लघुकथा: तपते आंसू
भाई साहब बीटिया का ब्याह हंसी-खुशी सम्पन्न हो गया ?
जी देव शिरोमणि जी, इतनी यादगार शादी हुई है कि आसपास के गांवों में सालों तक याद रहेगी। लोग कहेंगे बेटी-बेटा का ब्याह मोतीलाल जैसा हो। भाई ने खूंटा गाड़ दिया है।
सब कुछ आप और देवकी भौजाई के त्याग का फल है।
अरे नहीं देव शिरोमणि जी,ना मैंने कुछ किया नहीं मेरे बेटों -बेटी ने । भाई,भाई के बेटे शशांक, शशांक का मां लूटवन्ती और पढ़ी-लिखी पतोहू फीतू ने किया है।बची खुची कमी शशांक के ननिहाल ने चरकर पूरा कर दिया। मेरा योगदान न तो शशांक की प्रबन्धन की उच्च शिक्षा और नहीं उसके ब्याह में रहा और न अब पुष्पांशी के ब्याह में।
भाई हीरालाल जी आपने कुछ नहीं किया। दुनिया जानती है आप और देवकी भौजाई के त्याग और तपते आंसू की तपिश । मोतीलाल, लूटवन्ती से लेकर उसके बच्चों के लिए बरगद की छांव रहे हैं।पालन पोषण किये, उच्च शिक्षा देने के लिए खुद की ख्वाहिशों तक का सुलगा दिये। शशांक को आफिसर आपने बनाया है। मोतीलाल को छप्पन इंच की छाती तानने लायक भैय्या आपने अपने संघर्ष और त्याग से बनाया है।
देव शिरोमणि साहब कोई नहीं मानता। आपने क्या किया, क्या नहीं,जिसकी हाथी दुनिया उसी को जानती है।
दुनिया जानती है मानती भी है,भले ही अच्छे दिनों के मद में लोग भूला दे, देव शिरोमणि जी बोले।
हमारा कोई योगदान होता तो शशांक की मातोश्री ज्ञान और सम्वृध्दि की जीवित देवमूर्ति लूटवन्ती जी ने तो शशांक के ब्याह में और अब पुष्पांशी के ब्याह में मेरी देवकी को दस लोगों के सामने बेइज्जत करतीं क्या ? देव शिरोमणि भाई साहब दुनिया परायी है तो लोग कैसे अपने हो सकते हैं।
भाई हीरालाल जी हम लोग तो आप और देवकी भौजाई के समर्पण और त्याग को प्रणाम करते हैं ।
नन्दलाल भारती
१४/०६/२०२४
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