Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ये पद कब तक है

 
ये पद कब तक  है

अकड़न झर गई होगी
मुर्दे की तरह अकड़न भी नहीं होगी
क्यों...... क्योंकि अब रिटायर हो गए ना
लोगों से मिलने को तरस रहे होंगे
क्यों सच है ना विरोध कुमार ?
सोचना क्या थी तुम्हारी
अकड़ और घमंड ?
अब तो सारी हवा निकल गई होगी
होता है,
कुर्सी का विष ऐसा है,
चढ़ गया तो जमीं के तारे 
कुर्सी पर बैठे की लोग कर देते हैं
तबियत हरी,
बो देते हैं सौहार्दता
लिख देते हैं अपना नाम
दिलों पर दूसरों के अमिट
बने रहते हैं नायक रिटायरमेंट के बाद भी
संस्था और लोगों के लिए 
ये लोग सदाचारी और वफादार होते हैं
कर्तव्य और संस्था के प्रति भी
सहकर्मियों के साथ रहते हैं मित्रवत
जानते हैं, पद और जीवन
सब अस्थाई है,
यही लोग याद रहते हैं आदरपूर्वक,
समझे विरोध कुमार 
हिटलर की औलादें
विष उगलती हैं,
नफ़रत बोती है,विष की खेती करती हैं
जाति --भेदभाव के उड़नखटोले पर सवार होती हैं
कर्तव्यनिष्ठ की सीआर खराब करती हैं
चम्मचों को पोसती हैं,
ये हिटलर की औलादें संस्था की छाती में भी 
खंजर उतार देती है,
ये हिटलर खुद बन जाते हैं विधाता
जैसे ही पद जाता है
गिर पड़ते धड़ाम से,तब औकात का पता चलता है
तब तक तो निकल चुकी होती है
हवा गुब्बारे की तरह
तब याद आता है काश.....
पदनाम में कुछ नहीं,रिश्ते जिन्दा रखते हैं
समझे हिटलर विरोध कुमार
ज़्यादा अकड़न की उड़ान भरोगे
गिरोगे जरूर चारों खाने चित 
घमण्ड के विमान पर मत उड़ा करो
ये पद कब तक है ?
एक दिन तो उड़ जाना है, जहां से।
नन्दलाल भारती
३१/१०/२०२३



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