लघुकथा: रोज़ा
दीवाली की मिठाई है रईस मियां खा लो, भाभीजी ने कितने स्नेह से बनाया है बिपिन बिहारी बोला।
विपिन भाई मैं नहीं खा सकता रईस बोला।
क्यों नम्रता प्रसाद के घर का है इसलिए विपिन बोला ?
अरे नहीं रे आज मेरा रोज़ा है रईस बोला।
अरे मियां रईस दीवाली मिलन के दिन कौन सा रोज़ा रख रहे हो विपिन बोला।
तुम नहीं समझोगे?
समझा दो मियां?
रमज़ान के महीने का छूटा हुआ रोज़ा कर रहा हूं।
ऐसा भी होता है क्या विपिन पूछा?
तभी तो रोज़ा रखा है।
कोई बात नहीं मियां तुम रखो रोज़ा। मैं तो खाऊंगा। भाभीजी ने अच्छा दीवाली का नाश्ता कराया,एक बार फिर से दीवाली की बधाई। चलो रईस मियां पूर्वोत्तर सहकारी संस्था के दीवाली मिलन समारोह में चलते हैं , चलो नम्रता प्रसाद आपको भी तो चलना है,चलो दीवाली की गिफ्ट लेते हैं फिर अपने- अपने घर।
पूर्वोत्तर सहकारी संस्था के दीवाली मिलन समारोह में पहुंचते ही रईस नाश्ते पर टूट पड़ा, पानी के बाद चाय पेट में उतार कर विपिन से बोला नाश्ता अच्छा है और खा लो ।
खुदा के नाम पर भेदभाव, झूठ-फरेब। मुझ देखो मैं उच्च कोटि का बाभन के लिए नम्रता प्रसाद और उनके घर का दाना पानी सब छूत है, हम बाभन लोग समानता के राह चल पड़े हैं । मियां तुम कैसा रोज़ा रखते हो ? नरेश बाबू के घर का नाश्ता अछूत के घर का था इसलिए तुमने रोज़ा का बहाना बना दिया मियां, दूसरी ओर पूर्वोत्तर सहकारी संस्था का नाश्ता छूत था जिस पर तुम टूट पड़े। खुदा ऐसा फरेब स्वीकार करेगा ? क्या कहते हो रईस मियां ?
रईस मौन था ।
नन्दलाल भारती
२९/०८/२०२३
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