Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शव यात्रा

 

जमींदार वही जो अंग्रेजो के दलाल, जो दबंगई के भरोसे अंग्रेजों का खजाना भरते थे l गरीबों को लूटने और जमीन हड़पने माहिर थे l तनिक में कहें तो ये जमींदार लोग  अंग्रेजों के सहयोगी थे l देश की आजादी के  बाद तो परजीवी कौम धीरे-धीरे मृत्यु शैय्या पर आ गयी थी l कुछ बड़े जमींदार पुराने रुतबे में डराने से बाज नहीं आ रहे थे l घोड़े खूंटे पर बंध चुके थे l कुछ उधमी जमींदारों की  हिनहिनाहट अभी मरी नहीं थी lशोषितों का खून पीने मेँ अभी दबंगो को  शरम नहीं आ रही  थी l ऊँची नाक की बात जो थी l  

बंधुआ  मज़दूरों की कराह का शोर था पर अंधे-गूंगे और बहरों के लिए मन बहलाने का शौक  जैसा था l बंधुआ मजदूरी की जंजीर में पूरी हाशिये के लोगों, शोषितों  की बस्ती जकड़ी थी l सांस लेने तक की फुर्सत नहीं थी l जमींदारी की सड़ी लाश को कंधे पर ढो रहे जमींदारों के वंशज जो  गॉव के लोग जो खुद को ठाकुर क्या होता है जानते भी न थे l ठाकुर तो भगवान जैसे होता है l इन अत्याचारियों के जुर्म  का अंत नहीं हो रहा था l
गाँव की सम्पदा पर दबंग जमींदारों का कब्जा था l  बस्ती के लोग जमींदारों के बंधुआ मजदूर थे l मजदूरी में मुट्ठी भर भूजैना एक लोटा रस मिलता था और सेर भर सड़े गले अनाज की मजदूरी बस इतना ही l काम तो जानवरों जैसा लिया जाता था l
ऐसी ही एक बंधुआ मजदूर था भूतिया l नाम तो माता-पिता ने विभूति रखा था पर बड़े  जमींदार दामराज बाबू ने भूतिया बना दिया l आँखे खुली ही नहीं थी कि विभूति जमींदार के चंगुल में फंसकर गुलाम बन गया l
भूतिया भी ऊँचे कुल का था l इस्लाम आक्रमणकारियों के दबाव में  वीर योद्धा इक्षाकु और सूर्यवंशी क्षत्रियों ने इस्लाम नहीं स्वीकारा तो इस्लाम आक्रमणकारियों ने  इन  क्षत्रिय समुदायों  को जबरिया गंदे कामों-सफाई, गुलामगिरी, चमड़े के काम आदि गंदे कामों में इस समुदाय  को झोंक दिया l पहली बार इस्लाम राजा सिकंदर लोदी ने इस इक्षाकु और सूर्यवंशी को चमार कहा था l
आज चमार समुदाय के लोग डेढ़ सौ से अधिक जातियों-उपजातियों में बंटे हुए देश- विदेश में पाये जाते हैं l इस अन्याय मे यूरेशियन विदेशियों ने विदेशी आक्रमणकारियों का  भरपूर साथ  दिया l इस्लाम राजाओं को खुश करने के लिए हिन्दू धर्म मे चौथा वर्ण शूद्र तक  बना दिया  l शूद्र वर्ण में वीर स्वाभिमानी योद्धा इक्षाकु और सूर्यवंशी समुदाय को पटक दिया l
भूतिया इन्हीं में से एक था जमींदार दामराज की चौखट बंधा बंधुआ मजदूर था l जमींदार अत्याचारी और शोषक समाज बन चुका था l कई बार तो अत्याचार से धोती गीली हो जाती थी परन्तु समय की आंधी  अब अकड़न ढीली कर रही थी l
गाँव के बूढ़े जमींदार अपनी जमींदारी के अपने परिवार की पीढ़ी के आखिरी सबूत थे l नई पीढ़ी तो जमींदारी में लूटी जमीन- जायदाद  बेंचकर शौक पूरा करने में मशगुल थे l आज बूढ़े जमींदार का  शरीर निर्जीव हो चुका था l शरीर बर्फ जैसा ठंडा पड़ गया था l जमींदार की महल से रोने की आवाज़ भोर से उठने लगी थी l आसपास के बड़े-बूढ़े इकट्ठा हो गए थे l धानुआ कहार नीम की छाँव मे पुआल बिछा दिया था l
जमींदार परिवार के नजदीकी चार लोग दामराज के मृत शरीर को टांग कर लाये और पुआल पर उत्तर दिशा में सिर करके करीने से रख दिए l धनुआ चार छः उपले सुलगा दिया था l उपले  हवा से भभक कर जल उठे थे  l धनुआ जलते उपले पर एक ओर गीला कंडा रख दिया l भभकती आग से धुंआ उठने लगा l
जमींदार दामराज के मौत की खबर जमींदारों के दोनों टोलों- छोटे -बड़े टोले में घर-घर पहुँच गयी थी पर हलचल मज़दूरों की बस्ती से शुरू हुई l बस्ती की औरतें झुण्ड में  बस्ती से हवेली चल पड़ी थी  l बस्ती की महिलाएं हवेली की बाउंड्री के अंदर एक कोने में बैठी जमींदार की बुराइयों में अच्छाई ढूंढ कर निकाल कर  बिलख रही थी l हवेली से रोने की आवाज़ तो उठ रही थी बाहर तक नहीं पहुँच रही थी l
कामराज बाबू के मरने की खबर पड़ोस के गाँव के लोहार बकवाली को लग  गई l बकवाली बंसुला लेकर हवेली की तरफ भागा  l  लोहार जमींदार का  बंधुआ लोहार था  l  बांस की खूंटी से दो बांस काटकर टिकट्ठी बनाने में जुट गया l कुछ देर में नाई घूरहुआ भी भागा-भागा आ पहुंचा l भूतिया बाभन बुलाने के दौड़ लगा दिया,कर्मकांडी बभना  का  घर हवेली से दूर थाl 
भूतिया की घरवाली रुपवती तो भोर से हवेली के बाहर विलख विलख कर जमींदार की मौत का  मातम मना रही थी l पूरी मजदूर बस्ती की महिलाएं रुपवती के सूर में सूर मिला कर आंसू गार रही थी l
जमींदारों की बस्ती का दुख तो मज़दूरों की बस्ती का दुख होता था परन्तु अछूत मजदूरों की बस्ती में चाहे जवान मरे या बूढ़ा जमींदारों का कुत्ता भी खबर नहीं लेता था l आदमियत पसंद मजदूर  बस्ती के बड़े- बूढ़े, महिलाएं फूटफूट कर रोती थी जैसे उनका कोई सगा मर गया हो  l सच भी तो यही था परन्तु इस्लाम राजाओं और धर्म के ठेकेदारों के डर से इन इक्षाकु और सूर्यवंशी समुदाय के चमार बनाये गये लोगों को उनके ही कुल के  क्षत्रियों ने भी त्याग दिया l क्षत्रियों को तो लगाव नहीं था पर लाख शोषण और उत्पीड़न के बाद भी अछूत क्षत्रिय अपने नजदीकी बंधु -बांधवो को युगों बाद भी नहीं भूले थे l
हवेली अन्दर बाहर खचाखच भरी हुई थी l सबसे के बूढ़े नौकर रामू भैंस के पीछे गोबर के टोकरी पर जमींदार की लाश को टकटकी लगाए देख रहा था l आज वह भी अनमना था डांटा-फटकार लगाने वाला बूढ़ा जमींदार चिर निद्रा में सो गया था l
रामू के पास भूतिया भी आ पसरा ओर बोला अच्छा नहीं लग रहा काका  l सुबह हो या शाम दिन हो या रात दहाड़ लगाने वाला बूढ़ा शेर बेखबर सदा के लिए सो ग़या l
भूतिया का बेटा कपिल को सोकर उठते ही उसे भी पता लाग की बुढ़े ठाकुर मर गए l उसकी सोई स्मृतियाँ जाग गया l
वह चिल्लाया माई ठाकुर बाबा मर गये?
बड़ी बहन सुधा बोली माई और बाबू  रात में हवेली चले गये थे l
मैं भी जाऊं दीदी कपिल बोला?
तू क्या करेगा कन्धा देगा सुधा तनिक गुस्से में बोली l
हां दीदी l आजी मरी थी l गांव के लंमरदार बाबा मरे थे  तब तो कन्धा दिया था l
पागल तू कन्धा नहीं दे सकता l
क्यूँ दीदी कपिल पूछा?
हम अछूत हैं l तू कन्धा देने की बात कर रहा है l तूने बुढ़े ठाकुर की लाश छू भी दिया तो मार डालेंगे l
कोई गुनाह है दीदी?
हाँ गुनाह हैl अछूत हैं हम लोग l
दीदी हम लोग भी तो सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं कपिल l
क्या बक रहा है? स्कूल जा सुधा तमतमाते हुए बोली l
हां दीदी हमारे लोग  सूर्यवंशी और इक्षाकु वंश के क्षत्रिय है l
कौन मानता है? तुमको याद है l यही बूढ़े ठाकुर अपने भतीजे के साथ तुम्हें मारने के लिए दौड़ाए थे lसुकर कर  तू पड़ोस वाले गांव में छिप गया था सुधा बोली l
हाँ दीदी याद है लू में गिरे टीकोरा उठाने के लिए l दीदी मुझे तो गन्ने के खेत से बाढ़ के पानी में घास काटने के जुर्म में बूढ़े ठाकुर का बेटा रविंदर   बहुत मारा था, आज भी पीठ में जान लेवा दर्द उठता है l  दीदी बूढ़े ठाकुर तो मर गये अब मलाल कैसा कपिल बोला l
तुम्हारे लिए नहीं है l उनके दिल में जली रस्सी की तरह गांठे कभी नहीं मिटती बाबू  l तुम स्कूल जाओ पढ़ लिख सदियों से हैवानों के दिलों दिमाग़ पर जमीं नफरत की मैल कलम से काटना l
दीदी यह मैल इस्लाम और यूरेशियन बाभनों की मिली-जुली साजिश है कपिल बोला l
जाओ स्कूल पढ़लिख कर कामयाब होना तब साजिश  से पर्दा हटाना l चुपचाप स्कूल जा l मुझे और कुछ नहीं सुनना है l
तू बड़ी बुद्धू है दीदी l
हाँ इसलिए तो कह रही हूँ स्कूल जाओ और बुद्धिमान बनो l बड़ा आदमी बनोl
बनूँगा दीदी पर अभी देर है l अभी तो हवेली जाना है कपिल बोला l
स्कूल नहीं जायेगा सुधा पूछी l
आज इतवार है l
इसलिए मेरे दिमाग़ की दही कर रहा था बदमाश?
दीदी एक बात पूछूं?
पूछ बदमाश l
ठाकुर बाबा के लिए कफन खरीद लाऊं?
इतना प्यार क्यों आ रहा है?
ठाकुर ने मुझे चिड़िया हाँकने की नौकरी देने का न्योता दिया था l
अच्छा ये नौकरी, नही पगले ये तो गुलामगिरी है l
हाँ  दीदी जानता हूँ l तभी तो पढ़ रहा हूँ l
तू पढ़ अपने दिमागी घोड़े को इधर-उधर मत दौड़ाओ l पढाई में लगाओ l बाबू के पांव का खलरा देखा है l ठाकुर का हल जोतने में  हर साल चप्पल जितना मोटा निकल जाता है l बाबू से चला नहीं जाता फिर भी बाबू ठाकुर के इशारे पर नाचते रहते हैं सुबह भोर से रात में कुकुर भूंकने तक l
हाँ दीदी जानता हूँ l मैं बाबू को  गुलामी से निजात तो दिलाऊंगा l जानती हो दीदी ठाकुर ने मुझे गुलाम बनाने का पाशा कब फेंका था l
नहीं l तुमने कभी बताया था क्या?
नहीं l दामराज बाबा कभी मरे ही नहीं आज मरे हैं l
बुद्धू एक बार जन्म और एक ही बार मौत होती है l 
अरे वाह दीदी तुम तो यह भी जानती हो?
नहीं भाई तू सब जानता है l मुद्दे से भटका मत ये बता ठाकुर ने तुम्हें कब भरमानें की कोशिश किया था l
जिस पहले दिन स्कूल  के अत्याचार से घबरा कर भाग कर बाबू को बताने गया था l बूढ़े जमींदार बोले थे कपिलवा पढ़कर क्या करेगाl तेरा बाप कौन सा बीए पास है उसका जीवन तो बीत रहा है l तू भी हवेली की छाव में पल जायेगा l चल आज से चिरई उड़ाने में लग जा l अपने बाप के साथ आना जानाl मैं हवेली से भाग आया था
मालूम है माई रो-रो कर बताई थी  l इतवार है तो जाओ भैंस और बकरी चराओ l वही पेड़ की छाँव में  पढते रहना  l
दीदी आइडिया बुरा तो नहीं है l लेकिन पहले हवेली जाना चाहूंगा आज्ञा दे तो  l
ये तो बताया नहीं कि दामराज बाबा तुम्हें भरमाने के लिए स्कूल पहुंच गए थे क्या?
नहीं बताया तो मै हवेली पहुंच गया था l
स्कूल से हवेली क्यों गया था?
सब कुछ तो बता दिया बार-बार एक ही बात?अरे दीदी पहले दिन ही नरसिंहपोर प्राइमरी स्कूल से भगा दिया था यह तो पता है l बाबू से बताने गया था l बाबू तो दूर जमींदार खेत में काम कर रहे  थे l हवेली में ठाकुर बाबा मिले थे l उसी दिन मैंने जिद कर लिया स्कूल जाऊँगा l हवेली नहीं l बाबू को अपने चंगुल में फंसाकर मेरे बाप का बचपन छिन लिया, बेचारे बाप का जीवन मुर्दाखोरों ने नरक बना दिया l मेरे बाप ने मेरा जीवन नरक बनने से बचा लिया l दीदी मेरे  माता-पिता ठाकुर  की बात मान लिये  होते  तो रामू बाबा  की तरह हवेली में मैं भी गोबर उठाता जीवन भर  l
तुम अपनी हवेली बनाना सुधा,तू बीए पास करके कलेक्टर बन जा भाई ले सुधा कपिल के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली l
बीए पास करने में देरी है ले मईया दसवीं पास का आशीर्वाद दें,जरूर बनेगी हवेली l अभी ठाकुर की  हवेली जाऊँ?
क्यों तुम्हें हवेली जाना है?
कफ़न देना है l
ठाकुर के कफ़न के लिए तुम्हारे पास पैसा है?
माई के पास तो होगा?
माई के पास होता तो पंद्रह दिन से चटनी भात, चटनी रोटी खाता?
दीदी दाल भले ही नहीं खा रही हो दूध, दही और मंठा में नाक डुबो-डुबो कर तो खा रही हो?
तू  जा हवेली दिमाग़ मत खा सुधा रिसियाते हुए बोली l
इतनी बतकही क्यों कर रही थी हेडमास्टर की तरह पहले ही जाने दे देती l
तू जा l अब गुस्सा मत दिला l
दीदी सौ साल के  ठाकुर मरे हैं, कितने  लोगों  के सपने लूट लिए होंगे l  तू मेरे ऊपर गुस्सा हो रही है?
मैं गुस्सा क्यों करुं l
सुधा झुझला कर बोली l जा चंवर बाबा तुम्हारी रक्षा करें l बुद्धि दें, बीए पास कर माई-बाबू   की तपस्या सफल कर देना  मेरे भैया l
सब होगा l विश्वास रखो दीदी l हवेली जा रहा हूँ l बाबू से कह दूंगा दीदी ने भेजा है l ठाकुर को कफ़न लाना है तो पैसा दो l
बाप रे इतना झूठ तू कैसे बोल सकता है कपिल?
नहीं दीदी कहते हुए वह हवेली की ओर दौड़ लगा दिया l
हवेली पहुंचते ही वह अपने बाप से पूछा बाबू ठाकुरबाबा को कफ़न लाना है तो पैसा दे दो मैं ले आता हूँ l
नहीं l ये ठाकुर हमारा छुआ पानी नहीं पी सकते तो मेरा दिया कफ़न कैसे ओढ़ाएंगे?
क्यों बाबू?
ठाकुर जीते जी तो परछाई से परहेज करते रहे l अपना  खून पसीना पीकर उधम मचाते रहे  l मरने पर एक चमार की मेहनत की कमाई का  दिया कफ़न ओढ़ाकर  श्मशान लेकर जाएंगे क्या? स्वर्ग नहीं मिलेगा ठाकुर को तू घर जा l इन सब बीमारियों से दूर पढ़ाई बस पढ़ाई पर ध्यान दे l शिक्षा से शेर बनेगा l जातिवादी समाज तो गुलाम बनाने की जुआड़ ढूंढता रहेगा l जातिवाद जैसी महामारी शिक्षा के हथियार से कटेगी l
कफ़न के जगह रूपये दे दोl ठाकुर ने तुम्हें गुलाम बनाया तुम एहसान कर दो कपिल बोलाl 
यह भी ठीक रहेगा भूतिया बोला l 
बाबू कफ़न की जगह बड़े ठाकुर  धैर्यनाथ को रुपया दे दो l हमारे पैसे का कफ़न खरीदवाकर ठाकुर  की लाश पर खुद बड़े ठाकुर धैर्यनाथ डाल दे, तुम्हारे नाम से तो कैसा रहेगा  l बाबू  बचपन से ठाकुर को देख रहे थे l अब बूढ़े जमींदार की दहाड़ हमेशा के लिए थम गयी  l कफ़न के रुप में ठाकुर की लाश पर फूल चढ़ जायेगा l भले ही ठाकुर ने अपने जीवन मे काँटा बोया कपिल समझाया l
कपिल की बात उसके बाप भूतिया को जंच गयी l वह बोला जा अपनी से मांगकर लाओ l मुर्गा की बेंच रखी होगी l कपिल माँ रुपवती के कान में कफ़न की बात कह दिया l उसको तो मालूम था कि ठाकुर कफ़न नहीं लेंगे l वह बोली दाल लाने के लिए पैसा रखी थी,जा  दे आ बेटवा  l दाल कुछ दिन और नहीं खायेंगे l
कपिल माँ से पैसा लेकर अपने बाप के हाथ पर रख दिया l भूतिया बोला बेटा तू घर जा मैं कफ़न मंगाने के लिए ठाकुर धैर्यनाथ को दे दूंगा l
कपिल भागा- भागा घर पहुंचा l उसको देखते ही सुधा बोली ठाकुर कोई कफ़न ओढ़ाकर स्वर्ग भेज दिया l
हाँ दीदी ठाकुर की लाश पर बाबू का दिया  कफ़न चढ़ जायेगा l
शाम होते-होते ठाकुर की शव यात्रा मरणीकरणीका के निकली पूरी बस्ती के लोग चंवर बाबा यानि दिहबाबा  के चबूतरे के पास खड़े होकर देख रहे थे l कपिल बोला ठाकुर की लाश पर मेरे  बाबू ने भी कफ़न चढ़ाया है l
कपिल की बात सुनकर बनवारी मामा बोले बऊरहा चमार का दिया कफ़न ठाकुर नहीं लेंगे l
बनवारी की बात को काटते हुए सोनरी दादी बोली बेटा कहते हाँ बाभन बारह बरन चमार तरह बरन l
हाँ अम्माजी यह तो सही है l बाभन चमारों को बड़ा भाई मानते हैं बलिहारी खुश में पागल होते बोला l
ठाकुर की  शव यात्रा गांव के सरहद पर रुक गयी l ठाकुर की लाश जीप के ऊपर कसकर बाँध दी गयीl लाश वाली जीप आगे- आगे और पीछे चार छः गाड़िया दौड़ पड़ी l ठाकुरान से  मजदूरों की बस्ती तक सन्नाटा पसरा हुआ था l बस्ती के  घरों से धुंआ उठना शुरू हो गया  था l मजदूर अपने-अपने घर की ओर लौटने लगे थे l मवेशियाँ भी गले में टांगी घंटी बजाते वापस आने लगी थी  l सूरज पूरी तरह डूब चुका था l अँधेरी रात थी कुत्तो की आँखे अंधरे में चमक रही थी l रुपवती भी घर वापस आई, आते ही घर के बाहर से ही वह सुधा को आवाज़ दीl
सुधा बोली हाँ माई l
बिटिया एक बाल्टी पानी ला दे, नहा लूँ l
वह दरवाजे के बाहर ही खड़ी थी l सुधा हैंडपाईप से पानी भर कर माँ को नहाने के लिए पिछवाड़े रख दी l वह नहाकर चूल्ह-चौका में लग गयी l रात आधी बीत चुकी थी वह भूतिया भी  घर लौट आयाl उसे देखते ही कलुआ जोर-जोर से भूंकने लगाl
अरे  चुप रह कलुआ भूख से जान निकल रही है l दो दिन से रोटी नसीब नहीं हुई तू है की गुसियाये जा रहा है भूतिया कलुवा को सहलाते हुए बोला l
कलुआ को चुप कराते हुए रुपवती बोली बाल्टी में पानी भरकर रखी हूँ नहाकर,कौड़ा के पास बैठ जाओ l गर्म-गर्म दो  रोटी पेट में डालो और सो जाओ l सबेरे जल्दी हवेली तो   पहुंचना है  l
हाँ भाग्यवान ये बड़ी कौम जीते भी सताती हैं, मरने के बाद भी l तेरह दिन रात-दिन एक करना होगा l ये लो रुपया जो तुमने दिया था कफ़न के लिए l
जमीन पर रख दो रुपवती बोली l
इतने में कपिल चिल्लाया बाबू ठन्डे पानी से मत नहाना,गर्म पानी ला रहा हूँ l
ला बेटा l आज हाड़ कंप- कंपाने वाली जाड़ा पड़ रही है भूतिया बोला l
बेटा बाल्टी में पानी डालकर, तुम्हारे बाबू ने जो पच्चास रूपये नीचे  रखे हैं, पानी का छिंटा मारकर उठा लो l
कपिल माँ के कहे अनुसार किया और रूपए उठाकर माँ को थमाने लगा l
रख ले बेटवा अपने पास l ठाकुर ने न कफ़न लेना स्वीकार किया ना पैसा l
पैसा भी अछूत होता है क्या? कपिल बोला l
सौ नहीं हजार चूहें खाकर बिल्ली चली हज पर l रख ले बेटा अभी रुपवती बोली l
मैं क्या करूंगा पच्चास रूपये का माँ  कपिल पूछा?
सुधा बोली मेरी तू कहाँ सुनता हैंl जिद करके ठाकुर को तूने कफ़न के लिए दिलवाया, आखिरकार नहीं लिए ठाकुर नरक जाने के डर से l सबसे कहता फिरता है हम सूर्यवंशी क्षत्रिय हैंl देख ले क्या हुआ l
अरे तू दीदी बीच में क्यों कूद रही है? माई बता क्या करुंगा इस रूपये का कपिल पूछाl
करेगा क्या? है ना तुम्हारी  दोस्त  ठाकुर  की लड़की, उसी  को चूड़ी खरीदकर पहना देना l दीदी अब और नहीं l हाँ माई कुछ बोलेगी?
रख जब स्कूल की छुट्टी होगी तो लालगंज बाजार से दाल ले आना रुपवती बोली l
इतने भूतिया बोला कफन के बदले दाल? 
क्या करुं परिश्रम की कमाई किसी परजीवी को दान कर दूँ रुपवती खिझकर बोली l
नहीं भाग्यवान परजीवियों को दान देने का पाप नहीं लेना  है l ठीक है दाल मंगा लो l
यह भी अच्छा रहा, अब  दाल आ जाएगी l दीदी को दाल भात बहुत पसंद है ना क्यों दीदी कहते हुए कपिल नाच उठा l

नन्दलाल भारती
28/10/2024










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