खुद से मोहब्बत
मैं कितना कुछ जानता हूँ ?
मैं यह भी नहीं जानता हूँ
कैसे भूल गया?
मैं खुद अपने अनुभवों, उन्नति-अवन्नति तक का जिम्मेदार हूँ
मुझे यह क्यों नहीं याद रहा ?
मेरा विचार ही मेरा भविष्य है,
शक्ति की धुरी तो वर्तमान है
ना जाने लोग और मैं भी
आत्मद्वेष और अपराधबोध का शिकार क्यों हो जाते हैं?
हर कोई और मैं भी आदी हो गया हूँ
कहने का कि,
मैं उतना अच्छा नहीं हूँ,
सच तो ये है कि यह तो महज विचार है
लोग भी जानते समझते हैं
मैं भी l
विचार तो बदला जा सकता हैं
मैं क्यों नहीं बदल पाया खुद को
जानते हुए कि,
क्रोध, वैमनस्यता, आलोचना, अपराधबोध
ये सब तो हानिकारक विचार हैं
तन-मन-धन और सम्मान के लिए भी l
अब मैं समझ गया हूँ,
बीते को बिसार दो, भूला दो
माफ़ कर दो या माफ़ी मांग लो
खुद से बेइम्तिहा प्यार कर लो
मूलमंत्र है यही,
सुखी रहने के लिए
दुनिया बेहतरीन लगने लगेगी
मैं अब जान और समझ गया हूँ l
खुद से जब प्यार हो जाता है
जीवन सफल हो जाता है
जीवन में बसंत उतर जाता है
विश्वास मजबूत हो जाता है
उम्मीदें कुसुमित हो जाती हैं
मैं कितना कुछ जानता हूँ
खुद से मोहब्बत कर
खुद के अंदर उतर कर खुद के बारे में जान पाया हूँ l
नन्दलाल भारती
17/12/2024
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