गुस्ताखी माफ
भाई प्रवीण सीनियर सिटीजन होl पारिवारिक रिश्ते की मजबूती के लिए कोई कहानी सुना सकते हो तो सुनाओ l देखो शहर में ही नहीं गावों में संयुक्त परिवार की दीवारें दिन पर दिन टूटती जा रही हैl रिश्तों में आ रही टूटन को रोकने के लिए कोई सटीक किस्सा सुनाओ प्रदीप बोले l
देखो प्रवीण तुम कौन से इक्कीस साल के जवान हो l तुम सत्तर के हो मैं बांसठ का l बस इतना ही फर्क तो है l हम दोनों भारत देश के सीनियर सिटीजन हैं प्रवीण बोले
अरे प्रवीण तुम बुरा मान गए प्रदीप बोले l
अरे नहीं भाई पर मेरी कहानी सच्ची लगेगी l कोई खुद की कहानी नहीं मानें कहानी की तरह सुने खुद में बदलाव लाये l औरों के जीवन में बदलाव लाने की कोशिश ईमानदारी से करे l कोई हुंकारी नहीं भरेगा प्रवीण बोले l
प्रदीप पूछे मंजूर है ना ?
चौपाल पर उपस्थिति सभी महिलाओ-पुरुषों ने एक स्वर कहा है प्रवीणभाई मंजूर है l जल्दी शुरू करो और देर नहीं l
अब बीच में जो बोलेगा उसे पेनल्टी देना होगा l सुनो यह कहानी दो भाईयों की है-इस कहानी का शीर्षक है -गुस्ताखी माफ प्रवीण भाई बोले l
इतने में प्रदीपभाई झट से पूछ लिए ऐसी-गुस्ताखी माफ?
है ना भाई तभी कहने जा रहा हूँ l गुस्ताखी माफ एक पत्र है जो करमदेव, बड़ा भाई छोटे भाई भरमदेव को लिखता है lप्रवीण भाई नाश्ता आपकी तरफ से है याद रखियेगा l अब टोंकाटांकी करने पर डिनर की पेनल्टी लगेगी याद रखियेगा सभी लोग l अब और नहीं टोंकाटांकी lभाई सुनो कहानी l दो भाईयों की कहानी है बड़ा भाई -करमदेव नौकरी पेशा था दूसरा भरमदेव कहने को डॉ. था l
अब बीच में बोलना मना है l बोलने वाले को पेनाल्टी लगेगी याद रहेगा ना प्रवीण बोले l
मंजूर है, कहानी तो सुनाओ प्रदीप बोले l
पेनाल्टी भी सुन लो प्रवीण बोले l
रात्रि भोज की शर्त मंजूर करने के लिए तैयार रहना बोलने कोई वाले -कहानी सुनाओ प्रदीप बोले l
भाई प्रदीप आपका हुक्म मुझे भी मंजूर है l सुनो भाईयों-बहनों दो भाईयों की कहानी है -गुस्ताखी माफ l यह कहानी भाई के नाम पत्र है प्रवीण बोले l
कहानी गुस्ताखी माफ़, लम्बे संघर्ष एवं लम्बी बेरोजगारी के कष्टप्रद जीवन के बाद करमदेव को एक कम्पनी में नौकरी लग गयी थी l बड़े भाई करमदेव ने डॉ नाम से जाने वाले छोटे भाई भरमदेव की अवहेलना के बाद के लिखा है l करमदेव बड़ा भाई है, परन्तु छोटे भाई को सम्बोधित करता है ;
आदरणीय डॉ साहब, बुलावे का हल्दी चावल आपको नहीं भेज पाया,माफ कीजिएगा पर आप भैय्यपन के प्रति ईमानदार नहीं रहेl आप होली के दिन भी नहीं मिलने आयेl डॉ साहब आप जानते हैे कि मैं रिटायरमेंट के बाद कई बार अस्पताल मे भर्ती हो चुका हूँ l बचपन से लेकर आज तक पुत्रवत व्यवहार किया l परिवार को गरीबी की दलदल खींचकर सम्पन्नता के रास्ते पर लाया l
डॉ साहब आप और आपके बच्चों को वही जीवन देने की कोशिश किया जो अपने बच्चों को दिया l डॉ साहब मैंने कोई गुनाह नहीं उपकार किया है l डॉ साहब आप कैसे भाई आप हैं पुत्रवत व्यवहार और जीवन की खुशियाँ देने वाले भाई की छाती पर आप सुलगते दर्द का बोझ रखकर ,अपने पुत्र और बहू जिन्हें आप कहते हैं, उस भगवान के घर से ही चुपचाप वापस चले गए। मैंने और मेरी पत्नी ने जिस चार साल को पाल-पोस, पढ़ा-लिखाकर बनाया, उसके बाप के लिए हम शैतान हो गए l
डॉ साहब मैं गलत था l मैंने आपको लक्ष्मण जैसा भाई माना l कृष्ण जैसा सारथी समझा था l आपसे उम्मीद लगा लिया था कि आप मेरे जनाजे में दो कदम साथ चलेंगे पर क्या आप तो विभीषण बन गए l डॉ साहब जिन लोगों ने आपको भ्रमित कर आपको विभीषण बनाया है, कही वही लोग कभी आपको अंधे मोड़ पर छोड़ दे तों आवाज़ दे देना मैं कंधे पर हाथ रखूँगा, यदि जिंदा रहा तो l
वाह कैसा भाई है करमदेव? अवसरवादी भरमदेव अपने भगवान के घर से वापस चला गया करमदेव से मिलना भी उचित नहीं समझा,अपनी सत्ता कायम करने वाली पुत्र-बहू के फरेब में पड़कर उस भाई को त्याग दिया, जो बड़ा भाई करमदेव, छोटे भरमदेव भाई को फर्श से अर्श पर पहुँचाया l वही छोटा भाई भैय्यपन का कत्ल कर दिया l भयावह पीड़ा के बाद भी करमदेव हाथ बढ़ाने को तैयार है प्रदीप पूछें?
प्रदीप भाई, करमदेव ने छोटे भाई के साथ पुत्रवत व्यवहार किया था l पुत्र कितना भी नालायक हो जाये प्रणाम माता -पिता का मोह ख खत्म होता है lआगे की कहानी तो सुनो l भरमदेव अपने भाई के घर नहीं गया, जिस भाई ने सम्मान के साथ जीने लायक बनाया l भरमदेव अपने भगवान यानि अपनी पुत्रबहू और पुत्र के घर से वापस चले गए पंद्रह दिन रहकर l डॉ साहब और उनकी पारिवारिक दयनीय परिस्थितियों में बदलाव लाने वाला करमदेव और उसकी पत्नी थी पर अच्छे दिन आते ही नासमझ शिकारी वाली पुत्र-बहू के जाल में फंसकर भरमदेव अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लिया और जमीन से उठाकर जिस भाई करमदेव ने आसमान पर बिठाया उसे शैतान बना दिया l वाह रे नये-नये अमीर बने अफसर बेटा के पापा, अफसर बनाने वाले तुम्हें छोटे लोग लगने लगे, उनसे मिलना तुम्हारी शान के खिलाफ था घोंप दिए भैय्यपन की छाती में स्वार्थ का खंजर और बना दिए अजनबी प्रवीण बोले l
बिना किसी मेहनत की तरक्की का साइड इफेक्ट हो गया l
कल जो शकुनि के रुप में बहू आयी, वह ससुर साहब के लिए भगवान बन गयी l चालीस साल से डॉ साहब और उनके परिवार को पीठ पर लादे रहने के बाद तरक्की के रास्ते पर ले जाने वाला भाई करमदेव शैतान हो गए l छाती में खंजर उतारना कोई भरमदेव से सीखे l फोकट में तरक्की की हवाई जहाज पर सवार डॉ साहब लगता है बौरा गए थे बहू के रुप में शकुनि को सलाहकार बना लिए प्रदीप बोले l
हाँ प्रदीप भाई पत्र के अनुसार भरमदेव पति-पत्नी ने बड़े भाई का त्याग तो कर दिए पर बदनाम करने में भी पीछे नहीं रहे प्रवीण बोले अभी पत्र समाप्त नहीं हुआ है l
सच प्रवीण भाई पलकें गीली होने लगी l उस बड़े भाई करमदेव और भौजाई का क्या हाल हुआ होगा? जिनके ह्रदय में खंजर उतरा होगा lक्या कोई भाई भैय्यपन के प्रति इतना क्रूर कैसे हो सकता है, जबकि बड़े भाई के उपकार का भार छोटे भाई का पूरा परिवार सात जन्म में भी नहीं उतार सकता l भरमदेव को बाघिन की शिकार करने की रणनीति नहीं समझ में आयी l भैय्यपन क़े छाती में खंजर उतारकर भरमदेव कर बड़ी भूल कर गया प्रदीप माथा ठोंकते हुए बोले l
आगे की कहानी तो सुनो प्रवीणभाई बोले;
डॉ साहब माफ़ कीजियेगा,मेरी वजह से आपका बहुत अपमान समाज में हुआ होगा, क्योंकि आपको तरक्की की रथ पर चढ़ाने के लिए पुल बना l आपके न्यूरोट्रीटमेंट के लिए हनुमान बना, शायद यह मेरी गलती थी l आप शहर में कुछ दूरी पर अपने पुत्र और पुत्रबहू जिसे आप भगवान कहते हैं, उनके घर से पंद्रह-बीस दिन रहकर चले गए l मुझ शैतान भाई से मिलना तो दूर आपने फोन करना भी उचित नहीं समझे l
मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया, यह अपराध माफ़ी के काबिल भीम नहीं लगता l मुझे बुलौवा के साथ आपके लिए पालकी भेजना चाहिए था, आपको आपके भगवान के घर से मुझ शैतान के घर तक लाने के लिए। क्षमा करें भाग्यविधाता.... गुस्ताखी के लिए माफ़ करें डॉ साहब l
कैसी गुस्ताखी? कैसी माफ़ी? भरमदेव कसूरवार पर क्षमा करमदेव ने क्यों मांगा प्रदीप पूछे?
प्रवीनभाई बोले -प्रदीप भाई यही बड़े लोगों का बड़प्पन है l नाश्ता आपकी तरफ से है,कहानी सुनो l प्रवीण भाई कहानी को बढ़ाते हुए बोले सुनो नौकरी पेशा भाई ने पत्र में लिखा था डॉ साहब;
जैसाकि आप जानते ही हैं,मैं विगत चालीस -पैत्तालीस साल से आज तक आप और आपके परिवार को पीठ पर लादे रहा। आपका ही नहीं आपके बच्चों का पालन पोषण, शिक्षा -दीक्षा, दर -दवा, सुख-दुख,देख-रेख, और प्रगति के लिए संघर्षरत रहा जिसका परिणाम दुनिया के सामने है। इस प्रगति में आपका कोई योगदान नहीं है। सोचना फुर्सत मिले बच्चे पैदा करने के अलावा आपने क्या किया है l आपने बच्चों को कभी अपनी कमाई एक वस्त्र भी कभी दिया है l मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो डॉ साहब?
बदनाम करमदेव क्यों प्रदीप पूछे?
प्रवीन बोले -प्रदीपभाई महाभारत पूरी होने वाली है आप पूछ रहे हो द्रोपती की साड़ी किसने खींचा l सवाल का जबाब पहले ही मिल चुका है l ध्यान से सुनो l बहुत टोंकाटांकी हो गयी l याद रखो प्रदीप भाई डिनर का इंतजाम बाकी है l आगे की कहानी तो सुनो बड़े साहब पत्र में आगे लिखे थे -डॉ साहब, आपको मुफ्त में मिली तरक्की का इतना बड़ा घमंड। आपने मेरे त्याग ही नहीं भैय्यपन को भी अपमानित किया है।
प्रदीप भाई बोले- मुफ्त में मिली तरक्की तो समझ में आ गई l द्रोपती की साड़ी कहाँ से आ गई l
अरे भाई कहानी सुन रहे हो तो कहानी पर ध्यान दो प्रवीण बोले l
प्रदीप बोले- कहानी सुनाओ भाई l
प्रवीण भाई बोले - करमदेव ने पत्र में आगे लिखा था -डॉ साहब आप नये -नये रिश्तेदारों के सामने भी आप मुझे नहीं छोड़े। नये रिश्तेदारों से भी कह दिए कि अरे उनको छोड़ो वे तो वैसे ही है। आपको मैं पीठ पर बिठाकर तरक्की के रथ पर चढ़ाया l तरक्की के रथ पर आपके चढ़ते ही आपकी नजरों में गिर गया ऐसा कौन सा गुनाह मुझसे हो गया डॉ साहब?
बेटी के ब्याह में मैंने अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिया। तन-मन-धन से सहभागी रहा पर वहाँ भी मुझे अपमानित किया गया और प्रचारित किया गया कि मैंने एक पैसा नहीं दिया। ऐसा ही अपमान बेटा कि शादी में हुआ और कहा गया कि दहेज नहीं मिलता तो बेटवा का ब्याह नहीं होता ।
मेरे त्याग को लतिया दिया गया । अब कोई बात तक करने की राजी नहीं जैसे मैं कोई गुनहगार हू l डॉ साहब ,याद कीजिएगा बीते पिछले चालीस साल के वो दिन।
मुझे मालूम है मैं कम्पनी की नौकरी से रिटायर हूं,बासठ साल के उपर का हो गया हूं। मुझे पेंशन नहीं मिलती, कई बीमारियों की चपेट में हूं।इसके बाद भी मुझे न तो आप और नहीं आपके भगवान -आपके बेटा-बहू की सहारे की जरूरत मुझे नहीं होगी क्योंकि माता-पिता की दुआएं मेरे साथ हैं और खुद पर विश्वास ही नहीं अपनों पर पूरा विश्वास है l यही मेरी ताकत है l
प्रदीप बीच में बोले-डॉ साहब को लगा होगा कि कहीं उनके बेटवा का बड़े भाई करमदेव आश्रित न बन जाए l प्रदीप भाई की बात नजरअंदाज करते हुए प्रवीणभाई कहानी में विराम न लेते कहानी सुनाये जा रहे थे l प्रवीणभाई बोले बड़े भाई पत्र में लिखा था -
डॉ साहब आपकी तरक्की और आपके भगवान -बेटा-बहू आपको मुबारकl आपकी तरक्की के लिए मैंने अपने बच्चों के हक में कटौती किया, अपने सुख का त्याग किया है, आपके बेटवा और आपकी तरक्की में आपका कोई योगदान नहीं है....तरक्की आपको खैरात में मिली है इसलिए लाटरी की रकम की तरह अपच हो रही है l डॉ साहब खुद पर काबू रखो...... डॉ साहब गुस्ताखी माफ़ करियेगा पर याद रखियेगा जिस तरह शातिर ने षणयंत्र रचकर मुझे शिकार बनाकर अलग किया गया है, कहीं आप मत ना जाना, नहीं तो बुढ़ौती ख़राब हो जाएगी l कभी मेरी याद आये तो आ जाना गले लगा लूंगा l डॉ खुश रहिये,तरक्की का मजा लीजिये...आपकी तरक्की मुबारक,
मुझे मेरे संघर्ष से खड़ा कद और खुद पर भरोसा !
वाह क्या शानदार प्रेरणादायी बात बड़े भाई नें लिख दिया l कोई भी आदमी इतनी सी बात जीवन में उतार ले तो ये तेरा मेरा की लड़ाई में रिश्ते अपमानित न होते प्रदीप भाई बोले l
प्रदीप भाई आपकी टोंकाटांकी बढ़ती जा रही उसी हिसाब से पेनल्टी भी बढ़ रही है l प्रवीणभाई बोले सुनो बड़े भाई छोटे अवसरवादी भाई को समझाते हुए क्या लिखते हैं
महोदय,याद रखिए,जिस घर में और जिस जमीन पर आप और आपके लोग उपभोग करते हैं,जिस खेत का अन्न आप और आपके लोग खा रहे हैं, उसके लिए मैंने बड़ा त्याग किया है, मां-बाप के साथ, आंख खुली भी नहीं थी तब से ही शारीरिक परिश्रम किया, भविष्य निर्माण का पैसा लगाया,नहर पर माटी फेंककर पैसा कमाया l माँ -बाप के साथ मेहनत मजदूरी किया, पढ़ाई किया l लाख कष्टो के बाद सफल हुआ आप और आपके परिवार के लिए भी पुल बना पर मुझे मिला क्या सुलगता दर्द l
डॉ साहब आपकी हमें इंतजार थी कि आप अपने भगवान के घर से एक दो दिन के बाद मेरे पास आयेंगे तो शहर के जिस के बड़े अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ से मेरा इलाज चल रहा उन्हीं डॉ का अप्वाइंटमेंट लेकर आपको दिखा देंगे पर आप तो बुलौवा न देने का गुनहगार बनाकर वापस चले गए।
खैर अब तो आपके पास आपके खुद के भगवान -बेटा-बहू है,हम लोगों की आपको क्या जरूरत ? इसलिए आप बिना किसी सूचना के शहर आये चुपके से अपने भगवान से मिलकर चले गए l
प्रवीण भाई आगे कहानी कहते बीच में ही फिर प्रदीप भाई बोले-भाई हो तो ऐसा l इसीलिए कहा गया है बड़े भाई-भाभी माँ-बाप के बराबर होते है l
याद रखो प्रदीप भाई डिनर की व्यवस्था बाकी हैl आप कहो तो कहानी सुनाऊं नहीं तो ख़त्म कर दूँ प्रवीण भाई बोले l
अरे अधूरी नहीं भाई,पूरी कहानी तो सुनाओ डिनर की पेनल्टी लगा सकते हो प्रदीप बोले l
ओके प्रदीप भाई कहानी सुनो -अपने बच्चों के हको में कटौती और खुद के सुखों को भुलाकर छोटे भाई और उसके परिवार की नसीब संवांरने वाला परन्तु आहत बड़ा भाई छोटे भाई को लिखा-डॉ साहब आप और आपके लोग सब कुछ भुला चुके हैं,बस आपको याद है आपके वर्तमान भगवान -बेटा-बहू ।
हम इतने बुरे थे तो डॉक्टर साहब तो आप हमें चालीस -पैतालीस साल पहले क्यों नहीं त्याग दिए आज की तरह। ऐसा कर देते तो मेरी आंखें ना झरती और नहीं मेरा श्रम और ना मेरी मेहनत की कमाई की तोहीनी होती। डॉ साहब आपकी अवसरवदिता को देखकर माँ-बाप की आत्मा भी कलप रही होगी l परमात्मा आपको सद्बुद्धि दे l मैं तो आपके लिए यही दुआ कर सकता हूँ l
क्या भाई है, छोटे भाई के लिए इतना बड़ा त्याग बदले में मिला-अपमान, तिरस्कार l ये तो गलत किया डॉ ने प्रदीप बोले बाकी लोग पेनल्टी की डर से मुंह में दही जमाये बैठे, कहानी सुन रहे थे l
सुनिए पत्र में आगे लिखा था परम आदरणीय डॉ साहब आप भैय्यपन और त्याग का चीरहरण कर खुश तो बहुत होंगे। आदरणीय आप भैय्यपन और त्याग को भूलाकर पट्टीदार बना दिये है, आशा है आप पट्टीदार के अर्थ को समझकर पट्टीदार के साथ ईमानदारी बरतेंगे।
मेरी पत्नी जो आपको पुत्रवत प्यार की, आपकी पढ़ाई के लिए अपने गहने तक बेंच दी l आपके न्यूरो की बीमारी की खबर से हम लोग कितना रोये थे l पांच-सात साल शहर से इलाज करवाए, भगवान की बड़ी कृपा है आप स्वस्थ है, हम लोगों के शकुन की बात है l आपकी पत्नी का आपरेशन करवाए पर चालीस-पैतालिस साल की अपनी तपस्या भंग हो गई, आपने सब भूला दिया l डॉ इसका मलाल तो रहेगा l
डॉ साहब आपके भैय्यपन की छाती भोंक दिया है परन्तु डॉ साहब आपको मेरे जनाजे का बुलौवा मिले या न मिले । मेरी चिता से उठे धुयें की खबर आपको लग ही जायेगी......अब आपके लिए मैं अजनबी हो गया हूं। डॉ भरमदेव साहब मैंने कभी इस बात की फिक्र नहीं किया मैं किस परिवार से आया हूँ मुझे इस बात की फ़िक्र सताती रही कि मैं कैसा परिवार छोड़ कर जाऊंगा ?
वाह रे करमदेव क्या बात कह दिया भाई को लिखे गुस्ताखी माफ़ नाम के पत्र में - मैं कैसा परिवार छोड़ जाऊंगा और अपने मकसद में कामयाब भी हुआ पर भाई ने ही सुलगता हुआ घाव दे दिया प्रदीप बोले l
प्रदीप भाई पत्र के आखिर में करमदेव क्या लिखा था आगे तों सुनो प्रवीण बोले?
गुस्ताखी माफ़ सुनाओ भाई प्रदीप बोला l
करमदेव लिखा डॉ साहब नौकरी के पहले दिन से दर्द सहा, भेदभाव-नफ़रत सहा,शहर में भूख का दर्द सहा पर परिवार को आंच नहीं आने दिया पर डॉ साहब आपने लाखों टन के दर्द का भार मेरी छाती रख दिया है l डॉ साहब मैं चैन से कैसा जी पाउँगा?वह बहते हुए आंसू के साथ पत्र के आखिर में लिखा भरमदेव डॉ साहब गुस्ताखी माफ़ कीजियेगा l
प्रवीण भाई बोले देवियों एवं सज्जनों पत्र समाप्त l आओ अब अपने-अपने घर चले l
कहानी से बहुत कुछ सीखने समझने को मिला है l भैय्यपन के लिए जियेंगे-मरेंगे वादा रहा l कहानी गुस्ताखी माफ के माध्यम से यह पत्र रिश्तों को जोड़ने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है l कहानी गुस्ताखी माफ भाईयों के रिश्तों को मजबूती देगी l बहुत बढ़िया कहानी सुनाये हो प्रवीण भाई l भाई हो तो बड़े भैया करमदेव जैसा l प्रवीणभाई नाश्ता और डिनर कब प्रदीप भाई पूछे l
गुस्ताखी माफ़...... प्रवीण भाई बोले l
भाई से रिश्ता कभी नहीं तोड़ेगे l भाई का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे l भैय्यपन में जीएंगे, भैय्यपन में मरेंगे l वादा करते, हँसते -मुस्कराते सब अपने-अपने घरों की ओर चल पड़े l
नन्दलाल भारती
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