कविता: यात्रा
यात्रा तो यात्रा होती है
चाहे कुछ पग की हो
फिर छोटी हो
लम्बी हो
या फिर बहुत लम्बी
यात्रा तो यात्रा होती है
जीवन भी एक यात्रा है
है ना बाबूजी
इस जीवन यात्रा से
जुड़ी होती है
उम्मीदें बहुत सारी
और
तैयारियां
क्यों बाबूजी होती हैं ना
और
बिना किसी पूर्व सूचना के
रूक जाती है यात्रा
और
सब कुछ थम जाता है
चांद पर बसने की
तैयारियों के मध्य
और हो जाती है
पारी के समापन की घोषणा
सब कुछ रह जाता है
धरा का धरा
अरे अपनी जहां वालों
होश में आओ
आदमी हो समानता से जीओ
और देश की शान
आदमियत का मान बढाओ।
नन्दलाल भारती
३१/०७/२०२३
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY