आलेख -चंवर वंश को हक़ और सम्मान और कब तक? प्रकाशनार्थ
| Tue, Oct 15, 11:00 AM (22 hours ago) |
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आलेख: चंवर वंश को हक़ एवं सम्मान और कब तक ?
चमार शब्द का उपयोग पहली बार आदमियों विरोधी सिकन्दर लोदी ने किया था, जब तुर्की और अफगान के आक्रमणकारियों ने भारत में घुसपैठ कर रहे थे।हिंसक इस्लाम शासक सिकंदर लोदी भी एक आक्रांता आक्रमणकारी था। उस समय भारत में चंवर वंश का राज था, अखण्ड भारत में सकून था विकास की गंगा बह रही थी।सभी लोग सुखी, खुश और सम्पन्न थे। इस आदमियों विरोधी चंवर वंश को अपमानित किया,चमार कहकर गाली दिया अपमानित किया, जिसे सड़ी एवं घृणित मानसिकता के लोग आज भी चमार कहकर अपमानित करते हैं। जैसाकि चंवर वंश इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय है। चंवर वंश के लिए चमार एक गाली है जो सिकन्दर लोदी ने इस्लाम नहीं स्वीकार ने पर दिया था।अब जागो चंवर वंश के लोगों और जानो-इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी समुदाय सम्बंधित हैं । इस शोषित समाज को डां बाबासाहेब आंबेडकर ने स्वर्णिम पहचान दिया। हिन्दू के हठ धर्माधीशों के अस्वीकार करने पर खुद अपने लाखों अनुयाईयों के साथ बौद्ध धम्म स्वीकार कर लिये। बदलते भारत के आधुनिक भारत में इस समुदाय को, बौद्ध एवं नवबौद्ध के रूप पहचाना जाना प्रारंभ है।यह समुदाय कभी हिन्दू धर्मावलंबी नहीं था प्रकृति पूजक,दया,शील समता प्रेमी था। अहिंसा परमो धर्म पर विश्वास करने वाला समुदाय था। विवेकशील, बुद्धिमान तरक्कीपसंद समुदाय था अर्थात बुध्दिस्ट था। बुद्धिस्ट से ब्राह्मण धर्मावलंबी फिर हिन्दू, दमन -पतन की भयावह और दर्दनाक दास्तां है। हजारों बरसों के दमन के बाद यह समुदाय बाबासाहेब आंबेडकर के त्याग से पुनः कुसुमित होते हुए अपना वजूद टटोलने लगा है, बुद्ध की ओर बढ़ने लगा है। यही सार में इस समुदाय के संघर्षों की सुलगती और पुलकित कहानी है।
इतिहासकारों ने एवं रुढ़िवादियों ने भले ही इस समुदाय के साथ वैमनस्यता दर्शाया और एशिया महाद्वीप में व्याप्त विख्नयाति को भूला दिया और ऐतिहासिक मूल्यांकन को दुनिया के सामने ईमानदारी से प्रस्तुत नहीं किया, जिससे विश्व इस क्षत्रिय शासक समुदाय की वीरता जानने-समझने से अनभिज्ञ रह गया। इस मुखौटा बदलती दुनिया में इस समुदाय के अपने ही क्षत्रिय पूर्वजों ने भी इन्हें नहीं अपनाया परन्तु श्रुतियां नहीं मरती। श्रुति के अनुसार चंवर वंश अर्थात चमार इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय समुदाय से है,इसी सूर्यवंशी समुदाय से सन्त शिरोमणि रविदास जी भी थे, चित्तौड़ के राजा राणा सांगा के राजगुरु थे। यह देश का दुर्भाग्य है कि आज भी जातिवाद की आंच पर तपते लोग सिकन्दर के मूलभारत के यौद्धाओं को चमार कहकर अपमानित करते है। भारतीयता का समर्थन सन्त शिरोमणि रविदास जी ने किया । सिकन्दर लोधी की लाख यातनाओं को सह लिए इस्लाम नहीं स्वीकारे। आधुनिक भारत के स्वप्नद्रष्टा डॉ बाबासाहेब ने भी वही किसी विदेशी धर्म को स्वीकार नहीं किया। इस्लाम के समर्थक जातिवादी धार्मिक सत्ताधीशों ने शोषित दलित समाज (चमार अर्थात चंवर वंश) को हिन्दू धर्म में मानवीय समानता का हक़ नहीं दिया तो भारतीयता को बरकरार रखते हुए बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने बौद्ध धम्म को अपने समर्थकों के साथ अपना लिया। भारत को विदेशी धार्मिक आक्रांताओं से बचा लिये। सोचिए अगर सन्त शिरोमणि रविदास जी या बाबा साहब ने इस्लाम ग्रहण कर लिया होता तो देश का क्या होता,आज पाकिस्तान,ईरान, अफगानिस्तान, तालिबान की तरह धूं धूं कर सुलग रहा होता। आप अन्य आतंकवाद से पीड़ित पड़ोसी देशों की हालत देखकर समझ सकते हैं। इस उपकार बदले सन्त शिरोमणि रविदास और दुनिया के सूर्यनुमा डॉ भीमराव अम्बेडकर को क्या मिला रही है -चमार की गाली ? जबकि यह शासक समुदाय इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय है। इस सच को दुनिया से छिपाकर रखा गया। अछूत,चमार, भंगी जैसे आदि अमानवीय दर्द का विष पीकर आज भी जीते संघर्षरत है।
बातों से दंगल तो जीते जा रहें हैं। कुर्सी के लिए धर्म पर खतरा कितना डरावना जुमला है। पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने का दावा बस कुर्सी कब्जियाने का भ्रम और कुछ नहीं देखा जाए तो दो मुहें लोग एक तरफ इस्लाम का विरोध कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर चमार अर्थात चंवर वंश जो इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी समुदाय सम्बंधित हैं,जिसने इस्लाम नाकबूल करने की वजह से अपना अस्तित्व गंवा दिया उसे चमार कहकर अपमानित किया जा रहा है। ये सिकन्दर लोधी को पूज्य बना रहे हैं अर्थात इस्लाम को मान्यता दे रहे है,चंवर वंश को दुत्कार कर रहे हैं, चमार कह रहे हैं। चमार यह गाली क्षत्रिय समुदाय को इस्लाम आक्रांता सिकन्दर लोदी ने दिया था जिसे आज भी दिया जा रहे है। देश-धर्म के त्याग के बदले गाली और क्षत्रिय समुदाय से निष्कासन ? ध्यान रहे चमार सिकन्दर लोदी द्वारा चंवर वंश जो इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी समुदाय से सम्बंधित है, उन्हीं को दिया गया दण्ड है अपमान है गाली है। जिस भारतीय चंवर वंश समुदाय को यूरेशियन ने छल-बल से भारतीय समुदाय को तीन वर्ण -ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य में बिखण्डित कर खुद दोनों वर्णों की छाती को आसन बना कर जम्बूद्वीप पर कब्जा कर लिया था ।वहीं चंवर वंशी क्षत्रिय भूमिहीनता-गरीबी सामाजिक बहिष्कार को झेलते देश के सम्मान के पोषित करते हुए दर्द में बसर कर रहा है।जिस चतुर्थ वर्णीय व्यवस्था में यह समुदाय नरक भोग रहा है।यह यूरेशियन व्यवस्था प्रारंभ में ऐसी नहीं थी। प्रारम्भ में सिर्फ तीन ही वर्ण था,जिसका धर्म ब्राह्मण था, तब जातियों का अभ्युदय नामोनिशान भी नहीं था l चौथा वर्ण तो यूरेशियन ने इस्लाम शासकों को खुश करने के लिये बना डाला है, जिसकी वजह से हजारों बरसों से क्षत्रिय होकर भी अछूत होने का जहर पी कर जी रहा हैl
सोचिए इन खूंखार आतंकवादी यूरेशियन को वहां के राजा ने कुछ नावों में बिठाकर समुद्र में छोड़ दिया था ताकि इनका नामों निशान मिट जाये परन्तु ये बहते -बहते जम्बूद्वीप आज के भारत आ गये। यहां के मूल निवासियों ने इन्हें शरण दे दिया। यहां की महिलाओं से ब्याह किया, यहां के मूल निवासियों के साथ छल-कपट कर शनै -शनै साम्राज्य एवं अपना ब्राह्मण धर्म खड़ा कर लिया।यहां के मूलनिवासियों को एकदम से नीचले स्तर पर लाकर पटक दिए. अबमूलनिवासियों एहसान के बदले अपराध का एहसास होने लगा था.ये विदेशी लोग वर्ण व्यवस्था की आधारशिला भी रख लिए प्राम्भ में तीन वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य ही थे. जातीय स्थिति भयावह नहीं थी. इन यूरिशियन के सत्ता स्थापित करने के बाद इस्लाम आक्रांताओं के आक्रमण शुरू हो गए. यूरेशियन ने जम्बूद्वीप का नामकरण नामकरण आर्यावर्त कर आर्य संस्कृति की स्थापना करने में जुट गए. मूल भारत की संस्कृति और सभ्यता पर प्रहार शुरू हो गया. वही आर्यावर्त आज का भारत है । विदेशी मानसिकता के यूरेशियन ने इन इस्लामिक आक्रांताओं के बढ़ते सामाराज्य को देखते हुए सांठ-गांठ कर लिया। धीरे -धीरे अखंड जम्बूदीप पर इस्लाम राजाओं का साम्राज्य बढ़ने लगा, जम्बूद्वीप टूटने लगा. इन शासकों ने उन मूलभारतीयों के साथ निर्दयता और कठोरता का दुराचरण शुरू कर दिया ।मूलनिवासी जन समुदाय ने विरोध भी किया परन्तु दबा दिया गया। सम्भवतः यूरिशियन और इस्लामिक राजाओं की देश के लिए लड़ रहे लोगो के अलग -अलग समूह बनाकर हताश और गुलाम बनाने के लिए सेवा के काम को विरोध के अनुसार जैसा विरोध वैसा गन्दा, मेहनत और प्रतिष्ठा पर आघात करने वाले कामों के बटवारे शुरू हो गए. इस बटवारे का विरोध हुआ ही होगा. इस विरोध को कुचलने के यूरेशियन आक्रांताओं के खुरापाती दिमाग़ का घोड़ा दौड़ा होगा और उन्होंने ने मूलनिवासियों की नाक में नकेल डालने के लिए चौथे वर्ण क़ी स्थापना कर इन्हें धर्म क़ी जंजीर में जकड़ने का पुख्ता इंतजाम कर डाला.इस दमन के लिए इस्लाम आक्रांताओं से भरपूर सहयोग से लिया,तभी तो यह तथाकथित ज्ञानी समाज जो खुद को सबसे उपर रखा और मुस्लिम शासकों का विरोध नहीं किया. चौथे वर्ण के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार युगों तक होता रहा. अंग्रेजी शासन भी गुलामी था परन्तु इस अंग्रेजी शासन कालमें चौथे वर्ण अर्थात शुद्रो के लिए शिक्षा के द्वार खुले थे जो वर्ण व्यवस्था ने बंद कर रखा था, गुलाम बना रखा था. ध्यान रहे वर्ण व्यवस्था के प्रारंभ में चौथे वर्ण यानि शूद्र का कोई जिक्र नहीं है।प्रारम्भ में तीन वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही थे.
मुस्लिम शासकों ने जातिवाद को पूरा समर्थन दियाl सिककंदर लोदी ने सोलहवीं शताब्दी में चमार शब्द का प्रयोग बतौर अपमान किया था। जैसा कि सर्वविदित है सन्त शिरोमणि रविदास चंवर वंश के ही वंशज थे। प्रसिद्ध समाज सुधारक सन्त थे। चित्तौड़गढ़ के राजा राणा सांगा और उनकी पत्नी झाला रानी सन्त रविदास जी से अतिप्रभावित थे। राजा के अनुरोध पर चित्तौड़गढ़ के राजगुरु बनकर महल में रहने लगे। सन्त रविदास जी की ख्याति देश दुनिया में फैले रही थी। इससे बौखला कर सिकन्दर लोदी ने धर्म परिवर्तन करवाने के लिए सदना फकीर को भेजा परन्तु मुस्लमान बनाने आया सदना फकीर,सन्त रविदास जी से इतना प्रभावित हुआ कि वह खुद उनका शिष्य बन गया और हिन्दू धर्मावलंबी बनकर अपना नाम रामदास रख लिया। इससे सिकन्दर लोदी पागल हाथी की तरह पगला गया और सन्त रविदास को कारागार में डाल दिया,और चमड़े का काम जबरिया करवाने लगा। इससे पहले भारत में चमड़े का काम नहीं होता था। हालांकि सिकन्दर लोदी के इस कुकृत्य से चंवर वंशी एवं अन्य क्षत्रिय राजाओं का खून खौल गया उन्होंने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को देखते हुए सिकंदर लोदी ने सन्त शिरोमणि रविदास जी को आजाद कर दिया । इस्लाम शासकों ने चंवर वंशियों से जबरिया चमड़े का काम करवाना शुरू कर दिया, अपवित्र काम को जबरिया करवाने में हिन्दूवादी धर्म के ठेकेदारों और आदमियत के दुश्मनों ने इस्लामिक राजाओं भरपूर सहयोग किया. इस चंवर साम्राज्य को मिटा दिया, उनके धर्म, रीति-रिवाज को ख़त्म कर दिया परन्तु जो श्रुतियों में आज अमर है l मूलतः चंवर वंश जिसे आदमियत के दुश्मन आज भी चमार कहते हैं, जबकि अब इस शब्द पर कानूनी तौर पर गुनाह हैं l वही चंवर वंशीय लोग क़ृषि कार्य एवं पशुपालन करते थे आज भी कर रहें है परन्तु चमार शब्द का लोप इस लोकतंत्र के युग में भी जिन्दा है,जिसका असहनीय दर्द आज भी इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी चंवर वंश आज भी ढो रहा है।
भेदभाव का प्रभाव इतना बढ़ा कि चंवर वंश के लोगों के लिए शिक्षा के द्वार बंद कर दिए गए थे l इनकी वीरता और विशाल साम्राज्य और उसका स्वर्णिम इतिहास समूल नष्ट कर दिया गया।चमड़े के काम के कारण ही इन्हें क्षत्रिय समुदाय से अलग कर दिया गया, यह समाज अपवित्र-अछूत बनाकर जल जंगल और जमीन तक से बेदखल कर दिया गया । अन्ततः यह सूरवीर चंवर वंशीय क्षत्रिय समाज अश्पृश्यता का शिकार हो गया। किसी से मैला फेंकवाने का काम और किसी से चमड़ा का काम जबरिया इनकी मजबूत छाती पर लाद दिया गया। इन्हें अपने ही क्षत्रिय समुदाय के लोगों ने दूध में गिरी मक्खी की तरह मसल कर फेंक दिया। यही चंवर वंश के राजाओं और उनके समुदाय के चमार बनने का सच है , जिसके लिए सिकंदर लोदी जिम्मेदार तो है ही परन्तु अपना बनकर यूरेशियन विदेशी का योगदान सिकन्दर लोदी से कम नहीं हैl अर्वानाइजेशन की लेखिका डॉ हमीदा खातून के अनुसार -मध्य कालीन इस्लामी शासन से पूर्व भारत में चर्म एवं सफाई कर्म का एक भी उदाहरण नहीं मिलता है l हिन्दू चमड़े को निशिद्ध समझते थे, लेकिन भारत me मुस्लिम शासकों ने इसके उत्पादन के भारी प्रयास किये. डॉ विजय सोनकर के अनुसार मुस्लिम आक्रांताओं के धार्मिक उत्पीड़न का अहिंसक तरीके से सर्वप्रथम जवाब देने की कोशिश संत शिरोमणि रविदास ने की थी, जिनको सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक से चर्म कर्म में नियोजित करते हुए चमार शब्द से सम्बोधित किया और अपमानित किया. चमार शब्द का प्रचलन वही से हुआ l प्रोफेसर शेरिंग ने अपनी पुस्तक हिन्दू कास्ट एन्ड टाईव्स मै स्पष्ट रूप से लिखते हैँ कि भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं बल्कि ब्राह्मण और क्षत्रिय हैं. सच तो यह कि जिसे आप चमार से सम्बोधित करते हैं दरअसल वे चंवर वंश के क्षत्रिय थे, पूर्व काल में हिन्दू व्यवस्था मे वर्ण व्यवस्था थी, जाति व्यवस्था नहीं थी. संभवतः जाति व्यवस्था इस्लाम की देन है, जिसे हिन्दू धर्माधीशो ने अपनी स्वीकृति दे दी l
हजारों साल पहले एशिया महाद्वीप में चंवर वंश का साम्राज्य था,जिसे इक्ष्वाकु राजवंश और सर्यवंश के नाम से जाना जाता था जो बौद्ध धर्म अनुगामी था जिसे अछूत बना दिया गया,इनको शिक्षा -शिक्षा से वंचित कर दिया गया जिससे ये चंवर वंशीय जातियां-चमार,भंगी, रविदास, रोहिदास, रैगर, जटिया, सतनामी, अहिरवार, रैदास,जाटव,भांबी, सूरजबंशी, रामदासिया,असदरू,चौसर, हरलायि,समगर, मोची,बैरवा, सतनामी,रामधारी, जाटव, धुसिया,दुसिया,झुसिया,चरामाकर, ऋषि,कोरी,कोरी,पंवार, परमार,कोइरी, मौर्य, धोबी,धरिकार,बढ़ई,कहार, लोहार,चमार ,नोना चमार, नोनिया चमार,,तांती चमार,दुसाध चमार,फांसी चमार आदि नामों से पूरे देश में जानी पहचानी जाती है परन्तु इन्हें अपने ही क्षत्रिय भाईयों ने खुद से बहिष्कृत कर दिया,इनका धर्म छिन लिया गया। उधार का धर्म हिन्दू भी साथ नहीं दिया दिया सिर्फ गिनती के लिए हिन्दू माना जा रहा है। दूसरे धर्मों - सिक्ख,इसाई, इस्लाम आदि की ओर भी रुख किया परंतु उन्हें वहां भी हेय दृष्टि से देखा गया, हिन्दू धर्म जिसे सनातनी कहा जा रहा है उसने तो सिकन्दर लोदी और इस्लाम के समर्थन में पूरी तरह अछूत बनाकर शिक्षा -विकास से दूर फेंक कर गुलाम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना। जनश्रुतियों और लोककथाओं के अनुसार चमार को ब्राह्मण बड़ा भाई मानता है। ब्राह्मण हिन्दू धर्म का मुखिया हैं तो चमार बौद्ध धर्म का मुखिया। इसलिए चमारों की शादी में पंडित को नहीं बुलाया जाता। रामायण और कुमारिल की पुस्तकों के अनुसार बुध्द को शुद्र लिखा गया है। चमारों के घर अक्सर गांव से बाहर दक्षिण या पश्चिम दिशा में पाये जाते है। चमार गांव के राजा थे,इनको ही गांवों में डिहबाबा या ग्राम देवता कहा जाता है।चमार जाति में आज भी राजशाही के गुण झलकते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य भी चंवर वंशीय थे परन्तु गोरे थे, चाणक्य काले रंग का था इसलिए कहावत बन गई;-काला बाभन गोरा चमार.......।
१९वीं सदी के अंत तक, चमारों ने क्षत्रिय वंश का दावा करते हुए अपना जातीय इतिहास फिर से लिखना शुरू कर दिया।१९१० के आसपास यू.बी.एस.रघुवंशी ने कानपुर से चंवर पुराण प्रकाशित किया जिसमें चमार को मूलरूप से क्षत्रिय शासकों का समुदाय होने का दावा किया।२०वीं सदी के प्रारंभ में ही प्रभावशाली चमार नेता स्वामी अच्युतानंद ने निचली जातियों को भारत का मूल निवासी चित्रित किया इसके बावजूद भी क्षत्रिय वंश का दावा करने वाली चमार जाति के न तो सामाजिक विकास में और नहीं आर्थिक विकास में कोई विशेष प्रगति देखी गई। तदोपरांत भारतीय राजनीति में डां बाबासाहेब अम्बेडकर का पदार्पण हुआ। बाबासाहेब का संघर्ष रंग लाया। सदियों से शोषित उत्पीड़ित चमार,जिसे दलित के नाम से जाना जाने लगा। बाबासाहेब के त्याग से ही चमार और उसकी सभी उपजातियां,जो लगभग एक सौ पच्चास जातियों में बिखण्डित हैं, कुछ लोग तो ग्यारह सौ उपजातियां भी बताते हैं का सामाजिक, शैक्षणिक आर्थिक और राजनीतिक उत्थान शुरू हुआ। यह बहिष्कृत वर्ग अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नाम से पहचाना जाना जाता है। बाबासाहेब के बाद तो इस वर्ग का विकास जैसे थम गया।१९७० के दशक में कांशीराम जी इस सभी पीड़ित शोषित दलित और पिछड़ी जातियों को संगठित करने का अथक प्रयास किया और बहुजन समाज पार्टी बना दिया और बहुजन समाज के विकास के लिए पुनः राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन प्रारम्भ कर दिये, परिणाम सार्थक रहे। अब बहुजन समाज की कमान बहन मायावती के हाथ में तो है पर वो बात नहीं। राजनीति में आये हलचल से बहुजन समाज की सम्वृध्दि पर ग्रहण सा लग गया है। राजनीतिक सत्ता पर धर्म की सत्ता हावी हो गयी है। एक तरह का षणयन्त्र शुरू हो गया है। आरक्षण सिकुड़ता जा रहा है। शिक्षा भयंकर महंगी हो चुकी है। सरकारी अब नीजिकरण की ओर तेजी से बढ़ रही है, परिणाम स्वरूप सरकारी नौकरी नहीं के बराबर बचेगी। उद्योग जगत में पुनः शोषण शुरू होने लगेगा। सदियों से शोषित,गरीब, भूमिहीन समाज जो क्षत्रिय वंश का होने और मूलनिवासी होने का दावा कर रहा था, शादियों के उत्पीड़न और शोषण के बाद भी जिसको चमार कहने पर आज भी खून उबल उठता है और लड़ाई झगड़ा दंगा -प्रर्दशन तक की नौबत आ जाती है। हालात को देखकर लगने लगा है उसका दमन और पतन पुनः होने लगेगा।
विचारणीय प्रश्न यह कि क्या इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी वंशीय क्षत्रिय होने का दावा करने वाला समाज पुनः गुलामगिरी को ओर शनै शनै ढकेल दिया जाएगा। देखने वाली बात है कि क्या इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश का हृदय परिवर्तन होता है? धार्मिक व्यवस्था सामाजिक समानता की ओर कदम बढ़ाती है ? गुमनाम -चंवर वंश -(चमार)इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी समाज सम्मान पाता है वर्तमान भारतीय लोकतंत्र की व्यवस्था में संविधान का अक्षरशः पालन होता है या यह सदियों से दमित समाज संगठित होकर राजनीतिक सफलता हासिल कर पाता है।इन सवालों का जबाब तो भविष्य ही।देखा आधुनिक भारतीय धार्मिक सत्ता अपने विधान परिवर्तन परिवर्तन तो करना ही चाहिए। इतने से ही नहीं बहुजन समाज के वर्तमान , बहुजन नायकों,कर्णधारों एवं भारतीय समाज के सुधार को बहुजन समाज (जो अब चंवर वंश एवं पिछड़े/आदिवासी समाज का वृहद समूह है,जो राजनीतिक ही नहीं धार्मिक स्तर भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है) के सामाजिक समानता-प्रतिष्ठा, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को गम्भीरता एवं ईमानदारी के साथ विकासात्मक कार्य करना पड़ेगा तभी बहुजन समाज विकास का मुख्य धारा से जुड़ सकेगा। यह वही क्षत्रिय-चंवर वंश है जो युगों से लाख यातनाओं शोषण -उत्पीड़न के बाद भी कभी नहीं अपने देश अपनी माटी के साथ जुडा हुआ है. कष्टप्रद जीवन के बाद भी अपने लिए अलग से नहीं देश और नहीं प्रान्त की मांग किया. बड़ी श्रद्धा के साथ देश की माटी को माथे लगा रहा चमार है. यह वही क्षत्रिय ( इक्ष्वाकु और सूर्यवंशीय) चंवर वंश है, जिस समुदाय को जल, जंगल और ज़मीन से बेदखल कर युगों/सदियों से अपमानित किया जा रहा है, क्या उसे उसका हक़ और सम्मान मिल पायेगा?
नन्दलाल भारती
Email: nlbharatiauthor@gmail.
(लेखक साहित्यकार एवं सामाजिक चिंतक है)
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