साक्षात्कार
माता-पिता के साथ
आई थी जब
हुआ तब पहला साक्षात्कार
आस-पड़ोस की अनुभवी
महिलाओं ने
थपथपायी थी पीठ
सुलक्षणा को दी थी
बधाइयां भी
सलाह के साथ भरपूर
सुलक्षणा तुमने
गुणवन्ती और खूबसूरत
बहू ढूढ़ निकाली है
इंटरनेट के खजाने से
सजा देगी
सपनों की दुनिया रूपवन्ती
हामी भर ले
तुम्हारे बबुआ की खूबसूरत होगी जोड़ी
साक्षात्कार पहला और आखिरी
हो गए फेरे,बन गई जोड़ी पर
अमिट.........
फेरे क्या हुआ..... सपनों पर बमबारी
बिखर गई सपनों की दुनिया
सुलक्षणा के ख्वाब
भरभरा कर बिखर गए
रेत की दीवार की भांति
रूपवन्ती ने कैकेयी का
रूप धर लिया
खानदान की सुलक्षणा
हो गई साबित
कुलक्षणा की नजरों मे.........
रूपवन्ती के आरोप-प्रत्यारोप
छेदने लगा थे कलेजा
कलेजा सुलक्षणा के हाथ में
आ जाता बार बार
अश्रु के गंगा जल मे
डूबती उतिरियाती
बेचैन खटिया में धंसी कराहती
बस यही बचा था
सुलक्षणा के लिये
बेटा कैदी बन गया था
रूपवन्ती का
सास-ससुर खून के रिश्ते को कलंकित कर
परिवार के खिलाफ
नक्सली बना दिये
आंचल की छांव मे खेलने वाला
आंचल को तारतार करने लगा
ठगों के चंगुल में फंसकर......
रूपवन्ती की नजरें ठहरी थी तो
बस दौलत पर
मंदिर सा घर गमगीन हो गया था
सुलक्षणा मंदिर को संवारने मे लगी
हाफ हाफ कर
कैकेयी लूटने मे
अब वही आसपड़ोस वाली
महिलाएं कहती
साक्षात्कार के बाद
थोड़ा इंतजार कर लेती
जंग हारे सिपाही की तरह
कहती सुलक्षणा
कैकेयी लौट आयेगी
असली रूपवन्ती के रुप में
सुलक्षणा सपने बुनने में
मगन
कैकेयी बाप का खजाना भरने
और
अपने विकृत रूप को और विकृत करने में ।
डां नन्द लाल भारती
23/07/2021
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