सुनो..... सुनते हो।
सुनो,
तुम कहां सुनते हो जी ?
अपने मन के आगे किसी की,
अपने लिए भी अब जीया करो
खुल कर हस लिया करो
मौन को तुम अब अपने तोड़ा करो
सुन रहे हो जी,
तुमसे कह रहीं हूं ।
सुनो,
क्यों चिंता की गठरी छाती पर टांगे
ढो रहे हो जी, उठाकर दूर कहीं फेंक दो
बहुत हुईं चिंता -फिक्र
अब नहीं करो जी
सुनो..... सुन रहे हो ।
तुम से कह रही हूं
क्यों परिवार की चिंता अब
अपने पांव पर खड़े हैं
बेटी -बेटा,भाई-भतीजा सब
कर दिए बड़ा त्याग
क्या मिला ?
तुम्हें रिश्ते की डोर थामें रहने से
मतलबी छोड़ दिए
वक्त बदलते ही,यह तो होना ही था
तुम भी जानते थे,हम भी और दुनिया भी
सुन रहे हो ना तुमसे कह रही हूं
कर लिए अपनी कमाई से बहुत उपकार
नहीं सुनने वाले स्वार्थी गुहार ।
अपनी खुशी अपने स्वास्थ्य के लिए
कसरत,योग कभी-कभी,
आयुर्वेदिक मसाज भी लिया करो
पहले जो शौक नहीं पूरा कर पायें
अब किया करो।
अपनी खुशी के लिए दिल की सुना करो
लिखा करो,पढ़ा करो,
पढ़ाया-लिखाया भी करो ।
वक्त निकाल कर कभी कभार
अपनी बाल-विवाहिता प्रेमिका के साथ
यात्रा पर निकल जाया करो
ड्राइवर नहीं यात्री बनो अब
प्रेमिका के हाथ के बने,
बिना नून -तेल वाले व्यंजनों का लुत्फ लिया करो
हां मन करे तो बिना चीनी वाली
चाय काफी कभी-कभी, मौके बेमौके पीया करो
प्यारे मोहन हंस कर जीया करो।
समझ गये!
कुछ इशारे भी समझा करो
कविता, कहानी, उपन्यास के कथानकों के अपने
बूढ़ी हो रही बाल प्रेमिका पर मत अजमाया करो।
सुनो तुमसे कह रही हूं
प्रेमिका की अपनी अब तो सुनो ।
उपन्यास, कविता, कहानी नहीं
कुछ बातें बस इशारे में होती है
प्रेमिका के आत्मा की लघुकथा को समझा करो
चलो बांधो बोरिया बिस्तर
तैयार हो जाओ,
हो गई केरल बंगलौर की यात्रा पूरी
वक्त है नापने की दूरी।
सुनो,
आओ लौट चलें, अपने घोंसले
इंदौर की ओर
फिर सोचेंगे कहीं दूर की,
नई यात्रा पर चलने के लिए
जानने समझने के लिए
फिर से एक बार... बार
नई उड़ान के लिए, नई यात्रा के लिए
आओ लौट चलें,
सुनो..... सुनते हो।
नन्दलाल भारती
०२/०९/२०२४
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