न्याय - धर्म का पाठ पढ़ाता ,
प्यारा अपना गाँव ।
गुणी जनों का है पग धरता ,
ऐसा अपना गाँव ।।
अलग-अलग हैं जाति-धर्म पर ,
हैं आपस में एक ।
सबके अपनें कर्म अलग हैं ,
फिर भी हैं हम एक ।।
दुःख में सब मतभेद भुलाकर ।
एक हो जाता गाँव ।।1।।
बहती हैं यहाँ प्रेम की धारा ,
मन में कहीं न द्वेष ।
कर्म को ही हम मानें पूजा ,
हम सबका एक भेष ।।
भावी पीढ़ी को मार्ग दिखाता ।
ऐसा प्यारा गाँव ।।2।।
" अजब सलोना गाँव "
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अजब सलोना,सबसे प्यारा,
गाँव हमारा भाई ।
मस्त मगन हो पक्षी नभ में ,
उड़ रहे हैं भाई ।।
हरी घास है मखमल जैसी,
चहुँ दिशा में हरियाली ।
चहक रही है डाल-डाल पर,
कोयल काली-काली ।।
डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प
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