Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शिक्षक की दावत

 
शिक्षक की दावत
शिक्षक ने दावत रखी है।आपका और नमन का न्यौता है।
मुझे तो पता ही नहीं ।
शिक्षक ने मुझे फोन किया था।
शादी के दिन तो अपमान और पेट में गैस भूख लेकर  वापस आये थे अब कैसी  दावत और सम्मान विनय बोले ?
अनुरोध के साथ  शिक्षक ने न्यौता  दिया है, कुछ खास लोगों की दावत है अनुनय बोला।
नमन -मेरा पेट ठीक नहीं है चाचा, मैं नहीं जाऊंगा।
अनुनय के समधियाने की मूंछ का सवाल था वह नाराजगी के भाव से बोला दवाई ले लो।
विनय बोले-चाचा कह रहा है दवाई ले लो, चलेंगे अभी तो शादी के दिन का अपमान पचा नहीं है, कहीं एक और अपमान की न्योता तो नहीं।
बाप बेटे कमाईलपुर शिक्षक की दावत पर उसके घर गये । हवेली के बाहर सुनहरे गेट के बगल में,कच्ची सड़क के किनारे, जहां रह रह कर बवण्डर जैसी धूल उठ जाती थी, वहीं प्लास्टिक की कुर्सियों पर विनय और नमन को बैठा गया।चाय और पकौड़े परोसें गये, धूल के साथ दो दो घूंट चाय और पकौड़े दोनों ने चखे, जबकि शिक्षक का बड़ा घर था पर परायों जैसा बर्ताव हुआ शादी के दो दिन बाद भी।
नमन बोला पापा घर चलें।
चलना तो तुरंत चाहिए पर शिक्षक से बोल दो फिर चलेंगे नहीं तो तुम्हारे काका साहब मूंछ नीची हो जायेंगी।
नमन शिक्षक से बोला भाई साहब हम घर जा रहे हैं, इजाजत दो।
खाना तैयार है जीजा जी।खाकर जाओ शिक्षक बोला।
अनुनय की शान के लिए  और अपमान का बोझ विनय नमन से धीरे से बोले।
खाना का इन्तजाम बरदौली जैसे कमरे में था।उसी कमरे में एक तरफ शिक्षक दावत पर बुलाकर खुद खराटे भरने का स्वांग कर  रहे थे, साथ में खाना नहीं खाया। ना खाने की हिम्मत के बाद भी थोड़ा थोड़ा बाप बेटे खाये रिश्तेदार की आन के लिए और अपमान का हैवी डोज लेकर  वापस आ गये।
अनुनय बोला कैसी रही दावत नमन बेटा।
शर्मनाक,तीसरी बार पापा की बेइज्जती नहीं करवाना चाचा।
नन्दलाल भारती
१०/०३/२०२४





Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ