Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रतिबिम्ब

 

कविता: प्रतिबिम्ब सालों बाद देखा अपना प्रतिबिम्ब
जैसे सरसो का खेत और धान के खेत की मुस्कान
अपना प्रतिबिम्ब अपनी पहचान सालों बाद...............
जी भर निहारा मन को खुशी के जल में नहलाया
दर्द था विषैला दिल के एक कोने में
अपने के रुठने का सुलगता भान
मां के माथे की लाचारी कर रही थी
मौन खुशी के बयान बसंत और पतझड़
की एक संग तान सालों बाद...........
बहुत सालों बाद थमे थे आंसू
मन को ना था विराम ढूंढ रही थी आं�



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