Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बखरी

 
बखरी
नौ कमरों की बखरी थी 
माता-पिता के श्रम की कहानी 
गर्मी और जाड़े के मौसम में
बड़ी राहत देती थी बखरी
थी कच्ची माटी का महल 
सरपत,बांस काठ का स्तर
थपुआ नरिया की   छावन
घर के उपर चारों कोनों पर
शान बघारता  कलश,
कलश का ऐसू सौन्दर्य,
 हुलश जाये मन
माटी की ढाई-तीन हाथ चौड़ी दीवार
क्या मजाल हो जाये 
मौसम बेमौसम का कोई प्रहार
घोरिया,बंचड़ी की  कारीगरी
और 
दरवाजा काष्ठ कला का नमूना
बरसात होती जब झमाझम 
झूम उठता था मन
बैठ बैठक या ओसारी
बरसात में नहाती खेत माटी
माटी की खूशबू का था अद्भुत आनंद
पानी में लोटते खेलते बच्चे
बड़े बूढ़ों की कजरी के आनन्द सच्चे
चूल्हे में भले भर जाये पानी
कला थी अद्भुत वो, डाली बोरसी में राख
घासलेट की दो बूंदें
महक उठी कण्डे की आग
उठ चला चूल्हे से धुआं
वाह अद्भुत मां के हाथ का जादू
डेबरी की रोशनी कुआं का पानी
साधन कम जरुरतें सीमित
वो सब बीते जमाने की कहानी
वो  बखरी  प्राकृतिक वैभव
जहां चौखट तक आता था सूरज
पवन पहुंचता कोने कोने
चहुंओर आम,नीम, महुवा
और नाना प्रकार के पेड़ पालव
अब सांस के लिए संघर्षरत
बूढ़े और बालक,
ईंट सीमेंट लोहे पत्थरो बहुमंजिले इमारतें 
सुविधाएं अनेक
रिमझिम हो या जोर की बारिश
ना छत टपके अब ना होवे
घर आंगन तनिको कीचड़
खलती कमी,ना मांटी का सोंधापन 
ईंट पत्थरो से कैसा  सोंधापन ?
वाह रे माटी की बखरी वाह रे लोग
मिट गयी ग्रामीण निर्माण की कला
गांव की बखरी जैसा भला सुख कहां ।

नन्दलाल भारती
09/07/2023



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