उतरन
देखो रघु चाचा,सचिदानंद मेरा उतरन पहनते-पहनते बड़ा आदमी बन गया है।आज मेरा ही जीना मुश्किल कर दिया है।
क्या कह रहे हो अभय ? तुम्हारे काका-काकी ने तुम जब सिर्फ छः दिन के थे तब से तुम्हें पाले-पोसे, जहां तक हो सका पढ़ाये -लिखाए, तुम्हें काबिल बनाये, इतना ही नहीं अपनी मेहनत-मजदूरी से बनाए घर में तुम्हें हिस्सा भी दे दिये। तुम इतने स्वार्थी निकल गये कि तुम पूरा घर हड़पने के लिए कमर कस लिये हो।
काका ने अपने भाई के साथ अपना फर्ज़ निभाया है अभय बोला।
तुम्हारा क्या फर्ज बनता है अभय बेटा ? तुम अपने चचेरे भाई को अपना उतरन देकर ताना मार रहे हो।
इतना ही बड़ा तुम्हारा दिल है। काश, बेटा अपने काका-काकी के विशाल दिल को समझे होते तो तुम भेड़ा और भतीजे की कहावत को बदल कर रख देते बेटा अभय ?
नन्दलाल भारती
३०/१०/२०२३
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