श्रद्धांजलि
लाश अग्नि को समर्पित करते ही धूं-धूं कर जलने लगी।दाह संस्कार में आए लोग गुट बनाकर श्मशान आत्मदर्शन के ज्ञान बांटने में जुट गए , कोई राजनीतिज्ञ ज्ञान बांट रहा था तो कोई सामाजिक बुराईयों की पोल खोल रहा था कुछ जीवन मरण के मुद्दे पर चर्चारत थे ।
एक गुट जरा हटकर था जो मृतक के बड़े बेटे और बड़ी बहू की प्रशंसा कर रहा था जो आज के युग श्रवण कुमार जैसे थे।
एक सज्जन बोले भाई साहब आज आसमान छूती महंगाई के दौर में बेटे को कहा फुर्सत, बेचारा बेटा तो नौकरी चाकरी में फंसा रहता है।वह बेचारा चाह कर भी नहीं कर सकता पर बंगाली बाबू की बहू ने बहुत सेवा किया है।
बंगाली बाबू दो साल से बिस्तर में पड़े थे। साफ-सफाई, नहलाना धुलाना खाना -पानी,दवाई सब कुछ की जिम्मेदारी उच्च शिक्षित बड़ी बहू ने बड़ी वफादारी से निभाई है।
पत्नी ने पूरे समर्पित भाव से पति की सेवा की है, इसमें दो राय नहीं । बहू के हाथों ससुर की सेवा तो आज के जमाने की बहुओं के लिए नजीर है।
बंगाली बाबू ,बहू के हाथों की सेवा से तर गये। सच पुत्रबहू हो तो बंगाली बाबू की बहू जैसी।
मुरली दादा बोले बहू भी तो बेटी होती है।ससुर की विरासत पर राज तो उसी को करना है।
आधुनिकता की इस दौर में हर बहू ना तो बहू होती है और ना बेटी। बहू का बेटी बनना दुर्लभ सा हो गया है संकठा प्रसाद बोले।
सही कह रहे हो। कुछ बहुये तो आते ही कैकेई बन जाती है शिवराज आगे कुछ बोलते इतने में रघु की आंखें बरस पड़ी।
क्या हुआ रघु भैया क्यों रो रहे हो संकठा पूछे?
मैं कनपुरिया ठग की बेटी अपनी बड़ी बहू की क्या तारीफ़ करूं ? वह तो आते ही परिवार के लिए अभिशाप बन गई है। हम दोनों के मौत की मन्नत मान बैठी है।
हे भगवान ऐसी दुश्मन बहू दुश्मन को भी न देना शिवराज बोले इतने में श्रद्धांजलि सभा का ऐलान हो गया।
नन्दलाल भारती
15/05/2023
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