लघुकथा: छोटे घर की बेटी
धवल की दोस्ती कालेज की पढ़ाई के दौरान कंवर से हो गई। कंवर ने कालेज की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की मंशा जाहिर किया इतना ही नहीं वह अपने मामा की छोटी बेटी सुन्दरी का ब्याह धवल के छोटे भाई भंवर से करवाने का दबाव बनाने लगा।
धवल के पिता गांजे लाल सिंह सहर्ष मान गए। ब्याह में एक रुपए का दहेज नहीं लिया गया। लड़की की मांग में सिंदूर लगते ही गांजे लाल के पांव तले की जमीन खिसक गई।
घरातियों ने बारातियों के साथ शर्मनाक व्यवहार किया। बारातियों को खाना तक नहीं नसीब हुआ। बाराती पेट में भूख लिए लौट गए ।दुल्हन का नाम सुन्दरी तो था वह छंछून्दरी निकली। गुण-सहूर से दूर बहुत दूर थी। माथा पीटने के अलावा और कुछ न था धवल और उसके बाप को। कंवर ने धोखे से दोस्ती की कसम देकर कंजर परिवार की बेटी को शरीफ परिवार के घर की बहू बनवा दिया था। दोस्ती लहूलुहान थी,कंवर खुद ब्याह से गायब था ।
सुन्दरी ससुराल के लिए गले की हड्डी हो गई। बड़े घर की बेटी वसुंधरा ने उसे परिवार के तौर-तरीके सीखाने का बीड़ा उठा लिया। बसुंधरा तो थी जेठानी परन्तु वह माँ की भूमिका निभाने लगी और सफल हुई। ब्याह होते ही मायके वालों ने सुन्दरी का परित्याग भी कर दिया। समय अपनी गति से चल रहा था।सुन्दरी और भंवर दो बच्चों के मां-बाप बन तो गये पर भंवर बेरोजगार रह गया। परिवार की माली हालत भी अच्छी न थी l
भंवर और उसके परिवार का खर्च और बच्चों की परवरिश और पढ़ायी-लिखायी का खर्च भाई धवल ने उठाया पर एहसास नहीं होने दिया। भंवर और उसके परिवार के लिए धवल और वसुंधरा मां-बाप की तरह थे परन्तु बेटे अवध को नौकरी मिलते ही सुन्दरी धन देखते ही बवरा गयी,अंवारा बदलों की तरह बरसने लगी। वही मायके वाले सुन्दरी के हितैषी बन गये थे जो ब्याह के बाद परित्याग कर दिए थे । बूढ़े हो रहे धवल और वसुंधरा बेसहारा तो न थे l अच्छे कमासूत दो पुत्र और एक पुत्री थी l नियति में बदलाव तो देखिये भंवर-सुन्दरी और अपनों बच्चों के पालक धवल और बसुंधरा को पराया कर दिए ।
सुंदरी कैकेई बन गई।अवध जो वसुंधरा की गोद में पला-बढ़ा पढ़-लिखकर साहब बना थाl मां सुन्दरी के कैकेई के रूप में आते ही अवध और उसकी नई नवेली दुल्हन पर कैकेई का रंग सवार गया।चंवर और वसुंधरा पर अब नेकी के बदले परायेपन का वनवास भोग रहे थे।
कैकेई अवध की तरक्की पर हुंकार भर रही थी ।धवल और वसुंधरा मां-बाप न बनते तो आंसू से गीला करने के लिए रोटी भी नसीब न होती । गांव वाले कहते हाय रे छोटे घर की बेटी सुन्दरी तुमने परमार्थ की छाती में स्वार्थ की खंजर घुसेड़ दी l कोई कैसे डूबते भाई का हाथ पकड़ कर ऊपर उठाएगा । कैकेई तुमने दिखा दिया- बड़े घर और छोटे घर की बेटी में अन्तर ?
नन्दलाल भारती
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