मैं नदी बोल रही हूँ l
मैं नदी बोल रही हूँ
हे मानव तू नहीं सुन रहा है मेरा विलाप
अब नहीं तो कब सुनेगा
क्या तुझे तीसरे विश्व युद्ध का इंतजार है?
मेरे प्रवाह का नहीं ?
जीवनदायिनी भूल गया, मैं नदी हूँ
मानव सुन, मैं नदी बोल रही हूँ ll
नहीं ढो पाउंगी तुम्हारे पाप का बोझ अब
विकास की दौड़ में भूल गया है
माँ के प्रति कर्तव्य
कब तक तुम्हारा मल-मूत्र,
तुम्हारे विकास के जहर ढो सकूंगी
मेरा प्रवाह खतरे में है
किनारे मिलने को हैं
मैं थक चुकी हूँ,तुम्हारी गंदगी से थम रही हूँ
मैं नदी बोल रही हूँ ll
तू भूल गया है माँ की औकात
माँ का अर्थ भी
तूने मुझे अपने पाप का
वाहन बना लिया है
माँ को घूर का कुआँ बना दिया है
मेरी औकात और तादात मत भूल
चार सौ छोटी -बड़ी नदियों का समूह हूँ
मैं नदी.....हाँ मैं नदी
मैं नदी बोल रही हूँ ll
मानव नहीं जानता है तो जान ले
हम दो सौ मुख्य नदियाँ
छोटी -बड़ी चार सौ
तुम्हारे देश भारत में बहती है
तुम्हारे विकास की गाथा गढ़ती है
गंगा, सिंधु,गोदावरी, नर्मदा,ब्रह्मपुत्र, कृष्णा,यमुना ताप्ती में
ये चार सौ नदिया मिल जाती हैं
लेकर हैं जलोढ उपजाऊं माटी
प्यास बुझाती, उपज बढ़ाती, भूख मिटाती हैं
बढ़ती थाती, चौड़ी होती तुम्हारी छाती
तू दे रहा माँ को ढाठी
तुम्हारे जीवन का सोता मैं नदी हूँ
मैं नदी बोल रही हूँ ll
बहना मेरा स्वाभाव है क्योंकि मैं नदी हूँ
थमना तो मेरा स्वाभाव नहीं
मानव तू है कि बहने नहीं दे रहा
तू ने क्या बना दिया है ?
कान्ह-सरस्वती जैसी नदियों की दुर्दशा
ढो रहीं हैं बोझ,तोड़ पर रही दम
थम गया प्रवाह नदियों का जिस दिन
थम जायेगा जीवन-विकास उस दिन
मैं दर्दभरी दास्तान सुना रही हूँ
मैं नदी बोल रही हूँ ll
मत छिन मेरा कल-कल शैशव
थम गया मेरा कल-कल शैशव
मानव नहीं बचेगा तेरा वैभव
मेरे छाती पर मत लाद पाप का बोझ
बदल अपनी सोच
कल-कारखानों, चैम्बर-नालों की,
गंदगी के निकास का करो उचित इंतजाम
नदी की पवित्रता मत कर कलंकित अब
नदी के प्रवाह को मत थमने दो
बहने दो निर्मल कल-कल
आनंदित रहेगा तुम्हारा कल
मैं मेरी ही नहीं...... तेरी भी जीवनकथा सुना रही
मैं नदी बोल रही हूँ ll
नन्दलाल भारती
13/01/2025
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