Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विषधर

 
कविता: विषधर
तूझे कैसे खबर हो गयी
विषधर ?
मेरी तन्हाईयों का मैंने तो
कोई ढिंढोरा पीटा ही नहीं
तूझे कैसे खबर हो गयी......
विषधर तूझे खबर लगी है
तो
तुम्हें यह भी खबर होगी
कि
मुझे तन्हाइयों में जीने की,
आदत नहीं.........
तन्हाइयों पर काबू पाने के
अपने औजार है
कलम,दवात और
कागज
जो मेरे पास  हैं........
तेरा मेरा साथ तो हो नहीं सकता
क्योंकि तुम्हारी झोली में
विष है
मेरे झोले में कलम,दवात
और कागज
यानि सृजन के औजार ........
तू आ गया मेरी तन्हाई भंग करने
चला जा तू विषधर
तेरा साथ कैसे भा सकता है
और 
कभी तो भाया नहीं
अब कैसे भा सकता है
तू फन काढ़े फूफकार रहा है
डरा थमका रहा है
मैं कलम का सिपाही 
तू है विषधर
चला जा चला जा फौरन
तू आ गया मेरी तन्हाई में
तंग करने क्यों ?
लोग कुलबुलाये नाप लो रास्ता
रहने दो मुझे अपनी तन्हाई में
मशगूल
मेरी तन्हाई के संवाद के
औजार है 
कलम दवात और कागज
नाग पनाग उरग विषधर तू
कैसे आ गया मेरी तन्हाई में 
चला जा चला जा
हिम्मत का असर 
विषधर पीछे की तरफ
सरकने लगा धीरे-धीरे
मिटने लगे थे निशान
उधर उतरने लगी थी
विषधर की दास्तान ।।

नन्दलाल भारती
 23/05/2023

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