कही कोई अपना हाथ न छोड़ दे
भरे जहाँ में अकेला ना छोड़ दे
डरा सहमा रहना आदत सी हो
आजकल
हिम्मत हारना तो सीखा नहीं
हौसले को टूटने दिया नहीं
ईमान से जीने की ख्वाहिश
कर्तव्यपथ पर बढना
जीवन की तमन्ना रही
कुछ अपनो का सपना तोड़ना
छूटे मोढ पर फिर से मिलना
क्या नसीब है या कोई खेल और
जीने की आस हिस्से दर्द मिलना
हौसले की उर्जा को बाधे है रखना
तेजाब का दरिया, उम्मीद के धागे से
है निकलना।
18/11/2019
डां नन्दलाल भारती ्
19/11/2019
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