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नाम बचा रह जाये

 

कविता: नाम बचा रह जाये

फ़िक्र नहीं जनाब,

कब विष का प्याला मिल जाये

या 

कब सलाखों की भेंट मिल जाए 

यह भी नहीं पता ।

कब कोई छाती पर खंजर फिरा जाये

ना अभिलाषा कोई ऐसी कोई 

माथे ताज चढ़ जाते

अभिलाषा इतनी सी अपनी 

जाति -धर्म का भेद मिट जाये

आदमी बस आदमी बचा रहे 

भेदभाव-नफरत बाढ़ के पानी की तरह बह जाते

ये बुध्द की धरती,भारत भूमि अपनी 

दया-शीलता-समानता के रंग में रंग जाये 

फिक्र यही  लूटा रुतबा देश का,

सोने की चिरैया लौट आए 

ना चाह मुझे देश-रतन,ना विश्व रत्न

विश्व गुरु का सपना सच करे अपना वतन 

फिक्र ना कोई जनाब

कर्तव्य पर भले ही शहीद हो जायें 

बुध्द की धरती जन्मभूमि, 

कर्मभूमि की पवित्र माटी के हो जाये

ना फिक्र कोई डराती अब,

अभिलाषा अपनी प्रबल, अपनी माटी के रह जाये

ना विष का प्याला, ना कोई कैद सताये

दुनिया के नक्शे पर अमिट रहे अपनी जहां 

कर्तव्य पथ पर नाम बचा रह जाये

अपनी चाह का ध्वजा फहराये

फ़िक्र नहीं जनाब,विष मिले हिस्से 

या सलाखों की भेंट मिल जाए।


नन्दलाल भारती 

०३/१०/२०२४




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