Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वजीफा

 

वजीफा

राघव की कमाई में बरक्कत पर जैसे विराम लगा हुआ था ‌।वह सब नसीब का खेल मानकर जमींदार की चाकरी में जुटा रहता था। इस मजदूरी से राघव और उसके परिवार को भर पेट रोटी भी नसीब नहीं होती थी, जमींदार भी यही चाहता,शायद जमींदारों की सोच थी कि मजदूर की जरूरतें पूरी होने लगेगी तो ऊंचे ख्वाब देखने लगेंगे,जमीदारी के आतंक जातिवाद को पूरी तरह पनाह दे रहे थे। ऐसे तेजाब की दरिया में संघर्षरत राघव कैसे तरक्की की राह चल सकता था, जहां हर राह पर शूल बिछे हुए थे। कुएं से पानी लेना तो दूर कुएं की जगत पर पांव रखना भी क़त्ल के अपराध जैसा था। ऐसे वक्त में राघव जैसे पीड़ितों के लिए स्कूल जाना सपना भर था। ये सपने स्वतन्त्र भारत में सच होने लगे थे परंतु दबंगों का दबदबा बदस्तूर जारी था।
राघव और उसकी पत्नी अनपढ़ और खांटी ग्रामीण थे, आधा दर्जन बच्चों सहित बड़ा परिवार था। सुबह खाओ तो रात की चिंता,रात में खाओ तो दोपहर की फिर रात और सुबह की । ऐसी तंगहाली में स्कूल की पढ़ाई कठिन काम था,उपर से दबंग शोषितों को स्कूल में घुसने नहीं देते थे। स्कूल में प्रवेश हो भी गया तो उच्चवर्णिक बच्चों से दूर बिठाया जाता जहां तक गुरुजी की आवाज ठीक से नहीं पहुंचती थी। प्यास लगने पर पानी पीने के मटके तक को छूने की इजाजत नहीं थी‌।ऐसी धार्मिक अमानवीय व्यवस्था में शोषितों का विकास बकरी के खाये पोधे की तरह था,जो कभी बढ़ नहीं पाता।ऐसी अमानवीय व्यवस्था की नाक में नकेल भारतीय संविधान ने तो डाल दिया था पर जातीय उन्मादी कहां मानने वाले थे ।

 उन्मादियों को डर था कि दबे कुचले पढ़ लिख जायेगे तो उनके खेतों जो कभी भारतीय मूलनिवासियों के थे,ये जातिवादी लोग दण्ड भेद की नीति अपनाकर जमींदार बन बैठे थे, खेतों में हल कौन जोतेगा, चाकरी कौन करेगा। इसलिए दबंग लोग जोर अजमाइश कर रहे थे। दबंगों के विरोध के बाद दमित शिक्षा और प्रगति के लिए संघर्षरत थे।
शिक्षा शेरनी का दूध है.....डां भीम राव अम्बेडकर के जोशीले वाक्य से भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के मृत सपने भी जीवित हो उठे थे। इन मेहनतकश मज़दूरों में से राघव भी एक था। उसने कसम खा लिया कि भले ही मुझे एक टाइम खाकर जीवन बिताना पड़े मैं शेरनी के दूध के लिए यह त्याग जरुर करूंगा।

राघव की घरवाली सिरताजी बोली -उत्सव के बाबू यह नौबत नहीं आयेगी।सुनी हूं पांचवीं कक्षा तक फीस भी नहीं लगेगी उपर से बेटा को वजीफा भी मिल सकता है।
तुमको किसने बता दिया राघव मुस्कराते हुए पूछा।
धरकंडे के मामा वजीफा विभाग में नौकरी करते हैं,वहीं बताये हैं,कल स्कूल में आये थे। गांव के बच्चे बता रहे थे।
ये तो और भी अच्छी बात है। धरकण्डे के बाबू माधव तो हमारे साथ ही जमींदार की हलवाही करते हैं। हमारी मदद तो करेंगे।
जानती हूं माधव बाबा का परिचय रहने दो उत्सव सात साल का हो गया है स्कूल भेजो। दूसरी कक्षा तक पहुंच जाता तब माधव बाबा से वजीफा की बात करना, अभी तो अपना बबुआ ठीक से स्कूल जाना भी नहीं शुरू किया सिरताजी बोली।
एक स्कूल से तो भगा दिया गया और कोई स्कूल आसपास तो है नहीं। हरिजन प्राइमरी पाठशाला ही अपने बच्चों के लिए बेहतर है। उत्सव को उसी स्कूल में भेजना होगा तभी पढ़ पायेगा और हमारा परिवार सुशिक्षित, सम्वृद्ध और सम्पन्न होगा राघव बोला।
उत्सव के बाबू अपना बेटवा अपने खानदान का नाम रोशन तो करेगा ही गांव का भी नाम रोशन करेगा।
अरे भाग्यवान पहले बेटा स्कूल जाना तो शुरू करे राघव अपनी पत्नी सिरताजी को समझाते हुए बोला।
देखो जीभ नहीं निकालनाऔर न मारने के लिए दौड़ाना ,अगर बेटवा अभी तक स्कूल नहीं जा पाया है तो उसके लिए तुम जिम्मेदार हो। छोटी जाति का होने के नाते स्कूल से परेशान होकर बबुआ जब भाग आया था,तब तुम स्कूल गए थे पता करने । स्कूल से आने के बाद बेटा कितना रोया था, मास्टर ने धूप में बैठने की सजा क्यों दिया सिर्फ इसलिए बेटवा छोटी जाति का था। ठाकुर बाभन मास्टर कभी अपनी जाति के बच्चों को जेठ बैसाख की लू में बैठने की सजा देंगे? काश तुम गये होते। खैर जाओगे कहां से ठाकुर की चाकरी और गांजा दारू से फुर्सत मिले तब ना। ना गये ना जाओगे।बेटा खुद हरिजन प्राइमरी पाठशाला जाने लगा है, तुमको तो यह भी पता नहीं होगा।सदन मुंशी जी स्कूल में नाम भी दर्ज कर लिये है।पास के गांव के मास्टर श्यामनरायन मुंशीजी है,राघव की पत्नी सिरताजी बोली।
माधव तुम्हारा उत्सव बेटा तो समझदार निकला। स्कूल में नाम लिखाने तो तुमको जाना चाहिए था, जन्म तारीख तो सही लिखा जाती सदन मुंशीजी ने तो अंदाजा से लिख दिया होगा और ज्यादा लिखा गयी होगी माधव बोले।
काश ये बच्चों के भविष्य से सतर्क रहते तो ये हाल नहीं होता। इन्हें ठाकुर की हलवाही और चाकरी याद रहती है और घर में अनाज है या नहीं।कभी कभी सवाई पर अनाज उधार लेकर आती हूं तब जाकर बच्चों के मुंह में निवाला जाता है। बाबा तुम तो जानते ही हो ठाकुर की चाकरी में दो सेर पूरे दिन की मजदूरी मिलती है।सुबह सूरज उगने से पहले और शाम रात में बच्चों के सो जाने के बाद होती है। ठाकुर इतनी लंबी चाकरी के बाद चुटकी भर गांजा हाथ पर देते हैं और ये फूलकर कुप्पा हो जाते हैं,ये ठाकुर की चाल नहीं समझते। बाबा मैं तो बस भगवान से प्रार्थना करती रहती हूं कि भगवान मेरे उत्सव को इतना सफल बना देना कि गांव वाले नज़ीर दें सिरताजी बोली।
बहू तेरा उत्सव जरूर गांव का नाम रोशन करेगा। मैं भी अपने साले रनई बाबू से उत्सव के वजीफा की बात करूंगा माधव बोले।
माधव काका तुमने तो मुंह की बात छिन ली। काका   तुम तो जानते हो मेरी आर्थिक स्थिति जर्जर है, मैं चवनी फीस भी नहीं दे सकता। बेटवा की पढ़ाई के लिए  फीस कहां से दूंगा राघव बोला।
अरे पगले बाबा साहेब कौन से अरबपति बाप की औलाद दे।वे देश दुनिया के लिए वह कर दिये जो भगवान नहीं कर पाए। उत्सव को स्कूल जाने की लगन है,उसे कोई नहीं रोक सकता। एक दिन उत्सव अपने गांव का सबसे अधिक पढ़ा लिखा और सम्पन्न सदाचारी इंसान होगा यह मेरा आशीर्वाद है।
बाबा आपके मुंह में घी शक्कर सिरताजी बोली।
माधव काका यही तो भग्गल और भीखम भईया भी कहते हैं राघव बोला।
राघव ठीक है तू ठाकुर का बंधुआ मजदूर हैं,गरीब है बेटा तुम्हारे इतना बड़ा अमीर कौन है, तुम्हारे पास तुम्हारे भाईयों की दुआओं का खजाना है, भग्गल तो वैसे ही फकड़ है उसकी प्रार्थना को भगवान को तो कबूल करना ही होगा। सब कुछ भगवान पर छोड़ दें और एक बात याद रखना ठाकुर की हवेली से दूर रखना इसी में तुम्हारे खानदान का उद्धार है। वजीफा भी तुम्हारे बेटा को मिलेगा। संविधान में इसीलिए तो वजीफा की प्रावधान है ताकि कमजोर वर्ग के बच्चे पढ़ लिख कर तरक्की कर सके, वजीफा खैरात नहीं है अधिकार है आरक्षण की तरह माधव बोला।
राघव -वजीफे की बात रनई मामा से करना जब कभी मुलाकात हो तो।
माधव -अभी तो उत्सव स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया तुम वजीफा लगवाने की बात कर रहे हो। वजीफा की सिफारिश स्कूल के हेडमास्टर करते हैं,सदन मुंशी और श्याम नरायन मुंशी तुमको नहीं जानते,सब जानते हैं तुम्हारी लाचारी के बारे में भी जानते हैं। पांचवीं तक तो कोई फीस भी नहीं लगेगी, छठवीं क्लास से फीस शुरू होगी, चवन्नी फीस होगी। चवन्नी का इन्तजाम आसानी से हो जाएगा।
कैसे..... राघव बोला।
 गांजा का पैसा बेटा की पढ़ाई पर खर्च करना, इतना तो कर सकते हो। बाबासाहेब को मानते हो तो बाबासाहेब की एक बात यह भी मान लेना।
राघव -कौन सी बात कक्का ?
बच्चों को पढ़ाओ, इसके लिए भूखा भी रहना पड़े तो रहो,यह याद है कि नहीं माधव बोला।
सब कुछ करूंगा कक्का। बी ए तक पढ़ाऊंगा बाकी बेटवा की मेहनत राघव बोला।
शाबाश राघव,अब उत्सव को बीए , एम ए क्या और आगे तक पढ़ने से कोई नहीं रोक सकता माधव बोला।
काका तुम्हारी और हमारे भाईयों -भग्गल और भीखम की दुआएं बेकार नहीं जाएगी । भग्गल भैया तो कल का अफसर मान बैठे हैं राघव बोला।
सिरताजी-दुआएं कभी बेकार नहीं जाती।मेरा बेटा जरुर ऊंची पढ़ाई करेगा, वजीफा भी पायेगा और अफसर भी बनेगा। एक मां की गुहार है परमात्मा की अदालत में, न्याय तो होगा।
उत्सव के पांचवीं कक्षा के परिणाम से उत्सव के मांता-पिता इतने खुश हुए कि गांव की पूरी बिरादरी को रीनकर्ज कर भोज दे डाला।जैसा कि उत्सव के मां बाप को विश्वास था कि लोगों की दिल से दी गई दुआएं कभी बेकार नहीं जाती। उत्सव की मेहनत और मां बाप के विश्वास से उत्सव आठवीं कक्षा भी पास कर लिया पर वजीफा नहीं मिला।
नवीं कक्षा में प्रवेश को लेकर रस्साकसी चल रही थी, स्कूल दस-पन्द्रह किलोमीटर दूर थे, स्कूल में नाम लिखवाने की फीस और किताब के पैसे तक नहीं थे। आगे वजीफा मिलने की कोई गारंटी भी नहीं थी।बड़ी जन्नत से पैसे का इंतजाम नून-तेल में कटोती कर एक मुर्गी बेंचकर सिरताजी ने किया। लालगंज,उत्सव का स्कूल बारह किलोमीटर दूर था,वह साइकिल से स्कूल जाना शुरू किया। उत्सव की पढ़ाई बिना वजीफा से आगे नहीं चल सकती थी, उत्सव को अपने घर की आर्थिक स्थिति का अंदाजा था। उत्सव अपना दर्द अपने गांव के सेंचई बाबू से साझा किया, सेंचई झट से कहा वजीफा का काम हो जाएगा पर गेंडा की खाल वाला बिन पैसे के कोई काम नहीं करता।
उत्सव कौन है वो ?
क्लर्क हैं सेंचई बताये? कल उनके घर चलेंगे।
दूसरे दिन उत्सव को लेकर सेंचई क्लर्क के घर पहुंच गया। पालगी गिरिबाबा कहते हुए दोनों एक ओर खड़े हो गए।
खुश रहा बचवा कहते हुए बाहर पड़ी लकड़ी की बूढ़ी बेंच पर बैठने का इशारा करते हुए गिरिबाबा कमरे में चले गए, कुछ देर बाद निकले और पूछे तुम लोग किसी काम से आये हो ?
जी बाबा,आपका आशीर्वाद मिल जाता तो यह गरीब पढ़ लेता सेचई बोला।
तुम को मालूम है यहां कुछ भी फोकट मे नही मिलता, सौ रुपए लगेंगे वजीफा लग जायेगा। तुम्हारा दिया रुपया प्रिंसिपल से लेकर जिला कार्यालय तक बंटता है, मेरे खिस्से में कुछ नहीं आता।
गिरिबाबा कुछ कम हो सकता है सेंचई बोला।
एक पैसा भी नहीं क्लर्क गिरिबाबा बोले।
सेंचई पैसे की जैसे ब्यवस्था हो जायेगी,हम आ जायेंगे,चलो उत्सव स्कूल चले। स्कूल का टाइम होने वाला है,गिरिबाबा भी आयेंगे ,चलो।
उत्सव धीरे से बोला भैया इतनी बड़ी रकम कहां से आयेगी।
सेंचई-ये ठग अभी सौ रुपया वजीफा लगवाने का मांग रहा है। वजीफा मिलना जब शुरू हो जायेगा ।हर तीसरे महीने जब वजीफा आयेगा तब हर बार पांच रुपया लेगा। भ्रष्टाचारियों की   बहुत मोटी चमड़ी हो गई है।
उत्सव -मां की चांदी की हंसुली पहले ही बिक चुकी है।ये घुस के सौ रुपए तो और भारी पड़ने वाले हैं।
अच्छे काम में व्यवधान बहुत आता है सेंचई बोला।
उत्सव को वजीफा मिल जाए और वह पढ़ ले इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार थे। मुश्किल समय के लिए घर में कुछ चना मुर्गी के अण्डे और सरसों बेचकर सिरताजी मां ने आंसू पीकर घुस के सौ रुपए का इन्तजार तो कर ली।खैर गिरि ने भी काम कर दिया। नवीं कक्षा से बीए तक वजीफा मिला । इस वजीफा की राशि ने उत्सव के जीवन में सीढ़ी का काम किया। इस दरमियान घुसखोर क्लर्कों जातिवादियों ने कई षणयन्त्र भी रचे पर सारे चक्रव्यूह टूटते चले गए।
उत्सव को आरक्षण से नौकरी नहीं मिली ।वह दर दर नौकरी के लिए ठोकरें खाता रहा। सरकारी नौकरी की तलाश में बूढा होता रहा। सरकारी नौकरी न मिलने की बहुत सारी वजहें थीं। सरकारी नौकरी तो पहुंच से 
बाहर थी।
 कई सालों की दर्द भरी  बेरोजगारी के बाद बहुराज्य सहकारी कम्पनी मे  उत्सव को नौकरी मिली । नौकरी में जातिवादी अफसरों ने सीआर खराब कर प्रमोशन के लायक ही नहीं छोड़ा था।
नौकरी में जो तरक्की मिलनी थी,वह तो नहीं मिली पर  खेतिहर मजदूर मां-बाप सिरताजी और राघव का बेटा उत्सव वजीफा की सीढ़ी से अफसर तो बन गया।
यह खबर जब माधव के कान में फुसफुसायी तो वह राघव के घर बधाई देने पहुंचा। माधव को खटिया पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते हुए देखकर माधव बोला राघव अब जमींदार जैसे जंच रहे। अपना उत्सव अफसर बन गया है ।
हां कक्का पच्चीस साल की नौकरी के बाद।
देर आए दुरुस्त आए, अपनी बस्ती के पहले अफसर जब जब बात आयेगी तो सबसे पहले नाम आयेगा उत्सव का। अपनी बस्ती के पहले अफसर के मां बाप होने का सौभाग्य उत्सव की मां सिरताजी और बाप राघव को मिला है। बधाई राघव।
काका हमने कहा था न तुम्हारी दुआएं बेकार नहीं जाएगी। कक्का बुरा नहीं मानना जमींदार की उपाधि गाली लगती है,इन मौत केसोदागरों की परछाईं से घबराहट होती है राघव बोला।
बात तो लाख टके की तुमने कहा दी राघव।ये उत्सव का प्रभाव है, शिक्षा से समझ और संस्कार आते है। शिक्षा ही तो प्रगति का मूल स्रोत है माधव बोला।
धन्यवाद  बैठो भी काका कहते हुए राघव उत्सव की मां को आवाज दिया अरे भाग्यवान सुनती हूं।
इतने जोर -जोर से क्यों चिल्ला रहे हो चिलम ठण्डी हो गई का सिरताजी बोली।
अरे भाग्यवान कभी  अच्छा भी सोचा और बोला भी करो। देखो कौन आये है राघव बोला।
सिरताजी हंसते हुए बोली  बाबा बहुत दिनों के बाद आना हुआ?
बहू घर-गृहस्थी के काम कम है क्या? पता चला कि अपना उत्सव साहब बन गया तो खुशी के मारे सब काम -धाम छोड़कर बधाई देने आ गया माधव बोला।
हां बेटा का संघर्ष आखिरकार काम आ गया।बैठो बाबा मुंह मीठा करो कहते हुए सिरताजी अन्दर चली गई और अन्दर से बूंदी के लड्डू और लोटे में पानी लेकर आई। खटिया पर लड्डू और पानी रखते हुए बाबा मुंह मीठा करिये।
हुक्का पीओगे काका राघव पूछा। 
थोड़ी सब्र तो रखो, बाबा को बैठने दो कुछ देर, तम्बाकू भी चढ़ाऊंगी कण्डा आग बनाने के लिए जला दी हूं सिरताजी बोली।
भाग्यवान मैं अपने लिए नहीं कक्का के लिए कह रहा हूं राघव बोला।
तुम भी पीना, तुमको कौन मना करने वाला है, गांजा पीओ, दारू पीओ बीड़ी पीओ। बाबा ये गांजा के इतने प्रेमी हैं कि बेटवा, नाती पोते किसी की कसम इनके गांजा पर रोक नहीं लगा पाई सिरताजी बोली।
माधव -बहू बीटिया क्या कह रही है।अब तो अफसर के बाप बन गये हो ?
एक दिन सब छूट जायेगा काका राघव बोला।
राघव बाबू हमारे समाज को जिस तरह जातिवाद एवं अन्य सामाजिक बुराईयां पिछड़ेपन के दलदल में ढकेल रही है, वैसे ही गांजा दारू आर्थिक रूप से बर्बाद कर रहे है,बेटवा की लिहाज करो। अगर उत्सव भी तुम्हारी राह पर चला होता तो क्या होता माधव बोला।
काका छूट जायेगा गांजा दारू और भी बहुत कुछ । काका हम सब मिलकर एक काम क्यों न करते राघव पैंतरा बदलते हुए बोला।
कौन सा काम राघव, माधव पूछा।
अपनी बस्ती की शिक्षा दर बढ़ाने का काम, गांव के लड़के पढ़ाई लिखाई कर नहीं रहे, आठवीं दसवीं के उपर कोई नहीं जा रहा। गांव के लोगों की पंचायत बुलाकर कम से कम हर लड़की-लड़का स्नातक तक की पढ़ाई करें और जब तक अपने पैर पर ना खड़ा हो जाये ब्याह ना करें। पढ़ने के लिए सरकार वजीफा देती है इसका फायदा तो उठायें राघव बोला।
दबे कुचले के शैक्षणिक और आर्थिक विकास के लिए वजीफा और आरक्षण सरकार की अच्छी व्यवस्था है, सामाजिक विकास में शिक्षा अद्भुत योगदान दे सकती है पर जनजागरण की जरूरत है माधव बोला।
काका उत्सव वजीफा के सहारे बीए तक पढ़ लिया। हां सरकारी नौकरी नहीं मिली लेकिन अर्धशासकीय नौकरी की बदौलत तो अपने परिवार का विकास हुआ है। नौकरी करते करते उत्सव पढ़ाई भी करता रहा,आज उत्सव गांव का सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है। काका यह सब सम्भव हुआ है तो वजीफा से वरना मेरी कहां औकात थी राघव बोला।
हां राघव तुम सौभाग्यशाली हो माधव बोला।
काका उत्सव की वजह से।काश बस्ती के बच्चे पढ़ते आगे बढ़ते माधव बोला।
राघव और माधव का चर्चा जोरों पर थी इसी बीच साधव आ गये और बोले कोई गम्भीर मन्त्रणा चल रही है क्या माधव ?
भैय्या अपनी बस्ती के बच्चे आगे तक पढ़ नहीं रहे हैं, पढ़ाई के लिए सरकारी मदद भी है, नौकरी में भी कुछ आरक्षण है, भले ही ऊंट के मुंह में जीरा हो। सरकारी नौकरी वैसे भी सभी को तो मिल नहीं सकती, दसवीं बारहवीं से उपर पढ़कर  रोजगारोन्मुखी शिक्षा तो ले सकते हैं पर नहीं दहेज की दौलत से अमीर बनना चाह रहे हैं, कुछ करो भैय्या वरना अपना गांव पिछड़ा रह जायेगा माधव बोला।
पिछड़ी तो नहीं है हमारी बस्ती, उत्सव ने तो अपनी बस्ती का नाम रोशन कर दिया है। कुछ करने का उत्साह होना चाहिए साधव बोले।
उत्साह तो जगाना है माधव बोला।
हमें क्या करना होगा साधव बोले।
हम तीनों ही शुरुआत करते हैं माधव बोला।
योजना क्या है यह तो बताओ राघव बोला।
तुम्हीं क्यों नहीं बता देते माधव बोला।
काका मेरा विचार है कि अपनी बस्ती का हर बच्चा खूब पढ़ें, आगे बढ़े। पहले जैसी अब बात नहीं रही, पूरी बस्ती तीनों टाइम डंकार मार रही है। बस्ती के बच्चे पढ़ाई लिखाई में पीछे क्यों रहे। ऊंची पढ़ाई के लिए तो सरकार भी मदद करती है पढ़ाई करें नौकरी- धंधा  स्वरोजगार  करें, मां बाप की कमाई और सरकारी खैरात के पांच किलो अनाज पर कब तक जीयेगे। बस्ती के हर मां बाप को जागृत करने की जरूरत है राघव बोला।
 साधव- बात तो तुमने बड़ी जोरदार की है, ऐसी बात तुम्हारी खोपड़ी में कैसे आई ।
माधव -बाप को बेटा से सीख रहा है।
साधव-उत्सव अपनी बस्ती का हीरा है। बस्ती का हर बच्चा हीरा बने ऐसा अभियान चलाना है।
भैय्या अपने गांव के लड़के बुराईयों के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। सरकार दारू के ठीके गांव -गांव खोल रही है, दारू के टीके तो गांव की प्रगति में नासूर साबित हो रहे हैं। काश सरकार स्कूल और पढ़ाई पर इतना ध्यान देती माधव बोला।
देखो भैय्या बढ़ावा कौन दे रहा है गांव वाले ही दे रहे हैं। किन किन गांव वालों ने दारू के ठेकों के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया है। गांव की छोटी छोटी बाजारों में अब तो अंग्रेजी दारू की दुकानें खुल रही हैं। दारू पीना सब बंद कर दें, हफ्ते भर में ठेके पर ताले लग जायेंगें साधव बोला।
बात सही कह रहे हो बाबा नशे के सारे साजोसमान मौत हैं, दुर्भाग्य की बात है कि अपने पसीने की कमाई में लोग आग लगा रहे हैं सिरताजी बोली।
बहू तुम्हारी जैसी नारियों की जरूरत अपने समाज में है माधव बोले।
दारू पर भी रोक तब नहीं लग पायेगी जब लोगों के दारु के नुक़सान के बारे में लोग नहीं जान जाते ।हर घर के बच्चे स्कूल जाने लगेंगे और समझदार होने लगे तो इस बुराई पर रोक लगेगी। गांव का हर बच्चा स्कूल जाते पढ़ें और आगे बढ़े हर बुराइयों को खत्म करने का हथियार शिक्षा है साधव बोला।
ठीक कह रहे हो बाबा शिक्षा को शेरनी का दूध कहो या हथियार है तो अलाउद्दीन का चिराग। शिक्षा के ही चमत्कार की वजह से उत्सव गांव की हर जुबान पर है सिरताजी बोली।
वजीफा तो मिलता है,बड़ी कक्षा में जाने पर लाइब्रेरी से पढ़ने के लिए किताबें भी मिलती है। और बड़े स्कूल कालेजों में रहने के छात्रावास तक मिलता है। ऊंची पढ़ाई के लिए अब तो लोन भी मिलता है। बेचारा उत्सव  पन्द्रह कोस साइकिल से कालेज जाता था और साइकिल चलाकर वापस आता था। बहुत दुःख देखा है उत्सव  राघव बोला।
सफलता आसानी से नहीं मिलती हम लोग भी उत्सव की तरह दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाते हैं कि हर घर के छोटे -बड़े बच्चों को स्कूल पहुंचाकर रहेंगे माधव बोला।
मेरी तो दिलीख्वाहिश है कि हमारी बस्ती की लड़कियां भी स्कूल जाये और ऊंची पढ़ाई करें सिरताजी बोली।
साधव ताली बजाते हुए बोले शाबाश बहू,एक शिक्षित लड़की दो परिवार और कई पीढ़ी भी शिक्षित कर सकती है,इस अभियान की कमान तुम सम्भालो साधव बोले।
हम चारों ही नहीं इस अभियान में पूरी बस्ती के बूढ़े बच्चे सभी   लोग शामिल होंगे। इस गांव से और भी कई उत्सव निकले  जो आज के उत्सव से कहीं और आगे तक जाये राघव बोला।
सिरताजी बोली-बाबा काश गांव के लिए जो सपना देख रहे हैं पूरा हो जाता।
जरुर पूरा होगा। इस काम के लिए हम संकल्पित है। किसी काम को सच्चे मन से और निस्वार्थ भाव से    करेंगे तो पूरा करने में कायनात भी साथ देगी साधव बोले।
आखिरकार राघव, माधव  साधव और सिरताजी नेक संकल्प के साथ पूरे गांव के बच्चों को शिक्षित उच्च शिक्षित बनाने के लिए तन-मन से जुट गए।
राघव, माधव  साधव और सिरताजी हर सुबह घर घर धरना देने लगे ताकि छोटे बड़े सभी बच्चे स्कूल जाते। कुछ ही दिनों के बाद सभी मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल नियमित भेजने लगे। इस सामाजिक उत्थान के संकल्प की वजह से बालक आगे निकले ही कई बालिकाएं उच्च शिक्षित हुई , वजीफा तो मिला सरकार की ओर लैपटॉप, साइकिल तक भी मिले और भी बहुत कुछ मिल रहे हैं। इस अभियान के  सुखद परिणाम भी सालों बाद आने लगे बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे संघर्षरत रहकर पढ़ाई पूरी कर नौकरी धंधा और कुछ तो स्वरोजगार भी शुरू करने लगे। इन बूढो की समझदारी ने कमाल कर दिया बस्ती की चौखट पर तरक्की का पदार्पण होने लगा। 
सिरताजी गाती फिरती;
अपनी जहां के एक बाबा भीम रे बाबा
बदल गये दुनिया, शोषितों के हाथ सत्ता 
दे गये मानवतावादी संविधान रे बाबा
कर दिया जीवन न्यौछावर दे गये 
समानता का अधिकार वाह ये बाबा
शिक्षा का कैसा अचूक बाण दिया...…
शिक्षा को शेरनी का दूध बता दिया
वजीफा आसमान छूने की सीढ़ी   
अपनी जहां पर तेरा उपकार है बाबा
अपनी जहां के एक बाबा भीम रे बाबा।
 सिरताजी, राघव, माधव और साधव शरीर से तो सदा के लिए अदृश्य तो हो गए शेरनी के दूध शिक्षा को गांव वालों को ऐसे घूंट-घूंटकर पिला दिया कि गांव का हर व्यक्ति शेरनी का दूध पीकर तरक्की कर रहा  हैंऔर अछूत गांव विकास के पथ पर रफ्तार पकड़ रहा है।

नन्दलाल भारती
 27/10/2022










Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ