कविता: उम्र बढ़ रही है।
बूढ़े हो रहें हो बाबू जी
नहीं.... नहीं.... बिल्कुल नहीं
उम्र बढ़ रही है
इतना सही है बस
बढ़ती उम्र रोकी तो नहीं जा सकती
उम्र का लुत्फ उठाया जा सकता है
बूढ़े हो रहे या उम्र बढ़ रही
ये विचार है बाबू जी
नकारात्मक - सकारात्मक
उम्र बढ़ रही उत्साह लगता है
मन आसमां छूने को कहता है
मस्तिष्क को सक्रिय रखना है
बूढ़ी सोच बूढ़ा हो रहा हूं से
दूर -दूर रहना है बाबूजी
चिंता फिकर से रहना है दूर
खुश रहने के लिए
कसरत योग प्राणायाम करना है
लिखना और पढ़ना है
और खुश रहना है
महफ़िलों में बैठो,
कवि, लेखकों को सुनो
फिर क्या मिल जायेगा?
क्षितिज नया अपना बाबू जी
सुनो गुनों और मन की बातें
उतार दो कागज पर
भूल जाओगे बूढ़ा हो रहा हूं
रह जायेगा याद
उम्र बढ़ रही है, है ना चमत्कार बाबू जी
चिंता की चादर दूर फेंको
बात करो,संवाद करो
क्या सगा क्या बेगाना जारी रखो
संवाद बाबू जी,
बढ़ती उम्र में ख़ुश रहने के और है उपाय
प्रकृति का आनंद उठाओ बाबू जी
बढ़ती उम्र अभिशाप नहीं
वरदान बनाओ बाबू जी
निकल जाओ किसी सफर पर
या जाओ बूढ़े बरगद की छांव
या पोखरी तालाब के किनारे बैठकर
पानी में कंकर उछाल दो मन से बाबू जी
थम जायेगी बढ़ती उम्र भी
कुछ देर के लिए ही सही
मज़ा बहुत मजा आयेगा
मन प्रफुल्लित हो जायेगा
और है कुछ करना, इतिहास रचना
सामाजिक उत्थान और परोपकार
मानवीय समानता का काम करो
सृजन की ओर बढ़ो
सृजन की दुनिया को है आपका
इन्तजार बाबू जी
मनोबल बढ़ेगा, चिंता का बोझ घटेगा
थाम लो सृजन के औजार बाबू जी
उम्र बढ़ रही तो बढ़ने दो
बढ़ती उम्र का उठाओ लुत्फ बाबू जी
बढ़ती उम्र में रच दो,
नया आसमां बाबू जी
बूढ़े हो रहें हो
नहीं.... नहीं.... बिल्कुल नहीं
उम्र बढ़ रही है
छूना है बाकी का आसमान कह रही है
उम्र बढ़ रही है............... बाबू जी
नन्दलाल भारती
१९/०७/२०२३
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