अनाम टोला
यह चौकी गांव का एक टोला है
कभी रविदासी नाम से जाना जाता था
भीमवंंशीय है अब यह टोला
गांव का हिस्सा तो है,
गांव के नाम से नहीं पहचाना जाता
बोर्ड भी लगा है सड़क किनारे
बोर्ड पर लिखा है,
भीमवंंशीय-जय भीम-जय भारत- नमोबुध्दाय
जनाब यही है मोहल्ले की प्रगति,
और कुछ नहीं।
यही नसीब है इस भीम वंशीय टोले की
बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, भूमिहीनता
मोहल्ले की सुलगती हुई अवन्नति है ।
सरकार को टोले की तरक्की रास नहीं आती
शोषित-टोले-मोहल्ले की याद नहीं आती
हां आती है तो चुनाव के दिनों में
बड़ी जाति बड़ी कुर्सी के उम्मीदवार
स्त्री हो या पुरुष
आते-जाते पांव छूकर जीत का लेते वादा,
फिर याद नहीं आते ।
याद आते तो उजड़ा चमन ना होता
भूमिहिनता का श्राप नहीं होता
गांव समाज की जमीं, पोखर-तालाब सब
अबैध कब्जे और बेईमानी की चपेट में अब
मोहल्ले की नसीब सिसक रही है
सरकारी नौकरी, अशिक्षा गरीबी से
सरकारी आंकड़े और ही कुछ कहते हैं ?
विकास के नंगेपन को, गोल्डन कलर लगा कर दिखाते
शोषितों की अवन्नति के सवाल नहीं उछले जाते,
मोहल्ले के लोग सरकारी भीख पा लेते,
कुछ किलो अनाज के रूप में
या जीरो बैलेंस बैंक एकाउंट में मिल जाते
यही तरक्की है और कुछ नहीं ।
सरकारें कहां चाहती है शोषितों के विकास ?
घड़ियाली नारा देते नहीं थकती है सरकारें,
सब का साथ-सब का विकास
कैसे होगा हाशिए के आदमी का उद्धार ?
शिक्षा-रोजगार पर दहकता ग्रहण,
शिक्षा हुई महंगी सच बहुत महंगी
हाशिए के लोग रहे शिक्षा से दूर
जनाब साजिश तो लगती।
सरकारें चाहती शोषितों का विकास तो,
होती मुफ्त समान शिक्षा -चिकित्सा
सच में होता विकास ।
जनाब सच तो ये है,नहीं चाहती सरकारें
आम शोषित-पिछड़ो का विकास
देश अपना संविधान अपनी सरकार
बराबरी का नहीं है अधिकार ।
काश देश को असली आज़ादी मिल जाती
संविधान ईमानदारी से होता लागू
जातिवाद-महंगाई ना होती बेकाबू
नफरत से नहीं सुलगता टोला-मोहल्ला
कुर्सी बचाओ के खेल में,
ना होता धर्म पर संकट का हो हल्ला ।
देश एक -संविधान,एक जाति होती
धर्म-जाति का भेद ना होता,
टोले-मोहल्ले में तरक्की बसती
आज़ादी का असली मकसद मिल जाता।
समान शिक्षा-समान चिकित्सा,
जमीं का समान बंटवारा हो जाता
शोषितों को अधिकार,
आजादी का मकसद पूरा हो जाता
चौकी गांव के भीम वंशीय टोले का
भले ही विश्व पटल पर नाम ना होता
देश के विकास नक्शे के पर,
गांव का यह टोला अनाम ना होता ।
नन्दलाल भारती
०४/१०/२०२४
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