कविता :कर गुजरने की चाह
मैं मानता हूँ, मैं अपने बोये सपने
शामिल हैं,जिसमे धरती के भगवान की ख्वाहिशे
मैं इसी ख्वाहिश में जी रहा हूँ
उम्मीद की मोटरी दिल की धड़कन से लगाए
कर्नल सेंडर तो नहीं
मेरे सपने तो हैं
बढ़ती उम्र में,जवाँ सपने
चमकती आँखों से जी रहा हूँ
बढ़ती उम्र में शरीर जरूर बूढ़ा हो रहा है
विश्वास तो नहीं
कर्नल सेंडर नें पछत्तर पार कर लिया
ना हार माना
मैं तो अभी पीछे हूँ
कैसे सपने देखना बंद कर दूँ
विश्वास की दौलत तो है पास
जीवन की रेसिपी कमा लिया है
मैंने भी एक तो
लगा दिया है जीवन सपने के पीछे
देखता हूँ कितनी बाऱ असफल होता हूँ
मानता हूँ उम्र बाढ़ रही है
सांसे भी घट रही हैं
सपनों में जी तो सकता हो
ख़्वाहिशों के लिये खुद की
बढ़ती उम्र में कर्नल सेंडर ने तो यही जीया
हम और आप क्यों नहीं
बढ़ती उम्र अभिशाप नहीं
सपनों में जीना सीख लीजिए
बढ़ती उम्र को व्यवधान नहीं
कर गुजरने की चाह शेष है तो अपने
बोये सपनों के पीछे चल पड़िये
केएफसी वाले कर्नल सेंडर की तरह l
नन्दलाल भारती
11/22/2024
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