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बसंत ऋतु एवं पर्यावरण को समर्पित सरस साहित्य गोष्टी

 

Nandlal Bharati 


AttachmentsMon, Feb 17, 12:26 PM (19 hours ago)




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बसंत ऋतु एवं पर्यावरण को समर्पित सरस साहित्य गोष्टी
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" मदनोत्सव की रीत जगत ने  मुक हो कर ही जानी "
       ____  ‌‌स  ना  मंगल 
 पर्यावरण चेतना की प्रतीक पर्यावरण विकास संस्था (सी ई पी आर डी  ) की मासिक साहित्य गोष्टी ने बसंत ऋतु पर भारतीय संस्कृति की मर्यादाओं में श्रंगार रस रसास्वादन करवाते हुए पर्यावरण चिंता पर भी पैनी नजर  रखी । 
            कार्यक्रम संयोजक श्री सत्यनारायण मंगल ने गोष्ठी का संचालन किया । अध्यक्षता संस्था उपाध्यक्ष डॉ अनिल भंडारी ने की ।
     श्री अशोक गर्ग ने सरस्वती वंदना पश्चात महाकुंभ पर दोहों से शुरुआत की ___" छलका कुंभ प्रयाग में जहां त्रिवेणी धाम, पाने को आतुर देव संत या आम।"  ‌            
      ‌  श्री ओम उपाध्याय ने पढ़ा__ "बसंत के स्वागत में जुटा संसार, कवियों की कविता में आने लगा श्रृंगार ।"

   श्री अनिल ओझा ने मधुर स्वर में गाया _ " मौसम ने करवट बदली ,खुशियां अनंत छाई, नव उमंग ले वसंत ऋतु आई "
      इसी बीच श्री महेंद्र सांघी ने कटाक्ष किया __" सरकार को चाहिए ,शीश महल को मुंह छुपाने का आधिकारिक अड्डा बनाएं।"
  ‌  श्री नंदलाल भारती ने इशारा किया _" देखो प्रकृति तुम्हारी सुन रही ,अपनी सुना रही ,बतिया रही।"
     श्री राज सांधेलिया ने वर्णन किया " गरबीली कली का गाल चूम, मस्ताना भौरा  मुस्काता है।"       श्री सुब्रतो बोस का दर्द छलका__ "इतना रंगीन समा यह सफर, में तन्हा। "
    सुधीर अपेक्षित ने अलंकारों का प्रयोग किया _" मन महक महक जाए ,चित् चटक चटक जाए वसंती शाम में। "
    ‌सुनील मुसाफिर ने पर्यावरण पर चिंता की___" ना उलिचो सागर को ,ना जख्मी करो धरा को ,प्यार दो अब जंगल को । "
        डॉ इसरार खान ने यूं पढा __ "कांच का टुकड़ा पत्थर फेंकने वालों को उनकी वास्तविकता दिखा रहा है ।"
   ‌‌। ‌‌  श्री ओ पी जोशी बब्बू ने कामना की  __"हो स्वस्थ पर्यावरण निगह में सबके। "
      श्री बालक राम साध की गजल  थी__" बेवफा के प्यार में आ गया कैसा मका ,काश थोड़ी पूंजी साथ ले जा सकूं।" 
      ‌सुभाष गौरव ने आस्था की पुष्टि की ___"तुम हो निश्चित, वरना यह दुनिया चलाता कौन है।"     
   श्री अरविंद जोशी ,कमल कासलीवाल ने भी रचनाएं प्रस्तुत की।
         अंत में संचालक श्री सत्यनारायण मंगल ने मर्यादित होकर श्रृंगार की मादक रचना प्रस्तुत की ___"अधरो ने अधरो की भाषा अधरों से ही पहचानी।"       
            वरिष्ठ संस्था उपाध्यक्ष डॉ अनिल भंडारी ने मासिक साहित्य गोष्ठी की समृद्धि और निरंतर सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सभी साहित्यकारों को शुभकामनाएं और धन्यवाद दिया। श्री दिनेश जिंदल ने अंत में आभार प्रदर्शन किया ।

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