Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बाल रवि

 

नभ के उर पर बाल रवि ,
मंथर-मंथर उदित हुई ।
लगता सु-सरोज सम ,
रक्त कणिका खिली हुई ।।1।।

 

सतरंगी किरण फ़ैल रही थी,
धरा भी पुलकित-पुलकित सी थी ।
पुष्पों के भी मोहक खुशबू ,
चहुँ दिशाएँ फ़ैल रही थी ।।2।।

 

खग तरु पर थिरक-थिरक कर,
मोद अंक में खेल रहे थे ।
ठंडी-ठंडी पवन सुहानी ,
बड़ी अजब सी बह रहे थे ।।3।।

 

 

 

डॉ. प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’

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