Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वनवास

 

जुदाई मुझे विषपान लगती है
तुम्हारे साथ भी ऐसा ही होगा
मेरा विश्वास है विश्वास के सहारे
हम साथ-साथ
जीवन पथ पर अगसर हैं ‘ शनै-शनै
वनवास तनिक भी नहीं भा रहा है
तुम्हारी तो नींद भी छिन गया होगी
तुम्हारे जख्म का एहसास
चैन नही लेने देता मुझे
तुम हो कि हर दर्द भूल जाती हो
कुटुम्ब के लिये परिवार के लिये
वनवास यानि स्थानान्तरण की
दास्तान भी डरावनी है
दमन शोषण नसीब के कत्ल
योग्यता के तिरस्कार के बाद
53वें बरस में वनवास
प्रसव पीड़ा से कम नही
तुम हो कि ढाढस देने के लिये
हमारे संघर्ष और योग्यताओं का

 

 

जीवनदान मानने लगी हो
यही तुम्हारी दूरदृष्टि हमें
दृढ़निश्चया बनती है
मैं भी जानता हूं तुम भी जानती हो
हम एक दूसरे के दर्द से
अच्छी तरह वाकिब है जानकर भी
जुदाई का विषपान कर रहे हैं
परिवार के भले के लिये
मानता हूं
आस्था और विश्वास के भरोसे
वनवास का विष ढरक जायेगा एक दिन
और हम होगे साथ-साथ
सदा के लिये

 

 

डां नन्दलाल भारती

 

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