आदमियत का विकास
अपनी जहां वालों जाग जाओ अब
देखो तुम कहां पर ठहर गये हो अब ?
विकास के पथ पर पिछड़ गए हो
खोखले दावे,झूठी गारण्टी विकास नहीं
ना अंधभक्ति ना धर्म की अफीम स्वाद
उठो अपने चारों तरफ देख तो लो
तरक्की की तुला पर चढ़कर नाप लो
सोचो जब तुम्हारे पास धर्म का कटोरा नहीं था
सोचो क्या तब तुम्हारे पास धर्म नहीं था ?
था तुम खुश थे आदमियत के धर्म के चोले में
तुम जब से धर्म की चहारदीवार में कैद हुए हो
सोचो तुमने क्या-क्या खो दिया ?
और बदले में मिला क्या ?
धर्म की मोटी -मोटी किताबें ,अंधभक्ति
धर्म की ढोल पीट पीटकर महलों में बैठे
बन गये हैं धर्माधीश वे लोग
क्या से क्या हो गये तुम सोचो तुम
ज़मीं छिन गई छिन गया आसमां
समझो धर्म के व्यापार की असली मंशा,
धर्म के धंधे में बहुखण्डित हो गये तुम
इंसान होकर जला रहे इंसान का मकां
बहुत हुआ धर्म के नाम पर विनाश,
आदमियत और देश के विकास की ओर चल पड़ो।
नन्दलाल भारती
०१/१०/२०२४
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