लघुकथा: उल्टे पांव
रामनाथ की ललकार सुनकर सुभौती पीछे मुड़कर बोली क्यों बुढ़ऊ पगला गए हो का ?
मैं नहीं मालिक ........तुम्हें बुला रहे हैं।
क्यों ?
यह तो तुम ही चलकर पूछो क्यों बुला रहे हैं, मैं तो नौकर ठहरा मेरी क्या औकात ?
सिर का बोझ पटक कर तुरंत आती हूं।
बोझ लेकर चलना पड़ेगा।
नहीं गयी तो ?
मालिक के कुत्ते आ जायेंगे।
बुढ़ऊ कान खोलकर सुन लो मेरे सिर पर अधपके धान का जो बोझ है, वह मेरे खेत का है, चोरी का नहीं।
जानता हूं सुभौती पर मालिक को लगता है।
चोरी का है, मालिक की काश्तकारी मैं लूटकर ले जा रही हूं। मैं तुमको ये सब क्यों बता रही हूं,चलो मालिक का ही मुंह झोंकार देती हूं, बच्चे थोड़ी देर और भूख बर्दाश्त कर लेंगे।
सुभौती धान का बोझ मालिक सूरजनाम के आगे पटकते हुए बोली देखो तूम्हारे कौन से खेत का है बाबू ?
मेरे नहीं तो तुम्हारे कौन से खेत में ऐसा धान लगा है?
मेरे पास लूट की काश्तकारी नहीं है।दो बीसा खेत हैं,उसी खेत का है।
चोरी उपर से सीना जोरी सूरजनाम गुस्से में बोले।
बाबू मजदूर ना चोर होता है ना कामचोर। चोरी डकैती, अन्याय, अत्याचार, शोषण -उत्पीड़न तुम सफेदपोशों का पेशा है,हम हाशिए के लोग भूख और नुकसान बर्दाश्त कर लेते हैं अपमान नही। बच्चे भूखे हैं इसलिए अधपका धान काटकर ले जा रही हूं। बाबू अब अपना देश अपना संविधान है,ना देश गुलाम है ना मेहनतकश,सुभौती पत्थर पर हंसिया रगड़ते हुए बोली।
सुभौती का क्रोध देखकर सूरजनाम का चेहरा पीला पड़ गया। सूरजनाम उल्टे पांव हवेली की ओर भाग लिए।
सुभौती अपने खेत के अधपके धान का बोझ शान से उठायी और अपने घर की ओर चल पड़ी जहां उसके भूखे बच्चे बाट जोह रहे थे।
नन्दलाल भारती
26/01/2023
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