Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐसा जीवन गढ़ना

 

 

एक दूजे से हो अनबन क्यों ?
प्रेम-प्रीत से नित रहना ।
अच्छे जग में हम कहलायें ,
जीवन ऐसा है गढ़ना ।।

 

 

नफ़रत करके इस दुनिया में ,
कौन,क्या?बन पाया है ।
बस पीछे पछताते हैं जी ,
नफ़रत की यह माया है ।।
प्रेम जगाकर हर सूरत में ।
कर्म अमिट करते जाना ।।1।।

 

 

जीवन में नवरंग भरें हैं ,
यही प्रीत की शक्ति है ।
अपनों से हम बंधे हुए हैं ,
जीवन की यही कस्ती है ।।
आँधी-तूफां में डूब न पायें ।
इस कस्ती में सम्हल कर चलना ।।2।।

 

 

डॉ. प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’

 

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