Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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संयोग

 
संयोग
तुम मौत के मुंह से फिर एक बार बाहर आ गयी पर तुम्हारे बेटा बहू फिर नहीं आये  रुक्मणि ?
कब आई की अब आयेगी बहू। बेटा सात साल में एक बार अकेले आया था बस । दादी अस्पताल में पहली बार भर्ती नहीं हूं,सात साल में आठ बार,वह भी सीरियस हालत में । बेटा बहू मेरी मौत के बाद लौटेंगे।
लगता है बहू ने मन्नत मांग रखी है ।
 दादी मां माथा ठोकते हुए बोली क्या कह रही  हो रुक्मणि ?
हां दादी, हम कितनी मुसीबत में दिन बिताये हैं। बहुत दुःख उठाकर बेटा को पढ़ाये-लिखाये । गरीबी के दिन याद करती हूं तो आंखें बरस पड़ती है आज भी । पास कौड़ी नहीं थी,कनक बीमार था। गांव में आने वाला डाक्टर जिसका दवाखाना पास की छोटी सी बाजार में था। उसी डाक्टर का जूठा बर्तन धोयी-माजी तब डाक्टर दो चार गोलियां दिया था वह भी उधार ।
बर्तन धुलवाने के बाद चार गोलियां वह भी उधार दादी मां पूछी ?
हां दादी मां, दुःख इस बात का नहीं है कि मैं बर्तन धोयी-माजी दुःख तो इस बात का है कि वही बेटा 
पत्नी के इशारे पर  नाच रहा है। सास-ससुर का घर-परिवार संवार रहा है।
ऐसा बुरा बर्ताव मां बाप के साथ कनक को तो नहीं करना चाहिए था दादी मां बोली।
मेरा कनक मां बाप को भूल गया।बाप ने लाख तकलीफें उठाकर आगे निकाला । वही कनक बाप के हाथ पर चलनी नहीं रखता है  । बीबी को खुश करने के लिए बड़े-बड़े होटलों में खाना खिलाता है, बहू अपने  पति को खाना बनाकर नहीं खिला सकती। वह सास- ससुर को क्या खिलायेगी, बेशर्म जादूगर मां-बाप की औलाद डंके की चोट पर कह दी थी कि मैं सास-ससुर के लिए रोटी थापने नही आई हूं।
बाप कैसे अमानुष मां बाप की औलाद है तुम्हारी बहू दादी मां बोली।
ऐसी ही चोर उचक्के किस्म के लोग। झूठ बोल कर हमारे सपनों पर डकैती डाली दिया है ठगों ने। बहू को बड़े बड़े होटल में खाना खाना, बड़े-बड़े शहरों का भ्रमण करवा और सोना बस यही ठग की बेटी का काम रहा । 
कहां से ले आयी ऐसी राक्षसी प्रवृत्ति की बहू रुक्मणि दादी मां पूछी।
शहर का क्या दोष दूं। कसूरवार तो कनक ही है। बाप के इलाज पर हर महीने पांच हजार खर्च है, कभी नहीं  पूछे।मैं सप्ताह भर  अस्पताल में भर्ती थी, कभी नहीं अस्पताल के खर्च के बारे में नहीं पूछा। हां भूले भटके फोन कर लेता है वह भी पत्नी की चोरी।घर का  रिपेयर और पुताई नहीं हो पा रही है,छत टपक रही है, प्लास्टर उखड़ रहे हैं। छोटा बेटा स्वर्ण, श्रवण कुमार साबित हो रहा है कहते कहते रुक्मणि रो पड़ी।
बेटी मत रोओ  तसल्ली रखो। छोटा बेटा है ना तुम्हारे साथ दादी मां सान्तवना देती हूं बोली।
हां दादी मां छोटा बेटा का कद बहुत बढ़ गया है।देखो दादीमां  कैसा संयोग है,बड़ा बेटा कनक पत्नी को खुश करने के लिए मां-बाप का परित्याग कर दिया है । स्वर्ण  छोटा बेटा मां-बाप के लिए विदेश की नौकरी का । मेरे बच्चो को दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की के साथ अच्छी नियति भी देना परमात्मा रुक्मणि पल्लू से आंसू रोकते हुए बोली।
बेटवा गुणी है विदेश की नौकरी से कई गुना अधिक कमा लेगा, उपर से मां बाप की दुआंयें जो उस पर बरस रही है, बहुत  नसीब वाला है। बेटवा सदैव खुश और सुखी रहें और तरक्की के पर पर अग्रसर रहे कहते हुए दादी मां प्रस्थान कर गयी।
नन्दलाल भारती
२७/०१/२०२४

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