माना कि हमें
अपनी जहॉ ने
कैद नसीब का मालिक ,
बना दिया ,
सपने -अपने बोझ हो गए ,
बहारे दूर और दूर होती गयी ,
सांस भरने का आधार
अपने पास बस ,
कर्म -श्रम का औजार,
शेष रहा ,
बार-बार हार कर भी
हौशले से ,
जीतने की कोशिश में ,
टूट-टूट उठता रहा ,
भले ही अपनी जहॉ
मान ले ,हारा हुए हमें
हमने तूफ़ानो की छाती पर ,
हमारा नाम लिख दिया।
डॉ नन्द लाल भारती
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