विवेकहीन को इतना भड़का दिया कि वह फाइटरबुल की तरह पागल हो गया जातिवादी गाली देते हुए नरेश के बैठने की सरकारी कुर्सी टेबल उलट पलट कर फेंक दिया था। जब इस हरकत के बारे में अशफाक साहब ने पूछताछ किया तो सब मौन रह गये पर रईस चपरासी बोला साहब मैंने नहीं देखा जबकि इसी कमीने आदमी ने यह सब करवाया था रजिस्टर, फाईलें खुद उठाकर टेबल पर रखा था। इतना ही नहीं इस हरामखोरो
 ने नरेश को कशूरवार ठहराते बोला साहब नरेश एस.सी. होने का फायदा उठाता है सबसे लड़ता रहता है। अशरफ साहब चपरासी की धुर्तबाजी से वाकिफ थे। अशरफ साहब नरेश को प्रोत्साहित करते, गुहखोदवा रईस और अन्य की परवाह किए बिना ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते हुए नरेश विभाग से परमिशन प्राप्त कर अपनी अधूरी शिक्षा को पूरा करने के लिए रात्रिकालीन कालेज ज्वाइन कर लिया था। 

जातीय चक्रव्यूह से उपजी मुश्किले वैसे ही दबोचने को तैयार थी। रईस चपरासी बार-बार मुश्किले खड़ी कर देता,चाय की कप टेबल पर पटक कर रखता  कई  बार तो चाय टेबल पर झलक जाती थी।कुछ साल के अशफाक साहब का स्थानांतरण हो गया औरमि.जैम बतौर क्षेत्रीय प्रमुख हो गए अब क्या चाण्डाल चौकड़ी सक्रीय हो गई। मि. जैम सात-आठ क्षेत्रीय प्रमुख रहे और इनका कार्यकाल नरेश के लिए दुशासन का शासन   साबित हुआ। सालों तक स्टेट प्रमुख रहे पर एवरेज सीआर के उपर कभी सीआर नहीं लिखे, आर्थिक हक भी लूटने से कभी परहेज़ नहीं किए । हां अपने लोगों को पूरी आजादी दिये थे।

सबसे अधिक लम्बा कार्यकाल दो क्षेत्रीय प्रबन्धको का रहा और इन दोनों लोगो लम्बे समय तक राज्य के प्रमुख रहे, प्रबंधन भी इनके हाथ में रहा और इनके कार्यकाल में नरेश को कण्डे से आंसू पोछना नसीब रहा। मि जैम  के बाद मि.दारुका प्रताप चुहाल रहे जो दिखाने को हितैषी बनते पर गोहूंवन सांप जैसा इनका भी चरित्र था। हां अपना हित साधने के लिए साम,दाम, दण्ड और भेद की नीति अपनाने में माहिर थे तभी तो सिम्पल ग्रेजुएट मामूली से क्लर्क से उच्च अधिकारी बन गये और लांच, प्रबंधन की डिग्री के साथ पोस्टग्रेजुएट दलित कर्मचारी नरेश के शोषण और हाशिए पर फेंके पड़े रहने के अथक प्रयास करते और सफल भी रहे। यही दारुका प्रताप चुहाल को अपरोक्ष रूप से छोटे लोग कहां करते थे।ये और इन जैसे मानवता विरोधी अधिकारियों के उत्पीड़न से नरेश टूटकर बिखरा नहीं बल्कि मजबूत बनता गया और अपने लक्ष्य के प्रति वफादार बना रहा। नरेश के नौकरी ज्वाइन करते ही दलित विरोधी अधिकारी  डॉ विष प्रताप जमींदार ,डी.प्रताप जमींदार और डॉ ए.प्रताप जमींदार ने कसम खा लिया था कि वे अनुभव और शैक्षणिक योग्यताओं के बाद भी नरेश को अफसर नहीं बनने देंगे।

उच्च वर्णिक अधिकारियों को खुश करने के लिए ये मि.के आर. जैम,दारिक प्रताप चुहाल हर हत्थकण्डे अपनाएं और एवरेज से उपर कभी सीआर नहीं लिखे। इस वजह से पूरे स्टेट में इकलौता दलित नरेश को ये दलित विरोधी अफसर तरक्की से वंचित करने के हर षणयन्त्र रचते रहे ।जमींदार श्रेष्ठ उच्च अधिकारी बतौर बख़्शीश तरक्की का तोहफा अपने अपने को देते रहे, कहते हैं अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने को दे,ये जातिवादी यही सच साबित कर रहे थे।।  नरेश विरोधी अधिकारी नरेश को असमय रिटायरमेंट के मौके भी तलाशते रहते थे। नरेश भी दृढ़ प्रतिज्ञ था अपनी शिक्षा, अनुभव को निखारने के लिए भी प्रयासरत था। नरेश की लगन को देखकर पी एण्ड ए अधिकारी मि.सुरेन्दर सीखावत ने यहां तक कह दिया था कि कम्पनी का पी एण्ड ए विभाग तुम्हारे लोगों के लिए नहीं है। यानि तुम्हारे जैसे दलित के लिए नहीं है। रईस चपरासी का तो चाय-पानी पीलाने में धर्म भ्रष्ट हो रहा था, कहता ये चमार कहां से आ गया पानी पीलाना पड़ता है,चाय देना पड़ता है,झूठे बर्तन उठाने और साफ करने पड़ते हैं, दफ्तर में वैसे तो सभी विरोधी थे पर रईस सबसे बड़ा जातिवादी विरोधी था,जो तनिक नरम मिजाज वाले होते उन्हें नरेश के प्रति भड़काता और लड़ाई और नफ़रत का माहौल पैदा करके ही दम लेता था।  मि.सीखावत की नसीहत से  रईस बहुत खुश था।

सीखावत की आदमियत विरोधी  और दलित दमन की  उग्रता से  नरेश विचलित तो नहीं हुआ पर एक शपथ ले लिया कि वह पीएण्डए डिपार्टमेंट में आफिसर बनकर दिखायेगा।
एक और उच्च वर्णिक अधिकारी   डॉ ए.प्रताप जमींदार वे  गिरी हुई विचारधारा और गिरे हुए आदमी थे कि वे नरेश की शैक्षिक योग्यताओ और उसके प्रयासों को दुत्कारते हुए कहे थे -नरेश  अफसर बनने का इतना ही शौक है तो गले में अफसर का पट्टा बांध लो। अरे कम्पनी में नौकरी मिल गई है। क्या यह कम है। अपने लोगों को देखो............ एल एल बी कर लिया है तो मुझसे बहस कर रहा है,एल एल बी की डिग्री  के साथ नरेश के पास और भी उच्च डिग्रियां थी ,लेखन से भी जुड़ाव था इसके बाद भी नरेश का बेखौफ दमन जारी था।    नरेश की जाति और उच्च शैक्षणिक योग्यता ही उसके दमन का मुख्य कारण थी। नरेश कैडर में बदलाव की कई बार कोशिश किया पर‌ निराशा ही हाथ लगी थी पर नरेश अपनी प्रतिज्ञा पर अटल था। नरेश को खुद की योग्यता पर विश्वास था। प्रयासरत था, नरेश के प्रयास को देखकर के राज्य प्रमुख  डी.प्रताप जमींदार ने फतवा जारी कर दिया कि नरेश कैडर में बदलाव के लिए कोई आवेदन नहीं कर सकता यानि अफसर बनने की राह में खाई खोद दिए,यह फतवा नरेश को  नहीं मिला पर इस तथाकथित सर्कुलर की आड़ में धमकियां जरुर मिलती रही। बसंत जो स्टेट  पी एण्ड ए इंचार्ज था वह तो आग में मूर्तता था, कम्पनी ने जब उसकी डिग्री की जांच करवाई तो उसकी डिग्री फर्जी निकली । उच्च वर्णिक फर्जी डिग्रीधारी को सामन्तवादी उच्च वर्णिक अफसरों ने स्टेट इंचार्ज बना दिया था। आखिर में कालेकारनामे का उजागर होने के बाद बसन्त को बाहर का दरवाजा दिखाकर इतिश्री हो गई थी ।वहीं दूसरी ओर दलित कानून में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, मैनेजमेंट डिग्रीधारी का  न तो योग्यतानुसार प्रमोशन हो रहा था न कैडर चेंज किया जा रहा था उपर से सीआर खराब कर कभी न प्रमोशन होने लायक बनाने की होड़ लगी हुई थी।

सामन्तवादी मगरमच्छों ने नरेश के कैरियर को खा ही लिया था । कम्पनी में एक बार और कैडर चेंज की विज्ञप्ति जारी हुई। नरेश की नौकरी भी पूरी होने वाली थी, अभी तक कैडर चेंज के जितने भी अवसर आए सभी में भाग लिया पर हर बार सामन्ती मानसिकता के अफसरों ने नरेश को आगे नहीं बढ़ने दिया था। नौकरी के कुछ बरस बाकी थी, नरेश की कम्पनी में शपथ पूरी होने की उम्मीद  थी पर नरेश ने परीक्षा दिया और चमत्कारिक रूप से नरेश आफिसर, मानव संसाधन के पद पर चुन लिया गया पर यहां पर एक शर्त लगा दी गई कि नरेश को कम्पनी के संयंत्र कार्यालय में ज्वाइन करना होगा।

नरेश के सामने बस आखिरी मौका था अपनी कसम पूरा करने का वह सहर्ष कम्पनी के  संयंत्र में जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में संयंत्र कार्यालय में ज्वाइन कर लिया। शुरुआत के पांच महीने तो बहुत अच्छे बीते। नरेश कहता बीस साल मे जो सम्मान कम्पनी के विपणन विभाग में नहीं मिला उससे कहीं ज्यादा सम्मान पांच महीने में मिल गया। नरेश सम्मानपूर्वक ईमानदारी से काम कर रहा था। मि.सुशील साहब जनरल मैनेजर ,मानव संसाधन नरेश के काम की बड़ी प्रशंसा करते थे।वे नरेश  को साहब या नरेश जी कहकर सम्बोधित करते थे। नरेश की नियुक्ति मानव संसाधन के मेडिकल क्लेम्स सेक्शन हो गई। नरेश के काम से पूरे संयंत्र के कर्मचारी ख़ुश थे। इसी बीच सुशील  साहब रिटायर हो गए जो नरेश के लिए सुनामी साबित हुआ।
 हालांकि सुशील  साहब के स्थान पर सी.जी.एम.एच.आर.भी थे परन्तु ज्वाइन्ट जनरल मैनेजर ,निरोध के.डाहू की तानाशाही चल रही थी,वे नरेश के पीछे हाथ धोकर पड़ गये। नरेश की उपस्थिति जातिवादी और क्षेत्रवादी मि.डाहू को फूटी आंख नहीं भा रही थी,  पांच महीना पहले जहां काम करना स्वर्ग जैसा सुन्दर और जहां की फिजा बसन्त जैसी हुआ करती थी वहीं काम करना नरेश को नरक के दुःख जैसा लगने लगा। कुछ ही महीने में मि.डाहू जनरल मैनेजर,एच.आर.बन पर  मि.डाहू का रवैया और खतरनाक हो गया। मि.डाहू नरेश आदेशों का पालन नहीं करता है, एवं अनर्गल झूठे इल्जाम लगाकर मुख्यालय मेल भी कर दिया करते थे। इससे मन नहीं भरा तो ओवरऑल सीआर वेरी लेजी आफिसर लिखकर खराब कर दिये। नरेश स्थानांतरण की कोशिश किया पर स्थानांतरण नहीं होने दिये ।

नरेश को मरणासन्न पिता से मिलने जाने तक की छुट्टी के लिए लोहे के चने चबवा देते। मि.निरोध डाहू स्थानांतरण नहीं होने तो नहीं दिये,और कोशिश करने पर स्थानांतरण के आदेश तो निकले पर डिमोशन के साथ जो नरेश को क्या किसी को नहीं मान्य होता, मुख्यालय के सम्बन्धित अधिकारियों ने मि.  निरोध  डाहू की हर बात को सही माना। मि.डाहू की हिटलरशाही के चक्रव्यूह में उलझे नरेश के मरणासन्न पिता आखिरकार चल बसे । नरेश के खिलाफ निरोध डाहू का आतंक बेखौफ जारी था, बन्दर के हाथ छुरा लगने वाली कहानी वे चरितार्थ  करने लगे। मि.डाहू सी.जी.एम.हो गये थे । वे रोज़ सुबह शाम नरेश को अपने दफ्तर में बुलाकर लोगों के सामने अपमानित करने लगे।यह मि.निरोध डाहू की दिनचर्या बन गई थी। मि.डाहू का अत्याचार बढ़ता जा रहा था,एक दिन मि.डाहू भरे दफ्तर में बंधुआ मजदूर जैसे डांट रहे थे। नरेश के लिए करो या मरो जैसी स्थिति बन गई थी।
नरेश बोला -साहब इस तरह मुझसे काम नहीं होगा।
इतना सुनते ही उनके पिछवाड़े आग लग गई। वे नरेश के उपर दुराचार का आरोप लगाकर मुख्यालय पत्र भेज दिये। दूसरे दिन बेइज्जती के साथ संयंत्र के ट्रेनिंग सेंटर में तबादला कर दिया। ट्रेनिंग सेंटर के इंचार्ज को मि.निरोध डाहू ने भड़का दिया था शुरुआत में ट्रेनिंग सेंटर के इंचार्ज  का  भी रवैया अच्छा नहीं रहा पर जब उन्हें हकीकत का पता चला तो वे नरेश के पक्षधर हो गए।

मि.निरोध डाहू की जातिवादी तलवार नरेश के खिलाफ खिंची रहती थी। आखिरकार हिटलर के पापों का घड़ा भर गया, उसके घोटाले सुर्खियां बनने लगे।जांच भी बैठी घोटाले उजागर भी हुये।  समय कहां छोड़ता है निरोध डाहू को भी नहीं छोड़ा। आखिरकार बेशर्मी और जिल्लत के साथ जातिवादी हिटलर निरोध डाहू दिन रिटायर हो गए,लोग मि.निरोध डाहू के नाम पर थू थू कर रहे थे। 
कमजोर जान कर नरेश और नरेश जैसे लोगों के भविष्य को पतझर बनाने वाले अपमान के दलदल में फंसे मि. निरोध डाहू  कभी न खत्म होने वाले पतझर के आगोश में आ चुके थे। नरेश का ससम्मान रिटायरमेंट जातिवादी मि.निरोध डाहू और उस अमानुष जैसे कई जातिवादी नरेश के नौकरी ज्वाइन करते ही रिटायर करने-करवाने के पीछे पड़े थे  उनके मुंह पर तमाचा था। कहते हैं ना किसी का भला नहीं कर सकते तो बुरा  क्यों ? पर सामन्तवादियो ने किया। अनेक व्यवधानों,प्रतिबंधो और उत्पीड़न के बाद भी नरेश की कर्तव्यनिष्ठा और योग्यता ने रंग दिखाया और नरेश मैनेजर (मानव संसाधन) के पद से रिटायर हुआ जो   दुश्मनों का मुंह काला करने के लिए कम ना था।
रिटायर होने पहले कर्मयोगी नरेश कृतित्व एवं व्यक्तित्व की जय जयकार शुरू हो गई थी। नरेश नायक  बन चुका था और जातिवादी मि.निरोध डाहू और उनके जैसे लोग खलनायक।
नन्दलाल भारती
21/02/2023

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ