Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचना काफी नहीं होता

 
सोचना काफी नहीं होता
बरखुरदार बस अच्छा,
सोचना ही काफी नहीं होता 
त्याग करना पड़ता है,श्रम करना पड़ता है 
पसीना बहाना पड़ता है,
कुछ शौक भी छोड़ना पड़ता है
बहुत कुछ सहना और करना पड़ता है
अच्छा करने के लिए...... 
तपना पड़ता है बरखुरदार
घर परिवार में समाज में और
देशहित में भी
तभी निखरता है आदमी
सोने की तरह ताप सहकर........
बस सोचना काफी नहीं होता है
करना पड़ता है
कई बार त्याग करना पड़ता है
जाति-धर्म वंश के गुमान का मोह भी
छोड़ना पड़ता है समानता के लिए.........
ऐसे लोग ही कुन्दन होते हैं
सोचने के साथ कुछ अच्छा करना पड़ता है
अच्छा करते हुए बूढ़ा होना तभी अच्छा लगता है,
अच्छा करना दूसरों की मुस्कान के लिए
सुख देता है बरखुरदार..........
सब जानते हैं 
मौत प्रतिपल शिकंजा कस रही है
चाहे कितनों कर लो भक्ति-अंधभक्ति  व्रत उपवास
मौत नित आ रही है पास और पास
बरखुरदार जिंदगी के पल को 
आत्मीयता से  जीना पड़ता है.......
नेक नीयत से जीते हुए
आगे बढ़ना धरती का बड़ा सुख है 
बरखुरदार आ जाओ
कुछ अच्छा करें ,
समतावादी समाज और देश के लिए
कुछ नेक इरादे से करना
किसी बड़े पुरस्कार से कम नहीं है
मैं तो यही कहता हूं
आप क्या कहते हैं बरखुरदार ?
नन्दलाल भारती
05/07/2023

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