अपनापन की भावना से ,
ओत-प्रोत आत्मा की पुकार ।
कह रही है हमें,
जग अपना है ,
तुम सबके हो कुमार ।।1।।
किसे कहते हो तुम पराया ,
सभी तुम्हारे अपनें हैं।
भावना अपनापन का मत खोना ,
यही तुम्हारे सपनें हैं ।।2।।
सजाना-सँवारना सपनों को अपनें ।
जीवन बगिया के चहुँ ओर ।
टुटनें न देना गीत अपनें ,
प्रेम पथ के चहुँ ओर ।।3।।
डॉ. प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’
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