Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तन्हाईयां

 

तन्हाईयां काटे नहीं कटती
बस लू की तरह बहती
झुलस जाता मन
पसीज जाती आंखे बार-बार
कुछ लोग जानते है
वनवास के शिकार जो हुए है
अपनी जहां कहती है
तन्हाईयों में आग के गोले बरसते है
आत्मी दुखी होती है
मानो दिल पर हथौड़े पडते हैं
मन कहता है छोड दे यार ये जहां
कोई नहीं अपना यहां
दिमाग कहता नही-नहीं बिल्कुल नही
क्यों डरते हो
यहां कोई दे नहीं सकता है
उठो आगे बढो ना कर फिक्र नादान
तन्हाईयों से क्यों डरता है
हौशले की उड़ान से
तू आसमान तो छू सकता है।

 


डां नन्दलाल भारती

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