कविता :कैसा विधान है?
गाँव के कई बूढ़े बरगद नेस्तनाबूत हो गए हैं
रहट -कुएं गाँव के नक्शे से खो गये हैं
पोखर-तलाव अध-पटे सिसकते
ये कभी गाँव के स्वर्ग थे
आज नसीब पर रो रहें हैं
गांव वो नहीं रहा
ना चरनी पर बंधे बैल की घंटी बजती हैं
ना भैंस पगुराती है
ना चरनी रही अब
ना गईया रम्भती है
ना माटी के घर रहे ना वो किंवाड़
ईंट पत्थरों के बड़े मकां अब
ना वे लोग रहे ना वो गांव का सोंधापन
याद है गांव के खेत खलिहान
लल्लू की दुकान
यादों में सब कुछ है अभी जिन्दा
बदल गया है सब कुछ अब
लोग बदले-बदले लगते हैं
जो बदलना था वो नहीं बदला
पोथी का विधान
लागू है आजाद देश में संविधान
आज भी आदमी अछूत है
आदमी के हाथ का पानी अपवित्र
ये कैसा विधान है?
सब कुछ बदल रहा
नहीं बदल रहा अमानुषता का विधान
ये कैसी पोथी? कैसा विधान है?
नन्दलाल भारती
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