हाथी दादा बड़े सवेरे ,
निकल पड़े मैदान में ।
लगे काँपनें थर-थर , थर-थर,
जान नहीं रही जान में ।।1।।
मारे सरदी ठिठुर रहे थे ,
समझ नहीं कुछ भी पाये ।
उठक-बैठक खूब लगाकर,
ठिठुरन दूर भगाये ।।2।।
इतनें में तो सूरज भैया ,
निकल पड़े आसमान में ।
टा-टा कह जाड़े को दादा ,
उछल पड़े मैदान में ।।3।।
डॉ. प्रमोद सोनवानी " पुष्प "
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