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Dr. Srimati Tara Singh
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ईनाम

 

ईनाम

आप सम्मान के लिए लिखते हैं 

धनवान बनने के लिए लिए  या

रायल्टी के लिए लिख रहे 

विचार कुछ ऐसे हैं जनाब क्या?

बंद कर दीजिए 

ईनाम या विद्वान साबित करने के लिए लिखना 

ठगों की दुनिया में, कागज़ कलम बिक जायेगी 

प्रकाशकों की चमकीली दुकानें 

सम्मान बेचने वालों की सज चुकी है सुनहरी दुकानें 

पुरस्कार के बदले लगती है नगदी

उतर जाती है अब सदरी 

रायल्टी के नाम पर मिलता है सुलगता धोखा ।

कौन सा सम्मान ईनाम चाहते हैं ?

बाज़ार सजी है, जाइए कामर्शियल टेबल पर 

खनकती रकम रखिए या आनलाइन पेमेंट करिये 

पुष्पाहार, श्रीफल नाश्ता -पानी की कीमत 

आयोजक के किस्से में धीरे से दीजिए ।

गोल्डन कलर का सम्मान पत्र,

दस-बीस छंटाक का काट का स्मृति चिन्ह लीजिए 

मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाईये

विहसते हुए श्रीमती जी की गोद में डालिए 

फिर क्या? 

बम्बईया कील बैठक की छाती पर,

खटाक से ठोंक दीजिए 

श्रीमतीजी के नाज़ुक हाथों से लोकार्पण करवाइये।

इतना ही और कुछ नहीं है 

आजकल सम्मान का अभिमान 

इतने के लिए लिखने के जोख़िम क्यों  ?

शुगर, बीपी,दिल और दिमाग को दुःख,

मत कीजिए इतने खटकरम

झोला उठाइए प्रकाशक की शरण में जाइये 

पाण्डुलिपि टेबल पर रखने से पहले 

नगदी का थैला खटाक से पटक दीजिए !

प्रकाशित किताब कोरियर से मिल जाएगी 

और भी हैं इन्तेज़ाम ईनाम पाने के श्रीमान,

अखबार/पत्रिका में लिखकर छपवा लीजिए 

लेखक महराज या समाज सेवक का दर्जा पा लीजिए 

हो गये सम्मान/ ईनाम के पात्र सच में श्रीमान ।

अब क्या सम्मान विक्रेता के पास जाना है 

झोला लेकर और खाली करना,

मिल जाएगा मन चाहा सम्मान,

बाज़ार तो सजे हैं श्रीमान ।

मत लिखिए ।कर लीजिए शार्टकट इंतजाम 

लिखना है तो नि: स्वार्थ लिखिए 

शोषितों -पीड़ितों की सेवा कीजिए 

देश-समाज की सेवा कलम से कीजिए 

लिखिए निडर भरपूर ।

वक्त के माथे सब छोड़िए 

व्यर्थ नहीं जायेगा  काम 

वक्त देगा एक दिन बड़ा से बड़ा ईनाम।

नन्दलाल भारती 

०६/१०/२०२४


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