कहानी: वर्चुअल मर्डर/नन्दलाल भारती
ज्ञान दास कभी स्कूल नहीं जा पाये,आंख पूरी तरह खुली भी नहीं थी कि गांव के जमींदार रामराज की चौखट पर बतौर बंधुआ मजदूर बांध लिये गये। बच्चा से कब जवां हुआ उसे पता नहीं चला। इसी बीच सगुनी देवी जीवन में आ गयी। देखते ही देखते छ: बच्चों -लक्षवती,नानावती,सुखवति, देवमति, कदानन्द, चेतानन्द के ज्ञानदास और सगुनी मां-बाप बन गये।
जमींदार की चाकरी और जम्बो परिवार ने एकदम से बुढौती की दहलीज पर पटक दिया।
जम्बो परिवार को पालने और बच्चों के शादी ब्याह करने में ज्ञान दास और सगुनी टूट चुके थे। ज्ञानदास और सगुनी ही नहीं पूरे जम्बो परिवार की उम्मीद कदानन्द पर टिक गई । कदानन्द बचपन से अभाव और जातिवाद के असहनीय वर्चुअल मर्डर को पीठ पर लादे पल-बढ और स्कूल में भी अश्पृश्यता का कोप भाजन होते हुए भी वह खेतों में मेहनत मजदूरी करते,नहर पर माटी फेंकते-फेंकते वजीफा की नाव पर सवार होकर बीए की परीक्षा पास कर, देश की राजधानी दिल्ली पहुंच गया था,जहां कदानन्द रोटी-रोजी के लिए भूखा-प्यासा श्रम की मण्डी में कूद गया था।
ज्ञानदास को बेटा कदानन्द के दिल्ली से मनिआर्डर आने की बड़ी उम्मीद रहती थी। वहां कदानन्द रोटी के लिए तरस रहा था। कदानन्द को भाई चेतानन्द और तीन बहनों के ब्याह का भार भी उठाना था। कदानन्द देश के दिल दिल्ली दिल में उतर कर बोझा ढोता,मंडी में मजदूरी करता। पांच साल आंसू से रोटी गीली करने के बाद भी पेट भर रोटी का इंतजाम नहीं कर पा रहा था परन्तु फर्ज पर अडिग था कदानन्द ।
कदानन्द बेरोजगारी का कोढ़ छाती पर लादे गांव लौटने से बेहतर मर जाना समझता था। बीए पास करने के दो महीने के बाद तो कदानन्द के बापश्री ज्ञान दास का झगड़ा,डांटफटकार, मार-पीट तक करने की नौबत, मांतोश्री सगुनी का बात-बात पर उलाहना और ताना, गांव की बूढ़ी कप्तान काकी के बार-बार समझाने की कोशिश से कदानन्द के मन में आत्महत्या तक के विचार आने लगते थे ।कदानन्द की पत्नी फर्जावती मानसिक सपोर्ट देती थी। ऐसा नहीं था कि कदानन्द अपने कुनबे की गरीबी से अनभिज्ञ था।कदानन्द और फर्जावती श्रुति के मां-बाप बन चुके थे। कदानन्द जबर्दस्त आत्मिक मानसिक पीड़ा से गुजर रहा था।
परिवार के छः दिन के पिल्ले को पालने और उसके शिक्षा और ब्याह गौना तक करने की ग़लती ज्ञानदास और सगुनी ने कर दिये थे। यह पिल्ला सांड होते ही परदेस चला गया,दो पैसा कमाते ही ज्ञानदास पर हमला बोल दिया। ज्ञान दास और उनके परिवार को बेघर करने के लिए पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी तक दौड़ाने लगा था।यह सब का भार भी कदानन्द को जीने नहीं दे रहा था। आखिरकार दिल्ली का पिघलता दिल नहीं देखकर वह मां अहिल्या की नगरी पहुंच गया । इस दौरान फर्जावती अपने बाल-विवाह की निशानियां चांदी के हंसुली सहित अन्य जेवर भी चेतनानंद की पढ़ाई और केस मुकदमे में गिरवी रखवा दिया जो कभी वापस नहीं आये। वही छ: दिन का बच्चा बड़ा होकर सीसा भर जमीन उसी को हड़पने के पुलिस-थाना, कोर्ट-कचहरी, और गुन्डों तक सहारा लेकर इतना तंग कर दिया की जाति-परजाति के लोग अरे भयकुमार नेकी के बदले क्यों चच्चा ज्ञानदास और उसके बच्चों की जान लेने और उसकी छांव हड़पने की असम्भव कोशिश कर रहे हो। वैसे तुमने तो ज्ञानदास की कमर तोड़कर वर्चुअल मर्डर कर ही दिये हो।
फर्जावती के इतने बड़े त्याग से चेतनानंद कुछ नहीं कर पाया । अहिल्या नगरी में भी कदानन्द तीन साल संघर्षरत रहा, अन्ततः मां अहिल्या ने गले लगा लिया,एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी में कदानन्द को मामूली सी क्लर्क की नौकरी मिल गई। वह पढ़ाई के दौरान भी मेहनत मजदूरी भी कर लेता था,वह मुश्किलों को ढोता हुआ, भाई-बहनों के ब्याह गौने का फर्ज मां-बाप से कंधा मिलाते हुए पहले ही पूरा कर लिया था। नौकरी लगने कुछ साल फर्जावती के पेट में अभयदेव पलने लगा था, श्रुति और अजयदेव स्कूल जाने की उम्र पार कर रहे थे। चेतनानंद और फूंकवती का बेटा अजर भी चार साल का हो गया था।
पढ़ाई शेरनी का दूध है कि बात ज्ञानदास और सगुनी माई को भान हो गया था। माता-पिता की आज्ञा से फर्जावती, बेटी श्रुति और बेटा अजयदेव को अच्छी शिक्षा के उद्देश्य से शहर ले आया। श्रुति और अजयदेव स्कूल जाने लगे। मां-बाप,खुद कदानन्द की पत्नी बेटी, बेटा चेतनानंद के परिवार के कुल चार सदस्यों को भी कदानन्द पीठ पर लादे मंदगति से परन्तु सधी गति से चल रहा था।
स्कूल जाने की उम्र के बाद अजरदेव को भी कदानन्द अच्छी पढ़ाने के लिए शहर ले आया। मां-बाप,भाई और चेतानन्द के परिवार को अपने बच्चों की तरह पाल-पोस रहा था। कदानन्द शिक्षा-दीक्षा तक की जिम्मेदारी खुद की पीठ पर उठाए तरक्की के पथ पर ले जा रहा था।
बेटा अजयदेव दूरसंचार अभियंता बन कर नौकरी भी ज्वाइन कर लिया। नौकरी ज्वाइन करने के बाद अजयदेव का दहेज रहित बौद्ध परिवार के बुधलोचन और राजखुमारी की बेटी आकण्ठा के साथ सम्पन्न हो गया परन्तु कानपुर की यह दुल्हन आकण्ठा अभिशाप बन गई।
अजयदेव को उसकी दुल्हनिया अर्श से फर्श पर चारोखाने चित पटकर अजयदेव को अपने माता-पिता का श्रवण कुमार बना लिया खुद लूट की रानी बन बैठी आकण्ठा।इधर अजरदेव तो चेतनानंद का बेटा था परन्तु पूरा शहर कभी नहीं समझ पाया कि अजरदेव कदानन्द का बेटा नहीं है। अजरदेव को कदानन्द उच्च पढ़ाई-लिखाई तो बंगलौर के बड़े संस्थान में पूरी करवाया। शिक्षा पूरी करते ही अजरदेव मैनेजर बन गया। इसके बाद मानसिक पिछड़े परिवार की बेटी फूंकवती अजरदेव की मां की आंख उलट गई। कदानन्द फूंकवती की नादानी को नजरंदाज तो पहले से ही कर रहा था क्योंकि वह कदानन्द जो अपनी कमाई से मदद करता था,उसी का कुछ हिस्सा लोमड़ी मायके वालों पर लूटा रहीं थी। उसके भाई उस पर अठनी-चवनी भी नहीं मुंह मारते थे। फूंकवती मुक्तहस्त लूटा रहीं थी।
चेतनानंद ट्यूमर की बीमारी से पीड़ित हो गया था, चेतनानंद का ट्रीटमेंट बहुत महंगा था जो कदानन्द की जिम्मेदारी थी,वहीं अजरदेव की मां फूंकवती की आंख अजरदेव के नौकरी के तुरंत बाद उलट गई थी। कदानन्द अपने फर्ज पर अटल था। बड़ी बेटी श्रुति और अजरदेव का ब्याह पहले ही हो चुका था।क्रम के अनुसार अब अजर की बारी थी।कदानन्द के अजर के ब्याह की बात करते ही चेतनानंद गांव से दस किलोमीटर दूर खुद की जांची -परखी लड़की बीएड पास,कैरिअर बनाने में पूरी तरह नाकामयाब रीता देवी को बहू बनाने पर अड़ गया।इधर अजर अपने मनपसंद की शहरी लड़की से ब्याह करना चाहता था, परन्तु जब अजर के इरादे का पता चला तो कदानन्द ने समझाया वह बड़े पापा की समझाइश की कद्र किया और मान गया।
अजर की शादी का पूरा खर्च श्रुति और अजरदेव के ब्याह की तरह खुद कदानन्द उठाया।
अजर के ब्याह में मिले दहेज को देखकर फूंकवन्ती जैसे पगला गयी। वह गांव में दहेज का बखान कूद-कूद करने लगी,अब उसका जेठ-जेठानी के त्याग पर खंखार कर थूकने का मन होने लगा था। वह गांव वालों और रिश्तेदारों से बावरी की तरह कहती अगर रीता रानी के मायके से इतना भारी दहेज नहीं मिलता तो मैं अजर का ब्याह कैसे करती ? कदानन्द, दूल्हा अजर और निकट के रिश्तेदारों को किसी ने खाने तक को नहीं पूछा। हां अजर के ननिहाल पक्ष की दमाद की तरह सेवा हूई थी, उन्हें अंग्रेजी दारु से पूरी तरह निहाल कर दिया गया था।
दूल्हन की विदाई के बाद बहू-भोज के दिन अजर के मामा मास्टर साहब ने तो अपनी हरकतों से सबको अचम्भित कर दिया, हुआ यों कि आंधी और बरसात आ गई, तम्बू उखड़ गया, सभी आमंत्रित लोग जिसको जहां घर और पक्की बैठके मिली भर गये, भीड़ काफी थी,कुछ लोग आसपास के घरों में भी शरण लिये,कदानन्द के घर और बैठकें में खड़ा होने तक कि जगह नहीं थी।इसी भीड़ में मामाजी ने बैठकें में ही अपने कुछ खास रिश्तेदारों के साथ दारू की नंगी महफ़िल जमा लिया।
फूंकवती के मायके वालों की खासियत यह थी कि वे कभी भले ही नहीं पूछते थे पर अजर की शादी में शामिल होने के लिए मैटाडोरो में भर भर कर आये थे,हो सकता है, मायके वालों को अपना बिगड़े हुए रुतबे को बनाने देने के लिए खुद ने किराया दिये हो, फूंकवन्ती बुध्दि से थी तो लोमड़ी। अठनी किसे के खिस्से से नहीं सरकी थी वे बड़ी बड़ी गाड़ियों में कैसे आये होंगे । दूर-दराज के रिश्तेदार और गांव के लोग मास्टर दारु-माइण्ड मामा के अश्लील कृतित्व पर थू-थू कर रहे थे,दारु की बोतलों को खोलकर,कुछ मास्टर के साथ आये उनके सगो ने दारू इतने नशे में डूबे अपनी पेंट में मूत मूत दिये। दिल खोलकर फूंकवन्ती ने मायके वालों पर धन,और कपड़े-लत्ते आदि लुटाईं, छोटी ननद देवमति तो भौजाई फूंकवन्ती और भाई चेतनानंद के बर्ताव से रोते हुए गई थी।
रीता देवी बीएड पास के हाथ की मेंहदी फीकी भी नहीं पड़ी थी कि सगी सास फूंकवन्ती को फर्जावती के खिलाफ भड़काने लगी, इसका असर फूंकवन्ती पर तुरंत पड़ने लगा,वही जेठानी फर्जावती जो कुछ घंटे पहले मां जैसी थी, उसके रिश्तेदारों के सामने ही अपमानित करने लगी। फूंकवती में अफसर बेटा अजर के ब्याह के बाद आये बदलाव को देखकर सभी आश्चर्यचकित थे।
सुहागरात के बाद से तो रीता देवी सगी सास के बदले व्यवहार से बहुत खुश थी।शायद सुहागरात की रात अजर से जिन कदावन्त की वजह से पला बढ़ा और पढ़ा था। उन्हीं कदानन्द और फर्जावती और उनके परिवार को जड़ से उखाड़ फेंक कर खुद का कब्जा जमाने की कसम भी ले ली थी । सफल भी हो गई थी। अजर और फूंकवती रीता देवी के कब्जे में आ गये थे ,श्रोती को तो ब्याह के पहले ही मुट्ठी में कर चुकी थी।
अजरदेव के ब्याह के सप्ताह भर बाद कदानन्द का परिवार शहर वापस जाने को तैयार था,अजर भी उनके साथ हो लिया,अभय ने सबको अपने बहन, बहनोई,तीन साल की भांजी को केरला से हवाई जहाज से अजर की शादी में शामिल होने के लिए बुलाया था, दामादजी ने अजर की शादी में दिल खोलकर कर लूटाये। बहू रीता देवी को बहुत कीमती आभूषण भी उपहार में दिए थे।फूंकवन्ती के दोयम दर्जे के व्यवहार से सभी दुखी थे, श्रुति भी आंसू लिए पति के साथ ससुराल केरला चली गयी। ब्याह का खर्च कदानन्द ने अभय ने अपने हाथों से किया था। इसके बाद भी कदानन्द को अजर की ससुराल से लेकर गांव तक अपमानित होना पड़ा था।
फर्जावती देवरानी फूंकवन्ती के व्यवहार से फूट-फूटकर रोयी भी।यह सब उन्ही के कारण हो रहा था,जिनके जीने और आगे बढ़ने तक के लिए जी तोड़ मेहनत कदानन्द और फर्जावती ने किए थे। पैंतालीस साल के उपकार के बदले दहकता घाव लेकर कदानन्द अपने परिवार के साथ शहर वापस आ गया था।
बहू की पाठशाला में फूंकवन्ती, अजर और श्रोती खुद चेतनानंद बर्बादी के गुर सीखने -पढ़ने लगे थे। बहू रीता देवी ने डोली से उतरते ही यह सब कारनामा शुरू कर दी थी जो इस परिवार मे कभी नहीं हुआ था,आदर सम्मान पर ग्रहण शिक्षित बहू रीता ने लगा दिया। धीरे-धीरे संवाद भी लकवा ग्रस्त होने लगा।
दो साल बाद चेतानन्द ने कलेक्टर बनने वाली श्रोती का ब्याह एक अस्थाई कर्मचारी से तय कर लिया। यही श्रोती पहले अच्छे अच्छे रिश्ते को किक मारी थी । कदानन्द ने श्रोती के ब्याह की योजना पहले बना लिया था परन्तु श्रोती कलेक्टर बनने के बाद ब्याह करेंगी, जिद पकड़ ली थी। फूंकवती ने बहू रीता की कूटनीति के झांसे में आकर कदानन्द और फर्जावती को श्रोती का दुश्मन साबित करने में लग गयी थी।
रीता देवी ने आते ही झटके दे देकर पारिवारिक सम्बन्धों में भूकंप ला रही थी। श्रोती रीता देवी के इंफ्लूएंस में बुरी तरह आ गई थी। उसका विद्रोही तेवर डरावना हो गया था,कदानन्द और उसके बच्चों के गांव जाने पर रोटी तक ठीक से नहीं मिल पाती, श्रोती रो-रोकर कहती मैं तीनों टाइम थाप कर क्यों दूं, क्या मैं सबकी नौकरानी हूं। रीता देवी के हाथ में न तो पानी लगता न जमीन पर पैर पड़ते उनके पैर से कभी मोजे नहीं निकलते थे। शादी के पहले मायके में गोबर उठा रही थी। ससुराल में आते ही महारानी बन गयी थी।
कदानन्द को कम्पनी की नौकरी से रिटायर हुए तीन साल हो रहे थे।वह बहुत बीमार रहने लगा था। श्रोती के ब्याह के दिन की सही -सही जानकारी कदानन्द को नहीं दी गई थी। तीस साल से अजर भी कदानन्द की देखरेख में पल-पढ़ और प्रगति कर रहा।अब वही अजर दफ्तर का ही नहीं परिवार का भी खुद बिग बॉस बन रहा था अब कदानन्द के कद की जड़ें उखाड़ने पूरी तैयारी हो गई थी।
रीता देवी की तो तूती बजने लगी थी।रीता देवी अपने सास-ससुर,ननद श्रोती को कब्जे में कर अजर को अपनी ऊंगली पर नचाने लगी थी, इसके बाद तो उसका हौसला सातवें आसमान पर था। जिस फर्जावती के त्याग की वजह से परिवार फल-फूल रहा था,उस पर तीव्र गति से रीता देवी ने आक्रमण शुरू कर दी। फर्जावती परिवार के लिए सम्मानित महिला थी,पूरे गांव के लिए फर्जावती -कदानन्द का जोड़ा आदर्श था, रीता देवी ने आते ही मर्यादा लतियाने लगी,जो शर्म की बात थी परन्तु फूंकवन्ती के लिए परिवार के कब्जे पर ऐलान था,जो उसके लिए सम्मान की बात थी। कदानन्द और फर्जावती अपने वादे और उम्मीद पर अटल थे।
श्रोती की शादी बीस दिन बाद ही थी,कदानन्द को हार्ट-अटैक आ गया,जिसकी वजह से पारिवारिक रिश्तों में आ रही कड़वाहट थी, जिस परिवार के लिए फर्जावती -कदानन्द ने त्याग के आंसू से सींचकर फलने-फूलने लायक बनाया था,उसी चमन को सास-बहू (फूंक वन्ती और रीता देवी) कब्रिस्तान बनाने पर तूली हुई,जिसकी स्थापना बोली से उतरते ही रीता देवी ने शुरू कर दी थी। आकी-बाकी उम्मीदे फूंकवन्ती और रीता ने रेत-रेत मारने में जुट गई थी।
बेटी श्रुति और अभयदेव पिता कदानन्द को लेकर शहर भागे। अपोलो अस्पताल में इलाज हुआ, पिता की तबीयत कुछ ठीक होने के बाद गांव में छोटी बहन श्रोती की शादी सम्पन्न करने वह गांव पहुंच गया।
अभयदेव को देखते ही चेतनानंद फूट-फूटकर रोते हुए कह रहा था, पिता समान भईया छोटी श्रोती की शादी में नहीं आयेंगे।
अभयदेव- शादी अभी दस दिन है चाचा, पापा आ जायेंगे, उनको श्रोती के ब्याह की कम चिंता नहीं है।
कदानन्द का न तो स्वास्थ्य गांव की लम्बी यात्रा करने की इजाजत दे रहा था, नहीं डाक्टर। गांव का टेम्परेचर सातवें आसमान पर था। कदानन्द का गांव जाना ख़तरे से खाली न था। श्रोती की शादी करने के लिए गांव गये थे।
चाचा की बेचैनी अभय से बर्दाश्त नहीं हो रही थी,वह डाक्टर से बात कर गांव भेजने की सहमति ले लिया। शादी के ठीक ठीक दो दिन पहले बिजनेस क्लास की हवाई जहाज से तीन टिकट कर लिया। बेटी-श्रुति ने पिता -कदानन्द और अपनी बेटी संवाद के साथ छोटी बहन की शादी में पहुंच गयी।
कदानन्द को पाकर,चेतनानंद की छाती छप्पन इंच की हो गई। शादी में दिये गये उच्च क्वालिटी के फर्नीचर
कदानन्द ने अभय से आनलाइन भेजवा दिया था। आलमारी आने में विलम्ब हो रहा था। विलम्ब की डिलीवरी को देखते हुए अभय देवगांव बाजार से मेटाडोर में रखकर ले आया। कन्यादान के वक्त तो दहेज लोभी डॉ समधी ने कदानन्द का खुलेआम बेइज्जती कर दिए। समधी कहने को डॉ थे, मानसिक विक्षिप्त थे,वे अपनी मानसिक विक्षिप्तता का नंगा प्रदर्शन करते हुए बोले क्या गले मिलना, मिलना है दिल से दिल मिलाओ। दहेज की मांगी गई रकम मिलने से नाराज़ थे। पांच लाख नगद की जगह पर तीन लाख मिलने की तीखी प्रतिक्रिया थी।
अजरदेव के ब्याह में दूल्हन रीता के परिवार वालों ने कदानन्द का घोर अपमान किया था परन्तु चेतनानंद के कान पर जूं नहीं रेंगी थी, तथाकथित डॉ समधी के खुलेआम दरवाजे पर बेइज्जत करने पर भी नहीं।
कदानन्द अपनी नसीब को कोस रहा था। ट्रकों में भरकर कर दहेज का सामान डाक्टर ले जा रहे थे पर दहेज की भूख मिट रही थी। श्रोती की शादी में पन्द्रह लाख के उपर कैश खर्च हुआ था, दूल्हे की मासिक कमाई दस से पंद्रह हजार रूपए थी। बारात विदा होते ही सास-बहू (फूंकवन्ती -रीता) कौन क्या और कितना दिया हिसाब-किताब में लग गयी। सासु -बहू नतीजे पर पहुंची कि जेठ और उनके दोनों बेटे और बेटी ने नगद एक पैसा नहीं दिया है, जबकि अजय,अभय और श्रुति ने लाखों खर्च कर दिए थे। कदानन्द और फर्जावती का तो कोई हिसाब नहीं था। अजर सासू -बहू के सुर में सुर मिलाते हुए बताया कि अजय भैय्या ने एक रुपए भी नहीं दिये,बस एक साड़ी का सेट लाये हैं, फूंकवन्ती ने अजय की गिफ्ट पर शख्त नाराजगी जाहिर भी कर दी थी।
कदानन्द और उनके बच्चों ने लगभग पांच लाख ब्याह में खर्च कर दिए जिसकी कीमत फूंकवन्ती की नजर में एक रुपए भी नहीं रही।पहले अजर ने खुद की शादी अपनी कमाई से किया अब बहन की भी शादी कर दिया।अजर के जय जयकार के डंके बजने लगे थे। अजर के ब्याह में अस्सी प्रतिशत खर्च कदानन्द और उनके बेटे ने उठाया था। अपनी शादी के दो साल पहले एक डेढ़ लाख से अधिक कमा रहा था, इसके बाद भी अजर की शादी धूमधाम से किये। अजय और श्रुति की शादी तो बिल्कुल सादे समारोह में हुई थी।
श्रोती की शादी तो गांव के लिए यादगार शादी थी जो बहुत धूमधाम से हुई थी । कदानन्द श्रोती बेटी की शादी में उपस्थित रहने के लिए अपने जान की बाजी लगा दिया, प्राइवेट कम्पनी से रिटायर आदमी चार पांच लाख रुपए खर्च किया जबकि अस्पताल के बिल के लिए एड़ी चोटी की जोर अजमाइश करनी पड़ती थी। अजर इन सबसे बेखबर रहता था। रीता के गांव चले जाने पर कदानन्द के साथ महिनों रहता था कभी पांच रुपए खर्च नहीं करता था, इतना बड़ा कंजूस था। उसकी मां फूंकवती अपने मायके वालों पर नोट बरसा रही थी।
गांव में पुनः कदानन्द की तबियत ख़राब होने के लक्षण तेजी से उभर रहे थे। अभय पिता के बिगड़ते स्वास्थ्य से बहुत परेशान था,वह जल्दी सपरिवार शहर वापस आना चाहता था। ट्रेन की यात्रा कदानन्द के स्वास्थ्य को देखते हुए उचित नहीं थी। हवाई में बिजनेस क्लास टिकट मिल रहा था,अजर चुपचाप खुद का हवाई जहाज का टिकट कर लिया,यह खबर कदानन्द के दिल पर हथौड़ा मारने से कम न थी। पत्नी पीड़ित अजय शादी के तुरंत बाद वापस बंगलौर चला गया।पैंतीस साल से जिस लड़के को पाला पोसा वही अजर अपनी शादी के दिन से ही आंख-मिचौली करने लगा था।
कदानन्द की मेडिकल इमरजेंसी में यह अजर का खेल कदानन्द के लिए जान लेवा था। कदानन्द उसके बच्चों को भाई चेतनानंद और उसकी पत्नी फूंकवन्ती एकदम से भूला दिया था।छोटा बेटा अभय किसी तरह से पांच बिजनेस क्लास की हवाई टिकटें करवाया, वापस शहर पहुंच कर कदानन्द को लेकर अस्पताल की ओर भागे। श्रोती के ब्याह के बाद कदानन्द और उसका परिवार आंखों में आंसू लेकर लौटे थे।
उधर बारात विदा होने के बाद फूंकवन्ती बेटा अजर के बखान में जुट गई। वह कह कह कर नहीं तक रही थी कि श्रोती के भईया अजरदेव ने बहन की शादी धूमधाम से कर पूरे गांव की रौनक बढ़ा दिया। पहले अजर ने अपनी कमाई से खुद का ब्याह किया,वह भी यादगार बना दिया था,अब बहन की। फूंकवती ने कदानन्द की नेकी को निर्वस्त्र कर बदनाम कर रही थी उच्च शिक्षित नई-नवेली बहू रीता के चक्रव्यूह में फंसकर जो कदानन्द और फर्जावती कभी फरिश्ते से कम नहीं थे।
कदानन्द के चालीस साल के परिवार की परवरिश,
अजर के शिक्षा -दीक्षा और अफसर बनने तक के त्याग पूरी तरह खारिज कर दिया गया। फूंकवती अपने बेटे की पूरी मालिकाना हक छिन लिए, जैसे दुनिया के सबसे छोटे परन्तु बड़े धावक की मां ने कोच के साथ किया।आखिर में कोच की हत्या करवा दी जाती है। वही अजर की पत्नी ने किया,अपनी साज़िश के तहत् कदानन्द और फर्जावती के उपकारों पर खंजर चलाते हुए,कदानन्द की वर्चुअल मर्डर करवा दी फूंकवन्ती को माध्यम बनाकर।
कदानन्द को भविष्य सुरक्षित लग रहा था,वह अजर के साथ जो किया था- उपकार कहो या अत्याचार वह चेतनानंद और परिवार के भले के लिए किया था। उच्च शिक्षित बहू रीता को देखो कदानन्द के त्याग से विकसित परिवार की अपनी गंवार सासू की जबान से कदानन्द और फर्जावती का क़त्ल करवा दी। इतना पर भी उसे राहत नहीं मिली तो उच्च शिक्षित बहू ने
अपनी गिरी सोच के सहारे कदानन्द के त्याग से ऊंचाई पर पहुंचाने वाले मां बाप के सहारे अजर को छिनकर चेतानन्द और फर्जावती से ही छिन पर नादानों को खबर न थी। वे ख़ुश अपने -अपने स्तर पर कदानन्द और फर्जावती के उपकारों और कदानन्द के वर्चुअल मर्डर को अंजाम तक पहुंचाकर, उधर बहू रीता बहुत खुश थी -एक तवे पर दो रोटी करवाकर।
फूंकवती के लिए अब बेटा अजर बहू रीता के अलावा किसी की याद नहीं रही। चेतनानंद और फूंकवती की आत्मा में धृतराष्ट्र और गांधारी की आत्मा में घुस गई थी। भाई चेतनानंद, भाई की पत्नी फूंकवन्ती,पुत्र अजर,जिसे कदानन्द अपने पूत्रों और पुत्री से कम तो नहीं मानता था, इन्ही से खण्ड-खण्ड होती उम्मीदों को तड़पते हुए देखकर कदानन्द के जिगर से निकल ही गया। अरे मूर्खो मुझे अजर से कभी कोई स्व-हित की उम्मीद तो कभी ना थी। उच्च शिक्षित रीता बहू ने मीठी छुरी से रिश्तों का गला रेत और फूंकवन्ती ने तड़प-तड़प मरते रिश्तों को स्वार्थ का पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी। अजरदेव ने भी कदानन्द को भयकुमार के वर्चुअल की याद दिलाकर नेकी के बदले बदलनेकी की मीनार खड़ी कर दिया। रीता और अफसर अजर और फूंकवती की लगायी भभकती आग को कदानन्द और फर्जावती भींगी पलकों से टुकुर-टुकुर देख रहे थे। कदानन्द को हमेशा अपने बीते दिन याद रहते थे। वह कितने आर्थिक और अश्पृश्यता के दहकते हुई खाइयों को पार करने के लिए वह खुद अपने परिवार के साथ भाई और उसके परिवार को पीठ पर लादे तड़पते हुए कैसे किनारे तक ले आया था,आज वही भाई,भतीजा और उसका परिवार सफलता पाकर वर्चुअल मर्डर कर रहा था, उसका दिल दर्द से बेचैन था।
कदानन्द उम्मीद की रोशनी में वर्चुअल मर्डर से आहत आंसू पोंछते हुए बोला मेरे पिताजी ने वर्चुअल मर्डर अर्थात आभासी हत्या के दर्द को पीया हम भी लेंगे। आंसू पोंछते हुए वह बोला याद रखना अपनी जहां वालों मैं;
" मैं ऐसे रिश्तों को दिल की गहराई से निकाल कर बाहर फेंकता हूं, जहां त्याग,उपकार,सगे खून तक के रिश्ते तक की कद्र नहीं हो ।"
कुछ क़दम ही आगे बढ़ा था उम्मीद की दुनिया जगमगा उठा, उसके बच्चों और नातिन और पोते ने दौड़कर कदानन्द का हाथ थाम लिया ।
नन्दलाल भारती
३१/०७/२०२५
इतिश्री
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