नभ के उर पर बाल रवि ,
मंथर-मंथर उदित हुई ।
लगता सु-सरोज सम ,
रक्त कणिका खिली हुई ।।1।।
सतरंगी किरण फ़ैल रही थी,
धरा भी पुलकित-पुलकित सी थी ।
पुष्पों के भी मोहक खुशबू ,
चहुँ दिशाएँ फ़ैल रही थी ।।2।।
खग तरु पर थिरक-थिरक कर,
मोद अंक में खेल रहे थे ।
ठंडी-ठंडी पवन सुहानी ,
बड़ी अजब सी बह रहे थे ।।3।।
डॉ. प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’
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