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रिश्ते को शिद्दत से जीयें

 
रिश्ते को शिद्दत से जीयें

बवाल कैसा रिश्ते की अमृत से
रिश्ते  शर्त की बंदिशें स्वीकार नहीं करते
रिश्ते निभाने वाले रिश्ते पर जान लुटाना जानते
रिश्ते की तिजोरी को ना चाहे,
धन दौलत ना चाहे कोई वैभव
रिश्ते तो राम, भले हो राम काल्पनिक चरित्र
रिश्ते सबरी के संग, करता गर्व
आज भी अपनी जहां का इंसान
रिश्ते कुसुमित, कृष्ण और सुदामा के
मुट्ठी भर चावल से,
कृष्ण के लिए फीका हुआ जहां का पकवान
कितना निर्मल रिश्ता अमर जहां में,
कृष्ण सुदामा का नाम,
रिश्ते एक अमृत है
पोषित जहान,
रिश्ते की जान,
निश्छल नेह और कुछ नाहिं
गांव से शहर जोड़े मुट्ठीभर चिवड़ा
और
अंजुरी भर मक्का का भुजैना
बदलते समय में अब क्या ?
कमजोर होने लगे रिश्तों के तार
मोहफांश डंसने लगे रिश्ते की जान
ना अब लक्ष्मण जैसा भाई
ना सबरी जैसा नेह
नेह की मूर्तियां मूर्छित होने लगी
मोह-माया की अथाह खाईं में
रिश्ते की ज्योति जलाने में लगी हैं
आओ प्यारे रिश्ते को स्नेह के पुष्प से सींचे
अपने -पराये का त्याग मोह,रिश्ते को शिद्दत से जीयें।
नन्दलाल भारती
१८/११/२०२३

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