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वरदान

 

Nandlal Bharati 

Sat, Aug 5, 6:16 PM (11 hours ago)







लघुकथा: वरदान

सुना था लोग हवा से बात करते हैं। आज देख रहा हूं सूरजन तुम हवा में लिख रहे हो श्रीपति बोले ?
हां काका ताऊजी को खत लिख रहा हूं।
मरे हुए व्यक्ति को खत ?
हां काका ?
तुम्हारा खत कैसे पहुंचेगा ?
काका ताऊजी तक पहुंचने के लिए तो हवा में लिख रहा हूं।
अरे वाह बेटा ? क्या लिख रहे हो ?
ताऊजी की दी गई चवन्नी,अठनी, रुपए और दस रुपए के प्रति कृतज्ञता।
चवन्नी अठनी के बदले कृतज्ञता जिसके गुजरे चालीसों साल हो गए है।
काका, ताऊजी के हाथ की चवन्नी अठनी वरदान थीऔर आज भी है ।
मेरी तरक्की ताऊजी के वरदान का प्रतिफल है।
वाह बेटा ताऊजी के उपकार तुम नहीं भूले, लोग मां-बाप तक को भूला देते हैं।
काका मेरे मां -बाप मेरे लिए भगवान हैं पर ताऊजी  कम नहीं।
बेटा तुम्हारे ताऊजी सौभाग्यशाली थे कि तुम्हारे जैसा उनका भतीजा है। काश  मेरा भी होता ? ताऊजी के प्रति एहसानमंद,सुरजन तुम सदैव यशस्वी रहो,यह मेरा वरदान है।
नन्दलाल भारती
०३/०८/२०२३

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